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________________ Download More Osho Books in Hindi दूसरे मार्ग आपको समझ कर चलते हैं। वे कहते हैं, ठीक है, आपसे नहीं होगा छोड़ना तो बांधो। हम कुछ विधियां बताते हैं। इनको पकड़ो जोर से। इन पर मेहनत करो। मेहनत करो इतनी कि एक क्षण आ जाए-हालांकि वे यह आपसे नहीं कहेंगे, वे कहेंगे, मेहनत करते जाओ, करते जाओ। एक क्षण आ ही जाएगा, जब सब मेहनत चुक जाएगी, आप असहाय होकर छोड़ दोगे। वे कहते हैं, तैरो जोर से। अब कब तक तैरोगे? यह सागर का कोई किनारा नहीं है, जहां लग जाओगे तैर कर । Download Hindi PDF Books For Free लाओत्से कहता है, मत मेहनत उठाओ, क्योंकि कोई किनारा होता, तो तैर कर पहुंच भी जाते। कोई किनारा है नहीं । मत मेहनत उठाओ, बह जाओ। लाओत्से कहता है, कोई मंजिल नहीं है; यह सागर ही मंजिल है। कहीं कोई मंजिल नहीं है, जिस में तुम तैर कर पहुंच जाओगे। यह सागर ही मंजिल है, इसमें ही निमज्जित हो जाना है। इसी में एक हो जाना है। तैरोगे तो लड़ते रहोगे। लड़ते रहोगे तो एक कैसे होओगे? सागर से अलग बने रहोगे । तैरने वाला सागर से एक कभी नहीं होता। वह लड़ रहा है। तैरने का मतलब है फाइट । वह है लड़ाई। वह यह है कि हम सागर को डुबाने न देंगे, सागर को हम मिटाने न देंगे; हम बचेंगे। सागर की लहरों से हम टक्कर लेंगे। हम किनारा खोजेंगे, हम मंजिल पर जाएंगे। हम हमारी दिशा है; वहां हमें पहुंचना है। लक्ष्य है, जिसे हमें पाना है। बहने वाला कहता है कि नहीं। लाओत्से कहता है, न कोई मंजिल है सिवाय इस सागर के; न कोई किनारा है सिवाय इस मझधार के; न कहीं पहुंचना है सिवाय वहीं जहां तुम हो। इसलिए छोड़ दो, तैरो मत। बह जाओ, बहना ही मंजिल है। तुम इसी वक्त पा लोगे, अगर तुमने छोड़ दिया तैरना । तो तुम सागर से एक हो जाओगे। दुश्मनी टूट जाएगी, मित्रता सिद्ध हो जाएगी । लेकिन हम कहते हैं, ऐसा कैसे छोड़ दें? कोई किनारा है। उसे अगर हम ऐसा बहने लगे, तो पता नहीं, उस जगह पहुंच पहुंच पाएं, जहां पहुंचना था। तो हम तो तैरेंगे तो वे विधियां जो हैं, वे कहती हैं, तैरो! फिर जोर से तैरो। वह रही मंजिल सामने, तैरो । जितनी ताकत लगाओ, तैरो जन्म-जन्म तैरो एक दिन तैरतैर कर इतने थक जाओगे-सागर तो नहीं थकेगा, आप थक जाओगे एक घड़ी आएगी, हाथ-पैर निढाल हो जाएंगे। एक घड़ी आएगी, सांसें जवाब दे देंगी। फेफड़े कहने लगेंगे, बहुत हो गया, न कोई किनारा मिलता, न कोई पार मिलता, न कोई मंजिल है। जहां जाते हैं, यही सागर है। तैरतैर कर जहां पहुंचते हैं, यही सागर है। किनारा दिखता है दूर से; पास जाते हैं, लहरें ही मिलती हैं। मंजिल दिखती है दूर से; पास पहुंचते हैं, पता चलता है, सागर है। जन्म-जन्म तैर कर पाते हैं, सागर है, सागर है, सागर है, और कुछ भी नहीं! थक गए अब, छोड़ते हैं। उस छोड़ने में वही घटना घट जाती है, जो लाओत्से आप से कई जन्मों पहले कहा था कि छोड़ दो। और जिस दिन आप छोड़ोगे, उस दिन आपके मन को होगा कि बड़ी भूल की कि लाओत्से की पहले न मान ली। लेकिन शायद, आप जैसे आदमी थे, पहले माना नहीं जा सकता था। आप जैसे आदमी थे, होशियार, पहले नहीं माना जा सकता था। होशियार आदमी तो जब तक पूरी होशियारी न कर ले, तब तक नहीं मानता है। हां, जब होशियारी थक जाती है, टूट जाती है, बिखर जाती है, तब। पर किसी भी स्थिति में घटना तो घटती है, जो लाओत्से कहता है, तभी ! आप थक कर वहां पहुंचोगे कि समझ कर ? समझ कर जो काम अभी हो सकता है, थक कर वह जन्मों में होता है। बस, एक टाइम गैप का फर्क पड़ता है। और कोई फर्क नहीं पड़ता है। प्रश्न: कृष्णमूर्ति यही कहते हैं? उनकी अलग चर्चा करनी पड़ेगी। जल्दी ही उन पर चर्चा रखेंगे तो खयाल में आएगा। आज इतना ही। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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