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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free शुरू होगा, तो उस आदमी को धोखा देना पड़ेगा। वह छिपाएगा, दबाएगा। जो उसके भीतर है, उसे प्रकट नहीं करेगा; और जो उसके भीतर नहीं है, उसे प्रकट करेगा। हमारी यह चेष्टा, अच्छाई की प्रशंसा की चेष्टा, अच्छाई को पाखंड और हिपोक्रेसी बना देती है। इसलिए जिसे हम अच्छा आदमी कहते हैं, उसमें निन्यानबे प्रतिशत पाखंडी होते हैं। लेकिन एक बार हमने अच्छाई का लेबल उन पर लगा दिया है, तो वे अपने लेबल की रक्षा के लिए जीवन भर कोशिश करते हैं। जिसको हम बुरा कह देते हैं, उसको हम अच्छे होने का द्वार बंद कर देते हैं। क्योंकि जब हम उसे इतना बुरा कह चुके होते हैं, वह इतनी बार सुन चुका होता है कि बुरा है, तो धीरे-धीरे अच्छे होने की जो आकांक्षा है, जो संभावना है, जो एडवेंचर है, वह उसके प्रति असमर्थ अपने को पाने लगता है। वह सोचता है, यह होने वाला नहीं है; मैं बुरा हूं, निंदित हूं, यह मुझसे होने वाला नहीं है। तब धीरेधीरे मैं बुरे में ही कैसे कुशल हो जाऊं, यही उसकी जीवन-यात्रा बन जाती है। लाओत्से कहता है, बुरे को बुरा मत कहो, भले को भला मत कहो; लेबलिंग मत करो; पद मत बनाओ। इतना ही जानो कि सब अपने स्वभाव से जीते हैं। इसका क्या अर्थ होगा? इसका अर्थ होगा कि समाज में कोई कैटेगरी नहीं है, समाज में कोई हायरेरकी नहीं है, समाज में कोई ऊंचा और नीचा नहीं है। क्या इसका मतलब कम्युनिज्म होगा? यह थोड़ा सोचने जैसा है। लाओत्से जिस मनुष्य की व्यवस्था की बात कर रहा है, अगर वैसी स्वीकृत हो, तो सभी मनुष्य असमान होंगे और फिर भी सभी अपने स्वभाव में होंगे। इसलिए कोई असमानता का बोध नहीं होगा। लाओत्से यह कह रहा है कि एक आदमी धन कमा सकता है, तो कमाएगा। और एक आदमी गंवा सकता है, तो गंवाएगा। और एक आदमी भीख मांग सकता है, तो भीख मांगेगा। लेकिन भीख मांगने वाला महल बनाने वाले से नीचा नहीं होगा, क्योंकि महल बनाने को हम कोई पद-मर्यादा नहीं देते। हम कहते हैं, यह उस आदमी का स्वभाव है कि वह बिना महल बनाए नहीं रह सकता, तो वह बनाता है। यह इस आदमी का स्वभाव है कि इसके हाथ में पैसा हो तो बिना लुटाए नहीं रह सकता। यह इसका स्वभाव है। हम कोई पद-मर्यादा नहीं बनाते, हम स्वभाव को स्वीकार करते हैं। और हम हर तरह के स्वभाव को स्वीकार करते हैं। असल में, साधुता का जो परम लक्षण है, वह सब तरह की स्वीकृति, हर तरह के स्वभाव की स्वीकृति है। और अगर ऐसी संभावना हो सके कि हम सब तरह के स्वभाव को स्वीकार करें, तो लाओत्से कहता है, फिर कोई विग्रह नहीं है, फिर कोई संताप नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई पीड़ा नहीं, कोई कलह नहीं है। एक मित्र से कल ही मैं बात कर रहा था। पत्नी और उनके बीच कलह है। स्वभावतः, उनको ऐसा ही खयाल था, जैसा सभी को खयाल होता है। सभी को यह खयाल होता है कि अगर यह स्त्री न होती, कोई दूसरी स्त्री होती, तो कलह न होती। दूसरी स्त्री का कोई अनुभव नहीं है। वह दूसरी स्त्री काल्पनिक है। वह कहीं भी नहीं है। स्त्री को भी यही खयाल होता है कि इस आदमी के साथ जुड़ गया, यह भूल हो गई। कोई दूसरा पुरुष होता, तो यह उपद्रव जीवन में न होता। तो दूसरा कौन सा पुरुष ? वह काल्पनिक है। वह कहीं है नहीं। लेकिन सभी पुरुषों का हमें अनुभव नहीं हो सकता, सभी स्त्रियों का अनुभव नहीं हो सकता; इसलिए भ्रम बना रहता है। नहीं, उन मित्र से मैंने कहा कि यह सवाल इस स्त्री और उस स्त्री का नहीं है; स्त्री और पुरुष के स्वभाव का है। उस स्वभाव में कलह है। स्त्री और पुरुष के बीच हमने जो व्यवस्था की, उस व्यवस्था का है। उस व्यवस्था में कलह है। जहां भी मालकियत होगी, वहां कलह होगी। और जहां भी हम संबंधों को निश्चित करेंगे सदा के लिए, वहां कलह होगी। क्योंकि चित्त बहुत अनिश्चित है और संबंध बहुत निश्चित हो जाते हैं। आज मैं किसी से कहता हूं कि तुमसे सुंदर कोई भी नहीं है। कल सुबह कहूंगा, यह जरूरी कहां है? कल सुबह ऐसा मुझे लगेगा, यह भी जरूरी कहां है? और इसका यह अर्थ नहीं है कि मैंने जो आज कहा कि तुमसे सुंदर कोई भी नहीं, यह झूठ था। इसका यह अर्थ नहीं, बिलकुल सच था। यह मेरे क्षण का सत्य था, इस क्षण मुझे ऐसा ही लगता था। लेकिन यह क्षण मेरे सारे भविष्य को बांधने व नहीं हो सकता। कल सुबह मुझे लगेगा कि नहीं, वह भूल थी। वह भी सत्य होगा उस क्षण का। और तब मैं क्या करूंगा? या तो इस पुराने सत्य का धोखा दूंगा, पाखंड खड़ा करूंगा। और पाखंड खड़ा करूंगा, तो कलह होगी। मैं खुद ही अपनी आंखों में नीचे गिरता मालूम पडूंगा कि कल मैंने क्या कहा और आज मैं क्या करता हूं! जहां हम संबंध थिर करेंगे, वहां अथिर मन कष्ट लाएगा। जहां मांग होगी, वहां संघर्ष होगा। जहां ऊंचा - नीचा होगा कोई, वहां जो ऊंचा है, वह ऊंचे रहने की अपनी पूरी चेष्टा करेगा, इसलिए संघर्ष में रहेगा; जो नीचा है, वह ऊपर आने की चेष्टा करेगा, इसलिए संघर्ष में रहेगा। हमारी सारी की सारी चिंतना जो है, वह कलह की है। कलह-शून्य तो तब हो सकता है मनुष्य, जब वह चीजों के स्वभाव को स्वीकार करता हो । अब जैसे चीजों का स्वभाव क्या है? इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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