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हूं, मैं तो कुछ बोल ही नहीं रहा हूं। लेकिन उनका न बोलना भी काम करता है। आप अक्सर नहीं तभी बोलते हैं, जब आपको बोलने से भी ज्यादा खतरनाक बात कहनी होती है। तब आप चुप रह जाते हैं। क्योंकि जितने वजन के शब्द चाहिए, वे नहीं मिलते। गाली देनी है कोई वजनी, वह नहीं मिलती है। चुप रह जाते हैं। ऐसा लेकिन क्यों है?
लाओत्से के हिसाब से ऐसा इसलिए है कि हमने स्वभाव को स्वीकृति नहीं दी। और हमने स्वभाव के साथ एक खिलवाड़ किया है।
और वह खिलवाड़ है पद-मर्यादा का। हम कहते हैं, फलां नीचा है, फलां ऊंचा है। यूटिलिटी की वजह से। जिस चीज की हमें उपयोगिता ज्यादा मालूम पड़ती है, हम उसे ऊंचा कहने लगते हैं। लेकिन जब उपयोगिता बदलती है, तो आपको पता है, ऊंचे-नीचे की व्यवस्था बदलती है।
एक जमाना था, पुरोहित सबसे ऊंचा था, प्रीस्ट। क्यों? उसकी यूटिलिटी थी। उसकी उपयोगिता थी। आकाश में बादल गरजते और बिजली चमकती, तो कोई भी कुछ नहीं जानता था। वह पुरोहित ही जानता था कि इंद्र देवता नाराज हैं। अब इंद्र देवता को कैसे प्रसन्न किया जाए, इसका सूत्र भी उसे ही पता था। मंत्र उसके पास था। तो राजा भी उसके पैर में बैठता था जाकर। और इसलिए पुरोहित ने हजारों-हजारों साल तक, वह जो जानता है, उसे और लोग न जान लें, इसकी भरसक चेष्टा की। क्योंकि उसकी मोनोपॉली उस जानकारी पर ही थी। कुछ बातें थीं, जो वह जानता था और कोई नहीं जानता था। सम्राट भी उसके पास पूछने आते। उनको भी उसके पैर छूने पड़ते। तो दुनिया में प्रोहित सबसे ऊपर था।
लेकिन आज! आज वह सबसे ऊपर नहीं है। बीस वर्षों में वैज्ञानिक उस जगह बैठ जाएगा, जहां दो हजार साल पहले पुरोहित था। आज एक वैज्ञानिक की इतनी कीमत है, जिसका कोई हिसाब नहीं। क्योंकि एक वैज्ञानिक पर सब कुछ निर्भर करता है, सारा भाग्य। एक आदमी जर्मनी से चोरी चला जाए, तो पूरा भाग्य बदल जाता है। एक आदमी रूस से खिसक जाए, तो पूरी किस्मत डांवाडोल हो जाती है। आज अगर अमरीका इतना संपन्न और व्यवस्थित दिख रहा है, तो उसका कारण है। सारी दुनिया के, सारे इतिहास के नब्बे प्रतिशत वैज्ञानिक आज अमरीका में हैं। इसलिए आप कुछ कर नहीं सकते। और एक इंतजाम है कि वैज्ञानिक कहीं भी पैदा हो, खिंचा हुआ, जैसे पानी सागर में चला आता है नदियों का, ऐसा वैज्ञानिक अमरीका खिंच जाता है। कहीं भी पैदा हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पूरा इंतजाम है। वह कहीं भी पैदा हो, वह खिंचता हुआ चला जाएगा।
इंग्लैंड में अभी एक बड़ी कांफ्रेंस चिंतकों की हुई और उन्होंने कहा कि हमें किसी तरह अपने विचारक को अमरीका जाने से रोकना चाहिए। नहीं हम मर जाएंगे।
लेकिन आप रोक नहीं सकते। आप कैसे रोकेंगे? न आप लेबोरेटरी दे सकते हैं उतनी बड़ी, न आप उतनी तनख्वाह दे सकते हैं, न आप उतना इंतजाम दे सकते हैं, न उतनी स्वतंत्रता दे सकते हैं, न उतनी सुविधा दे सकते हैं। आप रोक भी लेंगे, तो कुछ मतलब का नहीं होने वाला वह आदमी। वह अमरीका ही चला जाएगा।
जो लोग जानते हैं, वे अगर आंख खोल कर देख लें कि वैज्ञानिक इस वक्त कहां इकट्ठा हो रहा है, उसी मुल्क का भविष्य है। बाकी मुल्क तो डूब जाएंगे। क्योंकि आज ताकत उसके हाथ में है।
और आज अमरीका में दिखता भला हो कि राजनीतिज्ञ के हाथ में ताकत है। ज्यादा देर नहीं रहेगी। पीछे से ताकत हट गई है। पीछे से ताकत किसी और के हाथ में चली गई है। उसके इशारे पर सब कुछ हो रहा है। राजनीतिज्ञ लाख कहते रहें कि चांद पर पहुंचने का क्या फायदा है? लोग भूखे मर रहे हैं! वैज्ञानिक को चांद पर जाना है, वह जा रहा है। और राजनीतिज्ञ को उसकी व्यवस्था जुटानी पड़ रही है। वह कितना ही कहता रहे कि क्या फायदा है चांद पर जाने से! उसको समझ में भी नहीं आता फायदा। उसकी बुद्धि भी इतनी नहीं है कि समझ में आ जाए। लेकिन उसका कोई मूल्य भी नहीं है।
आज अगर अमरीका के पांच बड़े वैज्ञानिक इनकार कर दें कि हम हट जाते हैं, तो अमरीका अभी रूस के पैरों पर पड़ जाएगा। पांच आदमियों के हाथ में इतनी ताकत है। सारी मिलिट्री खड़ी रह जाएगी, सब खड़ा रह जाएगा। पांच आदमी कह दें कि बस ठीक है।
यूटिलिटी बदल गई। पुरोहित नहीं है अब ऊपर, अब वैज्ञानिक है ऊपर। बीच में क्षत्रिय ऊपर था। तलवार मजबूत थी। उसके हाथ में ताकत थी। वह ऊपर था। जहां उपयोगिता बदलती है, ऊपर-नीचे की सारी व्यवस्था बदल जाती है। आज बुद्धि की कीमत है, क्योंकि बुद्धि से आप ऊपर चढ़ सकते हैं। लेकिन कल अगर ऐसी व्यवस्था हो गई दुनिया में और हो जाएगी-कि लोगों को काम करने की जरूरत न रह जाए, मशीनें काम कर दें, ऊपर चढ़ने का कोई उपाय न रह जाए, तो आप हैरान होंगे, जो बांसुरी बजा सकते हैं, मछली मार सकते हैं, ताश खेल सकते हैं, वे अचानक टॉप पर आ गए। क्योंकि वह...आप एकदम खड़े रह गए! आप बड़ा बाजार चलाते थे और बड़ी दुकान करते थे, आपको कोई नहीं पूछ रहा है। लोग उसको पूछ रहे हैं, जो ताश खेल सकता है। क्योंकि वह फुर्सत का आदमी कीमती हो जाएगा बीस-पच्चीस साल में। अमरीका में तो वह हालत आ जाएगी कि जो आदमी फुर्सत में आनंदित हो सकता है, वह ऊंचाई पर आ जाएगा। क्योंकि काम करने वाले की कीमत उसी दिन खत्म हो जाएगी, जिस दिन काम करना मशीन के हाथ में चला जाएगा।
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