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मैक्यावेली ने लिखा है अपनी किताब प्रिंस में, राजाओं को जो उसने सलाह दी है उसमें उसने लिखा है कि राजा ऐसा होना चाहिए, जो नीति की बातें लोगों को समझाए, लेकिन नीति से कभी जीए नहीं। क्योंकि अगर खुद ही तुम नीति से जीने लगे, तो तुम बुद्धू हो! फिर तो फायदा क्या है समझाने का? लेकिन समझाते रहना कि लोग नीति से रहें, तब तुम्हारी अनीति सफल हो सकेगी। और अगर तुम ही जीने लगे, तो कोई और दूसरा तुम पर सफल हो जाएगा। इसलिए इस तरह का धोखा जारी रखना कि नीति अच्छी है। और इस तरह का अपना चेहरा भी बनाए रखना कि तुम बड़े नैतिक हो। लेकिन भूल कर भी इस जाल में खुद मत पड़ जाना, इससे बाहर खड़े रहना और सदा होशियार रहना कि जगत में सफल तो अनीति होती है। लेकिन अनीति की सफलता का आधार नीति का प्रचार है। नहीं तो अनीति सफल नहीं हो सकती।
इसलिए मैक्यावेली कहता है कि खूब नीति का प्रचार करो। बच्चों को स्कूल में, कालेज में शिक्षा दो कि नैतिक रहो। लेकिन खुद इस भूल में मत पड़ जाना। इससे बचे रहना। चेहरा बनाए रखना, तो तुम्हारी सफलता की कोई सीमा न रहेगी।
यह लाओत्से से ठीक उलटा आदमी है। बहुत बुद्धिमान आदमी है। और एक लिहाज से, मैं मानता हूं कि आदमी की शक्ल को ठीकठीक पेश कर रहा है, जैसा आदमी है। मैक्यावेली आदमी को गहरे में पहचानता है। और आदमी के संबंध में वह जो कह रहा है, वह बहुत दूर तक सच है। निन्यानबे मौके पर बिलकुल ही सच है। और वह कहता है, मैं उनको सलाह नहीं दे रहा हूं, जो अपवाद हैं। मैं तो उनको सलाह दे रहा है, जो नियम हैं। जैसा नियम है, वह मैं सलाह दे रहा है।
एक ओर हम दुर्लभ पदार्थों के लिए मोह बढ़ाए चले जाते हैं। अब कोहनर पत्थर ही है। और अगर कोई... हम ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं, एक ऐसे आदिवासी समाज की कल्पना कर सकते हैं, जहां कोहनूर सड़क पर पड़ा रहे और बच्चे खेलें और फेंकते रहें
और कोई उसको उठाए न। क्योंकि कोहनूर में कोई इंट्रिजिक वैल्यू नहीं है, कोई भीतरी मूल्य नहीं है। कोहनूर में जो मूल्य है, वह दिया हुआ मूल्य है, आरोपित मूल्य है। कोहनूर के भीतर कोई मूल्य नहीं है। क्योंकि न उसको खा सकते हैं, न उसको पी सकते हैं, वह किसी काम पड़ नहीं सकता। वह बिलकुल बेकाम है। लेकिन उसकी सिर्फ एक ही खूबी है कि वह रेयर है, ज्यादा नहीं है। अकेला है। बहुत थोड़ा है। न्यून है। अगर न्यून चीज को हम ऊपर से मूल्य दे दें, तो दुनिया उसके लिए पागल हो जाएगी। अब यह हालत हो सकती है कि एक आदमी अपना जीवन गंवा दे कोहनूर को पाने में और कोहनूर किसी काम में न आए। लेकिन दुर्लभ पदार्थ को दी गई प्रतिष्ठा, समाज में चोरी, बेईमानी और प्रतियोगिता और संघर्ष पैदा करती है। हमारा सब...।
