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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free नहीं सोच सकते, कोई नहीं सोच सकता। दुनिया का भले से भला आदमी भी यह दावा नहीं कर सकता कि सादगी और सरलता से जीवन चलाते हुए किसी दिन कोहनूर हीरा मेरी पत्नी के गले में पहुंच जाएगा। यह उपाय ही नहीं है कोई कोहनूर के गले में पहुंचने का। कोहनूर तो उसके गले में पहुंचेगा, जो लाखों गलों को काटने को तैयार हो। क्योंकि एक हीरा और चार अरब लोगों के मन में आकांक्षा जग आई हो, तो यह सरल नहीं हो सकती बात । लेकिन हम न्यून चीजों को ही मूल्य देते हैं। हमारा सारा मूल्य का जो ढंग है, वह न्यून को है। जितनी कम है कोई चीज, उतनी कीमती है। हालांकि इसका कोई संबंध नहीं है। हालत तो उलटी होनी चाहिए। सुना है मैंने कि अब्राहम लिंकन ने एक रात एक स्वप्न देखा । स्वप्न देखा कि बड़ी भीड़ है और लिंकन उस भीड़ से गुजर रहा है। और अनेक लोग कानाफूसी कर रहे हैं कि इसकी शक्ल तो बड़ी साधारण है, इसको अमरीका का प्रेसीडेंट बनाने की क्या जरूरत थी! शक्ल में तो कुछ खास बात नहीं, बहुत साधारण है। बेचैनी होती है लिंकन को कुछ सूझता नहीं कि क्या करे, क्या न करे! लोग खुसर-फुसर कर रहे हैं। आस-पास ही बात चल रही है और उसे सुनाई पड़ रही है - सपने में उसे सुनाई पड़ रही है कि लोग कह रहे हैं: कितनी साधारण शक्ल का आदमी! और इसको अमरीका का प्रेसीडेंट बनाने की क्या जरूरत है! कोई और खूबसूरत आदमी नहीं मिल सका? थोड़ा शक्ल पर तो खयाल करना था। वह बड़ा बेचैन है। घबड़ाहट में उसकी नींद खुल जाती है। वह रात भर सो नहीं पाता। सुबह वह अपनी डायरी में लिखता है सपना और अपना उत्तर, जो वह सपने में नहीं दे पाया। वह उत्तर में लिखता है कि मैं मानता हूं कि मुझे चुनने का कुछ कारण है। क्योंकि परमात्मा विशेष शक्लें बहुत कम पैदा करता है; लगता है, पसंद नहीं करता । साधारण शक्लें बहुत तादाद में पैदा करता है; लगता है, पसंद करता है। डायरी में लिखता है कि परमात्मा साधारण शक्लों के लोग इतने ज्यादा पैदा करता है कि मालूम होता है कि उसकी पसंदगी साधारण शक्ल की है। असाधारण शक्ल तो, मालूम होता है, भूल-चूक से पैदा होती है। नहीं तो बहुत ज्यादा पैदा कर सकता है। यह तो मजाक में लिंकन ने लिखा। लेकिन जो भी बड़ी मात्रा में पैदा हो रहा है, वही जीवन का आधार होना चाहिए। लेकिन हम आधार उलटा बनाते हैं। जैसे नाक-नक्श सब के पास हैं, उनकी कोई कीमत नहीं। नाक-नक्श ऐसा हो, जो सबके पास नहीं, वह कीमती हो जाएगा। फिर हम कलह को पैदा करते हैं। फिर हम संघर्ष को पैदा करते हैं। फिर हम असाधारण की दौड़ शुरू होती है, जिसमें हम सब पागल हो जाते हैं। और उस दौड़ का कोई अंत नहीं है। एक चीज में नहीं, सभी चीजों में । “यदि उसकी ओर, जो स्पृहणीय है, उनका ध्यान आकृष्ट न किया जाए, तो उनके हृदय अनुद्विग्न रहें।' अगर लोगों के हृदय को हम उसके प्रति आकर्षित न करें, जो स्पृहा के योग्य है, जो पाने के लिए तृष्णा को जगाता है, उसकी ओर आकर्षित न करें, तो लोगों के हृदय अनुद्विग्न रहें; उनके हृदय में अशांति के तूफान न उठें; उनके हृदय शांत, मौन रहें। लेकिन हम प्रत्येक को कहते हैं कि पाओ उसे, वह जो गौरीशंकर के शिखर पर है। जमीन पर, समतल भूमि पर कहीं कुछ पाने योग्य है! पाओ उसे, जिसे कभी कोई हिलेरी या तेनसिंग पाता है। पहुंचो वहां, गाड़ो झंडा गौरीशंकर पर। तभी कुछ तुम्हारे जीवन का उपयोग और अर्थ है। अन्यथा बेकार तुम जीए । पर बड़ी हैरानी की बात है, गौरीशंकर पर झंडा गाड़ कर कौन सी सार्थकता जीवन में आ जाती है? और कल जब सभी लोग गौरीशंकर पर उतर सकेंगे हवाई जहाज से, तब आप मत सोचना कि आपके झंडा गाड़ने का कोई मूल्य होगा। न्यून का मूल्य है; न गौरीशंकर का कोई मूल्य है, न झंडा गाड़ने का कोई मूल्य है। जिस दिन सारे लोग गौरीशंकर पर उतर सकेंगे, उस दिन... | अभी चांद पर कोई आदमी उतर जाता है, आर्मस्ट्रांग, तो सारी दुनिया के अखबार चर्चा में संलग्न हो जाते हैं। एक क्षण में आदमी वहां पहुंच जाता है, जहां सीधे रास्ते से कोई प्रतिष्ठा पाने की कोशिश करे, तो पचास-साठ वर्ष लगते हैं। अखबार के पहले सुर्खी तक पहुंचने के लिए सीधी मेहनत कोई करता रहे - सीधी वह भी काफी टेढ़ी है तो पचास-साठ साल लगते हैं। फिर भी सुनिश्चित नहीं है। लेकिन एक आदमी चांद पर उतर जाता है, तो क्षण भर में ऐतिहासिक पुरुष हो जाता है। लेकिन आप यह मत सोचना कि जिस दिन आप चांद पर उतरेंगे, उस दिन आप भी ऐतिहासिक पुरुष हो जाएंगे। नहीं होंगे। क्योंकि आप उसी दिन उतरेंगे, जिस दिन यात्री उतरने लगेंगे। जापान की एक कंपनी तो उन्नीस सौ पचहत्तर के टिकट बेच रही है। उन्नीस सौ पचहत्तर, एक जनवरी, उसका दावा है कि वह चांद पर यात्रियों को... तो एडवांस बुकिंग उसका उन्होंने शुरू किया हुआ है। लोग ले रहे हैं। मगर वे इस खयाल में न रहें कि वे आर्मस्ट्रांग हो जाएंगे। क्योंकि मूल्य न चांद का है, न चांद पर उतरने का है, मूल्य तो न्यून का है। आर्मस्ट्रांग पहली दफे उतर रहा है, बस इतना मूल्य है। और तो कोई मूल्य नहीं है। सब तरफ हम, जो बहुत कम है, उसको कीमत देते हैं। उसको कीमत देकर हम संघर्ष को जन्माते हैं। सारे लोग उसे पाने में लग जाते हैं, पाने की दौड़ में उद्विग्न हो जाते हैं। जो पा लेते हैं, वे पाकर पाते हैं कि कुछ नहीं पाया। क्योंकि चांद पर खड़े हो जाएंगे, तो क्या पाएंगे? कोई जमीन से बहुत भिन्न न पाएंगे। खड़े ही हो जाएंगे, क्या पाएंगे? मिल क्या जाएगा? कौन सी आंतरिक उपलब्धि होगी? इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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