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इस फर्क को समझ लें, इस फर्क पर बड़ी बातें निर्भर होंगी। योग्यता को हम स्वभाव क्यों न मानें! योग्यता को हम पद क्यों बनाएं? एक आदमी गणित में कुशल है, यह कुशलता उसका स्वभाव है। और एक आदमी संगीत में कुशल है, यह कुशलता उसका स्वभाव है।
और एक आदमी गणित में कमजोर है, यह कमजोरी उसका स्वभाव है। जो गणित में कुशल है, उसकी कोई खूबी नहीं, क्योंकि गणित की कुशलता उसे प्रकृति से मिलती है। और जो गणित में कुशल नहीं है, उसका कोई दुर्गुण नहीं, क्योंकि गणित की यह अकुशलता उसे उसी तरह प्रकृति से मिलती है जैसे कुशलता वाले को कुशलता मिलती है।
झेन फकीर रिझाई एक व्यक्ति को बता रहा है झोपड़े के बाहर, कि देखते हो आकाश को छूने वाले बड़े-बड़े वृक्ष? और देखते हो छोटीछोटी झाड़ियां? और फिर रिझाई कहता है कि मुझे वर्षों हो गए इन वृक्षों के पास रहते, कभी मैंने झाड़ियों को यह सोचते नहीं देखा कि बड़े वृक्ष बड़े क्यों हैं। और न कभी मैंने बड़े वृक्षों को अकड़ते देखा कि ये झाड़ियां छोटी हैं और हम बड़े हैं।
तो आदमी पूछता है, इसका राज क्या है?
तो रिझाई कहता है, इसका राज सिर्फ इतना है कि झाड़ियां प्रकृति से झाड़ियां हैं, वृक्ष प्रकृति से वृक्ष हैं। बड़े होने में कोई पद नहीं, छोटे होने में कोई पदहीनता नहीं। जो प्रकृति वृक्षों को बड़ा बनाती है, वही प्रकृति घास के पौधे को छोटा बनाती है। और जरूरी नहीं है कि जो ऊंचा है, वह हर स्थिति में ऊंचा हो। जब तूफान आते हैं, तो बड़े वृक्ष नीचे गिर जाते हैं और छोटे पौधे बच जाते हैं।
नेपोलियन की ऊंचाई छोटी थी, बहुत लंबा नहीं था। और अक्सर ऐसा हो जाता है कि बहुत छोटी ऊंचाई के लोग बड़े पदों पर पहुंचने की कोशिश करते हैं। अपनी लाइब्रेरी में एक दिन किताब निकाल रहा था, लेकिन अलमारी ऊंची थी। और हाथ उसका पहुंचता नहीं था। तो उसके साथ जो उसका पहरेदार था, वह तो कोई सात फीट ऊंचा आदमी था, उसने कहा कि महानुभाव, अगर कुछ अनुचित न हो और मैं आपके आगे बढ़ कर निकालने की आज्ञा पाऊं, तो मुझे आज्ञा दें। नो वन इज़ हायर दैन मी इन योर आर्मी-मुझसे ऊंचा तुम्हारी सेना में कोई भी नहीं है। नेपोलियन ने बहुत क्रोध से देखा और कहा कि नॉट हायर बट लांगर-ऊंचा मत कहो, सिर्फ लंबा। तुमसे लंबा फौज में कोई भी नहीं है, ऊंचे तो बहुत हैं। ऊंचा तो मैं ही हूं।
नेपोलियन को चोट लगनी स्वाभाविक है। कहे हायर! इसमें भाषा ही की भर भूल नहीं थी, भूल भारी थी। नेपोलियन ने फौरन सुधार कर दिया कि कहो लांगर, कहो लंबा।
ऊंचा और लंबे में क्या फर्क किया नेपोलियन ने? लंबा तो सिर्फ प्राकृतिक घटना है। ऊंचे के साथ पद-मर्यादा है। ऊंचे के साथ वैल्युएशन है। लंबे के साथ कोई मूल्य नहीं है। तुम लंबे हो सकते हो; लंबाई के साथ कोई मूल्य नहीं है। लंबाई स्वभाव है। ठीक है कि तुम सात फीट लंबे हो, दूसरा पांच फीट लंबा है; इसमें कोई खास गुण की बात नहीं है। लेकिन ऊंचाई! ऊंचाई में हमने गुण जोड़ा है, वैल्युएशन जोड़ा है।
लाओत्से कहता है, यदि योग्यता के साथ पद-मर्यादा न जुड़े, तो न तो जगत में विग्रह हो और न संघर्ष।
काश, हम चीजों को ऐसा देखना शुरू करें कि प्रत्येक अपने स्वभाव के अनुकूल वर्तन करता है, और जैसा उसका स्वभाव है, उसके लिए वह जिम्मेवार नहीं। हम कभी अंधे आदमी को जिम्मेवार नहीं ठहराते कि तुम अंधे होने के लिए जिम्मेवार हो। एक आदमी जन्म से अंधा है, हम कभी ठहराते नहीं कि तुम जिम्मेवार हो। वरन हम दया करते हैं।
अभी मेरे पास एक युवक कोई दो साल पहले मिलने आया-डेढ़ साल, दो साल हुआ। श्रीनगर में महावीर के ऊपर शिविर था। जब हम सब चले आए, तब उस युवक को पता चला होगा, अंधा था। तो वह वहां से जबलपर मेरे पास आया उतनी यात्रा करके।
तो मैं उससे पूछा कि तू अंधा है, तुझे बड़ी तकलीफ हुई होगी, इतनी दूर की यात्रा तूने की है!
उसने कहा कि नहीं, अंधा होने से मुझे बड़ी सुविधा है; सभी मुझे सहायता कर देते हैं। कोई मेरा हाथ पकड़ लेता है, कोई मुझे टिकट दे देता है, कोई मुझे रिक्शे में बिठा देता है। अब यहां भी रिक्शा वाला मुझे मुफ्त ले आया है और वह बाहर राह देख रहा है कि मैं आप से मिल कर जाऊं, तो वह मुझे स्टेशन वापस छोड़ देगा। अंधे होने से मुझे बड़ी सुविधा है। आंख होती, तो इतनी सुविधा मुझे नहीं हो सकती थी।
अंधे पर हम दया कर देते हैं। क्योंकि हम मानते हैं, उसका कसूर क्या! लेकिन बुद्धि मंद हो किसी की तो हम दया नहीं करते। हम कहते हैं, मूर्ख हो! कभी हम नहीं पूछते कि इसमें उसका कसूर क्या? एक आदमी मूढ़ है, तो कसूर क्या? अपराध क्या?
नहीं, उस पर हमें दया नहीं उठती। वह जगत में निंदित होगा, पीड़ित होगा, परेशान होगा। जगह-जगह ठुकराया जाएगा, पीछे किया जाएगा। कोई उस पर दया नहीं करेगा। क्यों? क्योंकि बुद्धि को हमने महत्वाकांक्षा का सूत्र बना लिया। बिना बुद्धि के महत्वाकांक्षा में गति नहीं है। इसलिए बुद्धि का जो माप है, आई.क्यू. जो है, बुद्धि का जो अंक है, वह बड़ा महत्वपूर्ण हो गया।
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