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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free मुल्ला नसरुद्दीन एक दुकान पर काम कर रहा है। लेकिन झपकी लग-लग जाती है उसको। सब काउंटरों पर बिठा कर परेशान हो गया मालिक उसे। वह जहां भी बैठता है, वहीं सो जाता है। आखिर मालिक ने कहा कि मुल्ला, क्या करें हम? तुम्हें कहां बिठाएं? तुम्हीं कुछ सुझाव दो। उसने कहा कि वह जो पाजामा का काउंटर है, वहां मुझे बिठा दें। और एक तख्ती मेरे गले पर लगा दें कि हमारे पाजामे इतने सुखद हैं कि बेचने वाला भी सो जाता है। अनिद्रा का उपाय है हमारा पाजामा! और तो अब मैं क्या सलाह दे सकता हं, मुल्ला ने कहा। मुल्ला ने कहा कि मैं क्या करूं? सवाल नींद नहीं है, सवाल यह है कि जागने योग्य कोई उत्तेजना नहीं है। आप ऐसे ही थोड़े जागे हुए हैं। अकारण थोड़े ही जागे हुए हैं। और रात अकारण, ऐसा तो नहीं है कि अकारण नहीं सो पाते हैं। वह नसरुद्दीन कह रहा है, असली बात यह है कि सड़क पर कौन गुजर रहा है, देखने की कोई उत्तेजना नहीं है। कौन भीतर गया, कौन बाहर गया, इसकी उत्तेजना नहीं है। वह कहा करता था कि एक आदमी ने मेरे खीसे में हाथ डाल दिया, तो भी मैंने हाथ बढ़ा कर नहीं देखा कि यह क्या कर रहा है। क्योंकि मैंने कहा कि अगर खीसे में कुछ होगा, तो पहले ही कोई निकाल चुका होगा। मैंने कहा कि इतनी देर तक कहां बचेगा! अगर खीसे में कुछ होगा, तो अब तक कहां बचेगा! कोई निकाल ही चुका होगा। रात एक चोर उसके घर में घुस गया। उसकी पत्नी ने उसे उठाया है कि उठो, घर में चोर है! तो मुल्ला ने कहा, उसको गलती अपनी खुद ही खोजने दो। हम क्यों साथ दें? उसकी गलती वह खुद ही खोज ले। एक बार और उसके घर में चोर घुसा है, तो वह आलमारी में छिप गया। चोर सब मकान खोज डाले, कुछ न मिला। मकान का मालिक भी नहीं मिला। दरवाजा भी अंदर से बंद है, मालिक तो कम से कम होना ही चाहिए। जब कुछ भी न मिला, तो वह मालिक में उत्सुक हो गया कि इस आदमी को भी तो देखो, इस मकान में रहता है, कुछ भी नहीं है। तो सब जगह खोजा तो एक आलमारी का दरवाजा खोला, तो वह पीठ किए हुए, दीवार की तरफ मुंह किए हुए खड़ा था। उन्होंने कहा, अरे! तुम यहां क्या कर रहे हो? तो उसने कहा, मैं सिर्फ शर्म के मारे छिपा हूं कि तुम क्या कहोगे कि घर में कुछ भी नहीं है! नसरुद्दीन ने कहा कि मुझे इसलिए नींद आ जाती है कि जगाने का कोई कारण नहीं मालूम पड़ता। मैं किसलिए जगा रहं? और अगर आपको रात नींद नहीं आती, तो उसका कारण यह है कि रात भी आपको कारण बने रहते हैं, जो जगाए रखते हैं। कैसे सो जाएं! रास्ता दिखाई ही पड़ता रहता है। रास्ते पर चलते लोग दिखाई ही पड़ते रहते हैं। दूकान पर आते ग्राहक दिखाई ही पड़ते रहते हैं। दिन में दी गई गालियां, की गई बातचीत सुनाई ही पड़ती रहती है। वह जारी ही रहती है उत्तेजना, इसलिए नहीं सो पाते। और मुल्ला ने कहा कि मैं क्या कर सकता हूं! कोई उत्तेजना नहीं, जो मुझे जगाए। नींद आ ही जाती है। यह जो लाओत्से कह रहा है जिस अनुद्विग्न चित्त की बात, बिलकुल दूसरा ही आदमी है वह जो अनुद्विग्न है। कुछ पाने की दौड़ नहीं है। जो मिला है, काफी है। जो मिला है, काफी से ज्यादा है। जो मिला है, वह धन्य है उसे पाकर। जो मिला है, वह कृतार्थ है। जो मिला है, वह अनुगृहीत है। जो मिला है, वह बहुत है, जरूरत से ज्यादा है। जो नहीं मिला है, वह उसके मन की दौड़ नहीं। जो नहीं मिला है, वह उसकी स्पृहा नहीं, वह उसकी मांग नहीं, वह उसकी अपेक्षा नहीं। जो नहीं मिला है, वह नहीं मिला है। उसकी बात ही नहीं है। वह उसके चित्त का हिस्सा ही नहीं है। लेकिन हमारे चित्त का ढंग और है। जो मिला है, उसके प्रति हम अंधे हैं। और जो नहीं मिला है, उसके प्रति बहुत सजग हैं। जो मिला है, उसे हम भूल जाते हैं। जो नहीं मिला है, उसे हम याद रखते हैं। अगर मेरे पास आप सात दिन रहे, और सात दिन में कितना ही आपको दूं और एक दिन तेज आंख से देख दूं; सात दिन जो दिया, वह भूल जाएगा; वह जो तेज आंख है, फिर जिंदगी भर न भूलेगी। कोई व्यक्ति आपको कितना ही प्रेम दे वर्षों तक और एक दिन चूक जाए, वे वर्ष बेकार हो गए। जो नहीं मिला उस दिन, वह भारी कीमती हो गया। जो नहीं मिलता, जो नहीं है, हम उसी को ही पकड़ पाते हैं। हमारी सारी की सारी अटेंशन, सारा ध्यान अभाव पर लगा हुआ है। मेरे दो हाथ हैं, दो पैर हैं, इन पर मेरा ध्यान नहीं है। एक अंगुली मेरी टूट जाए, बस मेरी जिंदगी बेकार हुई। हालांकि उसके होने से, जब तक वह थी, मुझे कोई मतलब न था। मैंने उसका कोई उपयोग न किया था। अंगुली थी मेरे पास, तब मैंने कभी भगवान को धन्यवाद न दिया था कि यह अंगुली आपने दी है। कोई प्रयोजन न था। जब तक थी, तब तक पता ही न चला। जब न रही, टूट गई, तब से मुझे पता चला। और तब से दुखी हूं, और तब से परेशान हूं, और तब से निंदा कर रहा हूं। तब से भगवान से विवाद चल रहा है कि मेरी अंगुली तोड़ कर बहुत अन्याय हो गया। देकर कभी कोई धन्यता न हुई थी; लेकर बड़ा अन्याय हो गया है। और थी, तब मैंने उससे कुछ किया न था। उस अंगुली से मैंने कोई चित्र न बनाए थे। न कोई वीणा पर संगीत छेड़ा था। न उस अंगुली से किसी गिरते को सहारा दिया था। उस अंगुली से मैंने कुछ भी न किया था। वह थी या न थी, बराबर थी। मुझे पता ही न था उसके होने का। वह तो जिस दिन नहीं रही, उस दिन मैंने जाना कि बड़ा अभाव हो गया। और मजे की बात है, जिस अंगुली से इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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