सोना है। उसमें कोई इंटैिजिक मूल्य नहीं है। कोई भीतरी कीमत नहीं है उसमें। क्योंकि जीवन को पूरा करने वाली कोई कीमत नहीं है। अगर एक जानवर के सामने आप एक रोटी का टुकड़ा रख दें और एक सोने की डली रख दें, वह रोटी का टुकड़ा खाकर अपने रास्ते पर हो जाएगा। रोटी के टुकड़े में इंट्रॅिजिक वैल्यू है, भीतरी मूल्य है। सोने के टुकड़े में कोई मूल्य नहीं है। और जानवर इतना नासमझ नहीं कि वह सोने की डली मुंह में ले ले और रोटी छोड़ जाए। पर अगर आदमी के सामने यह विकल्प हो, तो हम रोटी छोड़ देंगे और सोने की डली चुन लेंगे।
और मजा यह है कि सोने की डली आदमी को छोड़ कर जमीन पर कोई चुनने को राजी नहीं होगा। क्योंकि सोने की डली में कोई भीतरी मूल्य नहीं है। उसकी कोई भीतरी उपयोगिता नहीं है। उसकी उपयोगिता दी गई है। हमने दी है। हमने माना है। माना हुआ मूल्य है। हमने माना है कि मूल्यवान है, इसलिए मूल्यवान है। अगर हम तय कर लें कि मूल्यवान नहीं है, तो मूल्यवान नहीं रह जाए।
सारी दुनिया में पच्चीसों तरह की मूल्य की व्यवस्थाएं हैं। अलग-अलग चीजें मूल्य रखती हैं, जो आपके खयाल में न आएं कि यह कैसे, इसमें क्या मूल्य हो सकता है!
अब एक अफ्रीकन औरत है। तो उसको पूरे हाथ पर चूड़ियां पहननी हैं हड्डी की। वह आपकी स्त्री के हाथ को देख कर मानती है कि नंगा है हाथ। जैसे आपकी स्त्री पश्चिम की आज कोई लड़की को देख कर मानती है कि यह क्या बात है, न नाक में कुछ, न कान में कुछ, बिलकुल नंगापन मालूम पड़ता है, खाली मालूम पड़ता है। दिया हुआ मूल्य है। और अजीब-अजीब दिए हुए मूल्य हैं।
अगर कोई समाज मान लेता है कि स्त्रियों के बड़े बाल सुंदर हैं, तो बड़े बाल सुंदर हो जाते हैं। कोई समाज मान लेता है कि छोटे बाल सुंदर हैं, छोटे बाल सुंदर हो जाते हैं। कोई समाज मान लेता है कि सिर घुटा हुआ सुंदर है, तो ऐसी स्त्रियां हैं जमीन पर अभी भी, जहां घुटा हुआ सिर सुंदर है। आपको भले ही कितनी घबड़ाहट हो, लेकिन जहां है सुंदर, वहां सुंदर है अभी भी। आज भी सैकड़ों कबीले स्त्रियों के सिर घोंट देते हैं। क्योंकि वे कहते हैं कि जब तक बाल न कटें, तब तक चेहरे का सच-सच सौंदर्य पता नहीं चलता। बाल धोखा देते हैं। असली सुंदर स्त्री बाल घुट कर सुंदर होगी। जो नकली है, वह उखड़ जाएगा, उसका साफ पता चल जाएगा कि गड़बड़ है।
आप मतलब समझ रहे हैं? उनके जांचने का ढंग, वे कहते हैं, असली सुंदर स्त्री बाल घुटे पर भी सुंदर होगी। वह तो स्त्री का सौंदर्य हुआ। और बाल की बनावट से जो सौंदर्य दिख रहा है, उसमें धोखा है। तो जो स्त्री बाल घुटा कर, बिलकुल सिर घुटे हुए स्थिति में सुंदर होती है, वे कहते हैं, वही सुंदर है। धोखा बिलकुल नहीं है।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज