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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free कोई उपलब्धि नहीं हो जाएगी। जो नहीं पहुंच पाएंगे, उनके जीवन नष्ट हो जाएंगे। उनकी उद्विग्नता उनको खा जाएगी कि जब तक चांद पर न पहुंचे, तब तक सब बेकार है। अपनी जिंदगी किसी काम की नहीं। यों ही अकारण, अकारथ पैदा हुए और मरे। चांद पर तो पहुंचे ही नहीं। बचपन से पहला बीज हमारे मन में जो डाला जाता है, वह चांद पर पहुंचने वाला बीज है। और कठिनाई यह है कि वहां पहुंच जाओ, तो कुछ नहीं मिलता; और न पहुंच पाओ, तो परेशानी भारी झेलनी पड़ती है। जो पहुंचते हैं, वे भी बड़े संघर्ष और कठिनाई से पहुंचते हैं। जो नहीं पहुंच पाते, वे भी भारी संघर्ष करते हुए जीते और मरते हैं। पहुंच कर कुछ मिलता नहीं, लेकिन पहुंचने की कोशिश में बहुत कुछ खो जाता है। खो जाता है जीवन का अवसर, जिसमें आनंद की किरण फूट सकती थी। लाओत्से का यह सारा आग्रह इसलिए है-सिर्फ निगेटिव नहीं है, यह सिर्फ इसलिए नहीं है कि आप अन्दविग्न कैसे न हों, ऐसा नहीं है मतलब-मतलब ऐसा है कि अगर आप उद्विग्न न हों, तो वह जो अद्विग्न स्थिति आपकी होगी, वह एक पाजिटिव, एक विधायक आनंद का द्वार खोलेगी। इस दौड़ में पड़ा हुआ, न्यून को पाने की दौड़ में, स्पर्धा में, स्पृहा में पड़ा हुआ व्यक्ति उसे पाने से चूक ही जाता है, जो सभी को मिल सकता था। शायद हम परमात्मा को इसीलिए नहीं खोजते, क्योंकि संत कहते हैं, वह सब जगह है। वह स्पृहणीय नहीं रह जाता। क्योंकि वे कहते हैं, वह रत्ती-रत्ती, कण-कण में छिपा है। वे कहते हैं, वह चारों तरफ वही है। बेकार है, अगर चारों तरफ है तो। अगर कहीं एक जगह हो, जहां कोई एक पहुंच सके, तो अभी सारी मनुष्यता दौड़ने लग जाए कि ठीक है, हम ईश्वर को पाकर रहेंगे! तो संत अपने हाथ से ही उसको लोगों की स्पृहा के बाहर कर देते हैं। कहते हैं, सब जगह है। वही-वही है, जहां देखो वही है, जहां पाओ वही है। वे कहते हैं, न पाओ, तो भी वही मौजूद है। तुम जानो तो, न जानो तो, वह तुम्हें घेरे हुए है, जैसे मछली को सागर घेरे है। तो फिर मन हमारा होता है कि ऐसी बेकार चीज को पाने से क्या होगा! यानी ऐसी बेकार चीज पाने योग्य ही नहीं रह गई, जो सब तरफ है, हर कहीं है, पाओ तो, न पाओ तो, मिली हुई है। सोओ तो, जागो तो, खोते ही नहीं। भागो, कहीं भी जाओ, वह तुम्हारे साथ है। तो हम कहते हैं, ठीक है, अब जो साथ ही है तो रहो। हम न खोजेंगे। हम तो उसे खोजने जाएंगे, जो सब जगह नहीं है। जो कहीं-कहीं है, मुश्किल से है, और कभी किसी को मिलती है। और जिसको मिलती है, धन्यभाग उसके, इतिहास में नाम अमर हो जाता है। इस भगवान को पाकर क्या करेंगे? अगर पा भी लिया, तो बुद्ध कहेंगे, इसमें क्या किया? वह मिला ही हुआ था। अगर पा भी लिया, तो महावीर कहेंगे, इसमें क्या हुआ? वह तो स्वभाव था। अगर पा भी लिया, तो लाओत्से कहेंगे, कुछ अखबार में नाम छपवाने की जरूरत नहीं है। हजारों को मिल चुका है, हजारों को मिलता रहेगा। कुछ गौरव मत करो। कुछ दीवाने मत हो जाओ। कुछ झंडा गाड़ने का कारण नहीं है। यह मिलता ही रहा है। और जिनको नहीं मिला है, उनके पास भी है, पता भर नहीं है उनको। पता चल जाएगा, उनको भी मिल जाएगा। तो ऐसी चीज स्पृहा नहीं बनती। परमात्मा अगर हमारी खोज नहीं बनता, तो उसका कारण है कि वह हमारी स्पृहा नहीं बनता है। हमारे मन में कहीं ऐसी उद्विग्नता पैदा नहीं होती उसके पाने के लिए कि दूसरे से छीन कर पा लेंगे। एक और खराबी है, कि मजा तो तभी है किसी चीज को पाने का कि दूसरे से छीन कर पा लें। नहीं तो कोई मजा नहीं है। अब परमात्मा ऐसी चीज है कि आप कितना ही पा लो, किसी का कुछ नहीं छिनेगा। ऐसा नहीं है कि आप पा लोगे तो मुझे पाने में कुछ दिक्कत पड़ेगी, कि आपने पा लिया, तो अब मैं कैसे पाऊं? कि जब आप ही पा चुके, तो अब बात खतम हो गई। नहीं, आप कितना ही पा लो, मुझे पाने के लिए उतना ही खुला रहेगा। आपका कोई कब्जा, मुझसे छीनने वाला नहीं है। आपका पा लेना, कुछ मेरे अधिकार पर चोट नहीं है। आप कितना ही पाओ, इससे मेरे पाने में फर्क नहीं पड़ता। संत कहते हैं, अनंत है वह। कोई कितना ही पा ले, वह सदा उतना ही शेष है। और भी प्राण निकल जाते हैं कि बेकार ही है, कोई स्पर्धा ही नहीं है। किसी से छीनने का कोई मजा नहीं है। छीनने का सुख है! जब हमें छीनने में सुख आता है, तो ध्यान रखना, वस्तु में सुख नहीं होता, छीनने में सुख होता है। दूसरे को दुख देने में सुख होता है। अचानक ऐसा हो कि कोहनूर घर-घर में बरस जाए, सड़क-सड़क पर गिर जाए, जहां भी निकलें, पैर में वही पड़े! तो जो महारानी उसको पहने हुए है, जल्दी निकाल कर फेंक दे, क्योंकि बेकार है। क्योंकि भिखमंगे पैरों में डाल रहे हैं उसको, उसका कोई मतलब न रहा। जिस पर कोहनर है, वह उसको छिपा दे फौरन कि किसी को पता न चल जाए कि मैंने गले में पहना था। क्योंकि वह गले में पहनने का सुख ही यह था कि छीना था। लाखों गले देख कर पीड़ित हो जाएं कि नहीं है उनके पास, और है किसी के पास, वही उसका सुख है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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