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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free उसमें भी बात क्या है? एक आदमी आइंस्टीन की तरह पैदा होता है, इसमें आइंस्टीन की गुणवत्ता क्या है? लाओत्से यह कहता है, इसमें आइंस्टीन का हाथ क्या है? और एक आदमी एक महामूढ़ की तरह पैदा होता है, इसमें उसका कसूर क्या है? लाओत्से यह कह रहा है कि प्रकृति इसे ऐसा बनाती है और उसे वैसा बनाती है। हम चूंकि इस प्रकृति को स्वीकार नहीं कर पाते और एक के साथ पद-मर्यादा जोड़ देते हैं और दूसरे के साथ पदहीनता जोड़ देते हैं, तो हम विग्रह और कलह और संघर्ष को जन्म देते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि हम कभी यह नहीं देख पाते कि प्राकृतिक क्या है, स्वाभाविक क्या है। हम अपनी आकांक्षाओं को प्रकृति पर थोप कर विचार करते हैं। लाओत्से है प्रकृतिवादी, वह है स्वभाववादी । ताओ का अर्थ होता है, स्वभाव। वह कहता है, हम ऐसे हैं। और ऐसा अपने को ही नहीं कहता, वह दूसरे को भी कहता है कि दूसरा ऐसा है। पर हम कहेंगे, ऐसी बात को मानने का तो अर्थ यह होगा कि जगत में फिर चोर हैं, बेईमान हैं, बुरे लोग हैं; अगर हम ऐसा मानें कि सब प्रकृति है और स्वभाव है, तो प्रकृति ने एक को चोर बनाया, तो फिर हम क्या करें? प्रकृति ने एक को बेईमान बनाया, तो फिर हम क्या करें? बेईमान को स्वीकार करें और बेईमानी चलने दें? लाओत्से के साथ नीतिवादी का यही संघर्ष है। नीतिवादी कहेगा, यह सूत्र खतरनाक है। समझ लें, इतने दूर तक भी मान लें कि एक आदमी मूढ़ है और एक आदमी बुद्धिमान है, तो ठीक है, चलो प्रकृति है। लेकिन एक आदमी बेईमान है, एक आदमी चोर है, एक आदमी हत्यारा है, तो हम क्या करें? स्वीकार कर लें? समझ लें कि प्रकृति ने ऐसा बनाया? लाओत्से से अगर पूछें, तो लाओत्से कहेगा कि तुमने स्वीकार नहीं किया, तुमने कितने हत्यारों को गैर-हत्यारा बना पाए ? तुमने स्वीकार नहीं किया, तुमने कितने बेईमानों को ईमानदार बनाया? तुमने स्वीकार नहीं किया, तुमने दंड दिए, तुमने अपराधी करार दिया, तुमने फांसियां लगाईं, तुमने कोड़े मारे, तुमने जेलों में बंद किया, तुमने जीवन भर की सजाएं दीं। तुम कितने लोगों को बदल पाए? लाओत्से कहता है, सचाई तो यह है कि तुम जिसे दंड देते हो, तुम उसे उसकी बेईमानी में और थिर कर देते हो। और तुम जिसे सजा देते हो, उसे तुम उसके अपराध से कभी मुक्त नहीं करते, तुम उसे और निष्णात अपराधी बना देते हो। और जो व्यक्ति एक बार कारागृह में होकर आता है, वह व्यक्ति धीरे-धीरे कारागृह का पंछी हो जाता है। क्योंकि कारागृह में उसे सत्संग मिलता है। कारागृह से वह बहुत कुछ सीख कर वापस लौटता है। कारागृह से वह वैसे ही वापस नहीं लौटता जैसा गया था। कारागृह में उसे गुरु मिल जाते हैं, और बड़े जानकार मिल जाते हैं, अनुभवी मिल जाते हैं। और एक बार तुम्हारा निर्णय कि फलां व्यक्ति अपराधी है और चोर है, उसके ऊपर सील-मुहर लग जाती है। उसको ईमानदार होने का अब उपाय नहीं रह जाता। अब वह ईमानदार होना भी चाहे, तो कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं है। लाओत्से कहता है कि तुम एक बेईमान को ईमानदार नहीं बना पाए । इंग्लैंड में कोड़े की सजाएं थीं चोरों के लिए डेढ़ सौ साल पहले बंद की गईं। क्योंकि सड़क के चौराहे पर खड़े करके कोड़े मारते थे नग्न, ताकि सैकड़ों लोग देख लें। देख लें और प्रभावित हों और दूसरे लोग चोरी न करें। लेकिन डेढ़ सौ साल पहले ऐसा हुआ कि भीड़ खड़ी थी, और दो आदमी उस भीड़ में जेब काट रहे थे और एक आदमी को नग्न करके बीच में कोड़े मारे जा रहे थे। भीड़ तो देखने में संलग्न थी। किसी को खयाल न था कि कोई जेब काट लेगा। वहां अनेक लोगों की जेबें कट गईं। तो इंग्लैंड की पार्लियामेंट में विचार चला कि यह तो हैरानी की बात है। हम सोचते हैं कि कोड़े मारे जाएं सड़क पर कि लोग चोरी न करें। हैरानी मालूम होती है, जहां कोड़े मारे जा रहे थे, वहां लोगों की जेबें कट गईं! क्योंकि लोग इतने तल्लीन थे देखने में कोड़े, और किसी को खयाल न था कि यहां चोरी हो जाएगी। आदमी को हम इतनी सजाएं देकर भी जरा नहीं बदल पाए। आदमी रोज-रोज और बुरा होता चला गया है। जितने कानून बढ़ते हैं, लाओत्से के हिसाब से, उतने अपराधी बढ़ जाते हैं। हर नया कानून नए अपराधी पैदा करने का सूत्र बनता है। हर दंड नए जुर्म पैदा कर जाता है। तो लाओत्से कहता है, तुम भला कहते हो कि क्या होगा दुनिया का, अगर तुम न बदलोगे तो! हालांकि तुम बदल किसी को भी नहीं पाए। दुनिया की इतनी अदालतें और इतने कारागृह और इतनी दंड संहिताएं, कोई किसी को नहीं बदल पाए । पर ऐसा मालूम होता है कि 'कुछ लोगों का निहित स्वार्थ है। एक चोर पर मैंने सुना है कि तीसरी बार सजा हो रही है। और यह आखिरी है, क्योंकि अब उसे आजीवन कारावास मिल रहा है। और मजिस्ट्रेट उससे आखिरी वक्त पूछता है कि तू पैदा हुआ, तूने मनुष्यता के साथ कौन सा सदव्यवहार किया? इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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