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चीजों का स्वभाव यह है कि अगर मैं किसी व्यक्ति को प्रेम करूंगा, उस व्यक्ति से सुख पाऊंगा, तो उस व्यक्ति से दुख भी पाऊंगा। जिस व्यक्ति से सुख पाएंगे, उससे दुख भी पाना पड़ेगा। सुख हमें मिलता ही उससे है, जिससे दुख मिल सकता है। सुख का दरवाजा हम खोलते नहीं कि साथ ही दुख का दरवाजा भी खुल जाता है। वे एक ही दरवाजे से दोनों आते हैं। मैं जब सुख ही चाहता हूं और दुख नहीं लेना चाहता, तो मैं चीजों का स्वभाव अंगीकार नहीं कर रहा। मैं कह रहा हूं, सुख तो ठीक, दुख मैं नहीं लूंगा ।
अब जिस व्यक्ति को मैं प्रेम करता हूं, उस व्यक्ति पर मैं क्रोध भी करूंगा। जो व्यक्ति मुझ पर प्रेम करता है, वह मुझ पर क्रोध भी करेगा। लेकिन हम सोचते हैं कि जिस पर हम प्रेम करते हैं, उस पर कभी क्रोध नहीं करना है। प्रेम जहां होगा, वहां क्रोध पैदा होगा; जहां राग होगा, वहां क्रोध होने ही वाला है। और अगर क्रोध न होगा, तो प्रेम की क्वालिटी बिलकुल और हो जाएगी, उसका गुणत्तत्व बदल जाएगा। वह फिर प्रेम नहीं, करुणा हो जाएगा। लेकिन करुणा से तृप्ति न मिलेगी आपको, क्योंकि करुणा बिलकुल शांत प्रेम है, अनाग्रह से भरा हुआ प्रेम है। आपको तृप्ति तो तब मिलती है, जब कि पैसोनेट, सक्रिय, आक्रामक प्रेम आपकी तरफ आता है। तभी आपको लगता है, जब कोई आपको जीतने आता है।
अब यह बड़े मजे की बात है, जब कोई आपको जीतने आता है, तो आपको बड़ा सुख मालूम पड़ता है। लेकिन जब कोई आपको जीत लेता है, तो बड़ा दुख मालूम पड़ता है। जब कोई जीतने आता है, तो इसलिए सुख मालूम पड़ता है कि मैं जीतने योग्य हूं; नहीं तो कोई जीतने क्यों आएगा ! और जब कोई जीत लेता है, तब पीड़ा शुरू होती है कि मैं किसी का गुलाम हो गया। और दोनों बातें संयुक्त हैं।
अगर हम स्वभाव को देखें, तो यह कलह न हो, यह विग्रह न हो ।
लाओत्से कहता है, न विग्रह और न संघर्ष ।
संघर्ष क्या है? संघर्ष पूरे क्षण यही है, संघर्ष पूरे क्षण यही है कि मैं अपने स्वभाव के अन्यथा होने की कोशिश में लगा हूं। जो मैं नहीं हो सकता, उसकी कोशिश चल रही है। और दूसरे के साथ भी यही कोशिश चल रही है कि जो वह नहीं हो सकता, वह उसको बना कर रहना है।
एक स्त्री को मैं प्रेम करूं। तो उस प्रेम को मैं कर ही तब सकता हूं, , जब स्त्री मुझे प्रीतिकर है। इसीलिए कर सकता हूं। लेकिन वह स्त्री खुश होगी कि मैं उसे प्रेम कर रहा हूं। लेकिन वह नहीं जानती कि मैं स्त्री को प्रेम कर रहा हूं, कोई दूसरी स्त्री को भी कर सकता हूं। मेरे लिए स्त्री में अभी रस है, तो ही मैं उसे प्रेम कर रहा हूं। मैं कल दूसरी स्त्री को भी प्रेम कर सकता हूं। वह खुश होगी, क्योंकि मैंने उसे प्रेम किया। लेकिन कल पीड़ा शुरू होगी, क्योंकि मैं किसी दूसरी स्त्री को प्रेम कर सकता हूं।
इसलिए हर स्त्री जिससे आप प्रेम करेंगे, प्रेम के बाद तत्काल आपके पहरे पर हो जाएगी कि आप किसी और की तरफ प्रेम में तो नहीं झुक रहे हैं। क्योंकि उसे पता तो चल गया कि आपका मन स्त्री के प्रति प्रेम से भरा हुआ है। और मन कोई व्यक्तियों को नहीं जानता, मन तो केवल शक्तियों को जानता है। मन अ नाम के पुरुष को, ब नाम की स्त्री को नहीं जानता; मन तो स्त्री और पुरुष को जानता है।
• अब वह स्त्री कोशिश करेगी कि आपके मन में स्त्री का प्रेम न रह जाए। लेकिन जिस दिन स्त्री का प्रेम चला जाएगा, उसी दिन यह स्त्री भी मन से चली जाएगी। अब संघर्ष भयंकर है। अब इसकी चेष्टा यह होगी कि स्त्री से तो प्रेम रहे, लेकिन मेरे भीतर जो स्त्री है, उसी से रह जाए। अब एक संघर्ष है, जो इम्पासिबल है, जो असंभव है, जो हो नहीं सकता, जो कभी पूरा नहीं हो सकता, जिसमें सिवाय विषाद के और कुछ हाथ नहीं लगेगा ।
सब तरफ ऐसा होता है। सब तरफ ऐसा होता है।
वोल्तेयर ने लिखा है कि एक वक्त था कि रास्ते से मैं गुजरता था तो सोचता था कि कोई मुझे नमस्कार करे। पर लोग नहीं करते थे। लोग जानते ही नहीं थे। तो बड़ी पीड़ा होती थी। बड़ी मेहनत करके वोल्तेयर उस जगह पहुंचा, जहां कि गांव से निकलना मुश्किल हो गया। तो वोल्तेयर ने लिखा है कि दुष्टों ने नींद हराम कर दी है। अकेला घूमने नहीं निकल सकता हूं; कोई न कोई मिल जाएगा, नमस्कार करके, साथ होकर बात करने लगता है।
तो वोल्तेयर ने अपनी डायरी में लिखा है कि अब मुझे खयाल आता है कि यह उपद्रव मैंने ही मोल लिया है। ये तो बेचारे पहले नमस्कार करते ही नहीं थे। मैं निकल जाता था, तब इसकी पीड़ा होती थी कि कोई नमस्कार करने वाला नहीं! और अब बाजार इकट्ठा हो जाता है जहां निकलता हूं, तो पीड़ा होती है कि ये दुष्ट पीछा कर रहे हैं।
आदमी का मन ! जिन बीमारियों को हम निमंत्रण देते हैं, जब वे आ जाती हैं, तब परेशान होते हैं। पहले आदमी चाहता है कि यश मिल जाए। और यश मिलते ही आइसोलेशन चाहता है। पहले चाहता है, यश मिल जाए । यश का मतलब है, भीड़ मिल जाए। भीड़ मिलते ही भीड़ से घबराहट होती है। हिटलर पूरी कोशिश करता है कि भीड़ मिल जाए। जब भीड़ मिल जाती है, तो फिर भीड़ से बचने की कोशिश करनी पड़ती है। बड़े मजे की बात है, जिन्हें भीड़ नहीं मिली, वे परेशान हैं; जिन्हें भीड़ मिल गई, वे परेशान हैं।
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