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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free मनोविज्ञान में एक्झिबीशनिस्ट एक खास तरह के लोगों को कहा जाता है। ऐसे लोग, जो कहीं भी, मौके-बेमौके अपनी जननेंद्रियों को दूसरों को दिखा दें, उनको एक्झिबीशनिस्ट कहते हैं वे। बड़ा वर्ग है दुनिया में एक्झिबीशनिस्ट का। व्यवस्था से भी चलता है वह वर्ग, अव्यवस्था से भी चलता है। व्यवस्था से चलता है, तब तो हम एतराज नहीं उठाते, क्योंकि वह व्यवस्था के भीतर चलता है। जब अव्यवस्था से कोई करता है, तब हम एतराज उठाते हैं। पर बड़ी हैरानी मनोवैज्ञानिकों को थी कि इससे क्या प्रयोजन है कि एक आदमी अचानक, आप सड़क से चले जा रहे हैं, और आदमी नंगा खड़ा होकर आपको अपनी नग्नता दिखा दे! इससे क्या मिलेगा? पर जैसे-जैसे इसकी खोज चलती है, वैसे-वैसे पता चलता है कि वही आदमी इस तरह के प्रदर्शन में संलग्न होता है, जिसने कभी यौन का कोई सुख नहीं पाया। जिसने यौन को कभी भोगा नहीं, वह एक्झिबीशनिस्ट हो जाता है। अब वह दिखाने का ही सुख ले रहा है, हालांकि दिखाने से कोई सुख मिलने का प्रयोजन नहीं है। कोई अर्थ नहीं है। आप अपने शरीर को नग्न किसी को दिखा दें, इससे कोई मतलब नहीं है। न आपको कुछ मिलता, न दूसरे को कुछ मिलता। न कोई प्रयोजन हल होता है। लेकिन इस दिखाने वाले का कोई न कोई प्रयोजन हल होता है। और आप हैरान होंगे जान कर कि एक्झिबीशनिस्ट ने क्या-क्या तरकीबें निकाली हैं! यूनान में पुरुषों ने बहुत चुस्त कपड़े निकाले थे कि उनकी जननेंद्रिय अलग दिखाई पड़ती रहे। उतने ही से तृप्ति नहीं मिली एक्झिबीशनिस्ट को, तो उन्होंने चमड़े की जननेंद्रियां बनवा ली थीं, जिनको कि वे कपड़ों के अंदर पहने रखते थे। वे दिखाई पड़ें। हमें आज हैरानी मालूम होगी। लेकिन स्त्रियां सारी दुनिया में यही, अपने स्तनों के साथ यही कर रही हैं। लेकिन वह हमारी व्यवस्था में है, इसलिए हमको दिखाई नहीं पड़ता। ऐसा ही यूनान में दो हजार साल पहले किसी को दिखाई नहीं पड़ता था। अब हमको समझ में आता है, क्या पागलपन की बात थी! अभी जब एथेंस के म्यूजियम में रखी हैं चमड़े की जननेंद्रियां, तो लोग चकित होते हैं कि कैसे पागल थे! इसकी क्या जरूरत थी? लेकिन दो हजार साल बाद-शायद दो हजार साल भी ज्यादा देर है, और जल्दी-स्त्रियां भी अपने स्तनों को दिखाने का जो-जो इंतजाम सारी दुनिया में किए हुए हैं, वह भी एक्झिबीशन में, म्यूजियम में रखा होगा। और आने वाली भविष्य की स्त्रियां हैरान होंगी कि स्तनों को इतना दिखाने की क्या जरूरत थी? क्या प्रयोजन था? कोई भी प्रयोजन नहीं है। लेकिन कहीं कोई बात है, कहीं कुछ मामला है। और वह मामला यह है कि जिस चीज को हम भोगने में असमर्थ होते चले जाते हैं, उसको हम प्रदर्शन करने लगते हैं। जिस चीज को हम भोग लेते हैं, उसको हम प्रदर्शन नहीं करते। जो आदमी बहुत मजे से, आनंद से खाना खा लेता है और पचा लेता है, वह चर्चा नहीं करता फिरता कि उसके घर में आज क्या बना। वह पार्टियां नहीं देता कि लोग देखें। नसरुद्दीन एक दफा सम्राट के घर निमंत्रित हुआ है। सम्राट का नियम है कि वह हर वर्ष अपने जन्मदिन पर देश के सभी खास-खास लोगों को बुलाता है। नसरुद्दीन भी बुलाया गया, पहली दफा। कोई पांच सौ मेहमान हैं। थालियां सजती जाती हैं, लेकिन खाना कुछ शुरू नहीं होता। थालियां लगती चली जाती हैं एक से एक सुंदर। और ऐसी प्रचलित बात है कि वह सम्राट हर बार नई से नई चीजें बनवाता है। सुगंध से भर गया है हॉल। भोजन आते जा रहे हैं, लगते जा रहे हैं। नसरुद्दीन बड़ा बेचैन है। उसकी भूख काबू के बाहर होती चली जा रही है। आखिर वह चिल्लाया कि भाइयो, यह हो क्या रहा है? भोजन देखने के लिए है या करने के लिए? उसके पड़ोस के लोगों ने कहा कि ठहरो, तुम अशिष्टता कर रहे हो। इससे पता चलता है कि तुम किसी भूखे घर से आते हो। सब लग जाने दो, शांति से देखो, दूसरी बातें करो। इसकी तरफ तो देखो ही मत। खाने के वक्त भी पूरा मत खा लेना, छोड़ देना। नहीं तो लोग समझेंगे, तुम गरीब आदमी हो, तुम्हारे पास खाने को नहीं है। नसरुद्दीन ने कहा, यह बताना बेहतर है कि मेरे पास भोजन है या यह बताना कि मेरे पास भूख है! भोजन तो वह आदमी बताता है, जिसके पास भूख नहीं रह जाती। जब भूख नहीं रह जाती, तब भोजन दिखाना पड़ता है। जब तक भूख है, तब तक भोजन दिखाया नहीं जाता, किया जाता है। तो जो हम प्रदर्शन करते हैं, वह सब उन्हीं-उन्हीं चीजों का प्रदर्शन है, जिन्हें हम बिलकुल नहीं भोग पाते। रुग्ण चित्त का लक्षण है। लाओत्से कहता है, ध्यान आकृष्ट न किया जाए लोगों का उस तरफ, जो न्यून है, जो व्यर्थ है, जिसका कोई आंतरिक मूल्य नहीं, तो लोग उद्विग्न न हों, अनुद्विग्न रहें।और लोग अनुद्विग्न रह जाएं, तो उनके जीवन में दूसरी ही यात्रा शुरू हो जाती है। उद्विग्नता ले जाती है संसार में, अनुद्विग्नता ले जाती है परमात्मा में। उद्विग्नता बनती है यात्रा संसार की, संताप की; अनुद्विग्नता बनती है यात्रा मुक्ति की, मोक्ष की, सत्य की। दूसरे सूत्र पर कल बात करेंगे। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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