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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free मोक्ष मनुष्य का स्वभाव है; संसार मनुष्य का विभाव है। संसार बंधी हुई मुट्ठी जैसा है; मोक्ष खुली हुई मुट्ठी जैसा है। लाओत्से कहता है, तुम पूछते हो कि खोलने के लिए क्या करें! बांधने के लिए कोई पूछता है क्या करें, तो समझ में आता है। खोलने के लिए कुछ नहीं करना है, सिर्फ खोल दो। जस्ट ओपन इट। हमको बहुत कठिनाई लगती है कि सिर्फ खोल कैसे दो! असल कारण यह है कि हम खोलना नहीं चाहते। खयाल है कि मुट्ठी में कोहनूर बंधा है। और लाओत्से कहता है, बस खोल दो। तो वह कोहनूर गिर जाएगा। वह हम छिपाए रखते हैं। वह हम लाओत्से को भी नहीं बताते कि हमारी मुट्ठी में कोहनूर बंधा है। उससे हम पूछते हैं, कैसे खोलें? खोलना बहुत कठिन है, कुछ अभ्यास बताएं! अभ्यास वगैरह तरकीब है पोस्टपोनमेंट की कि तुम जब तक अभ्यास बताओ, तब तक हम वह कोहनूर को तो पकड़े रहें। पहले ठीक से खोलना आ जाए तब खोलेंगे। लाओत्से को भी हम नहीं बताते कि हमारी मुट्ठी में कोहनूर है। और लाओत्से बड़ा हैरान होता है कि खोलने के लिए तो कुछ भी नहीं करना पड़ता मित्र, खोल दो! पर उसे पता नहीं कि खोलने के लिए कुछ करना पड़ेगा। क्योंकि यह आदमी मुट्ठी के भीतर कुछ बांधने के खयाल में है। हम ऐसे ही तनाव से थोड़े ही भरे हैं, हम सब बड़े मतलब से तनाव से भरे हैं। हम सोचते हैं, तनाव छोड़ दें, तो वे सब कोहनूर छूट जाएंगे। जहां-जहां तनाव की मुट्ठी है, वहां-वहां कुछ-कुछ हमने पकड़ा है। मालकियत छोड़ दो। तो हमारी सारी मालकियत का ही तो सारा खेल है! फिर कल बेटा सुबह उठ कर जाने लगा तो? कल पत्नी ने कहा कि अच्छा नमस्कार, फिर? सारा मालकियत का तो खेल है, वह कल सुबह बिखर जाएगा। हम कहते हैं, बात बिलकुल समझ में आ गई, लेकिन यह तनाव को छोड़ें कैसे? कोई विधि बताओ! यह विधि हम पूछते हैं पोस्टपोनमेंट के लिए, स्थगन के लिए। तुम्हारी विधि बताओ, हम साधेंगे, कोशिश करेंगे, फिर देखेंगे। जब खुलेगी, तो खोल लेंगे। अभी तो खुलती नहीं है। लाओत्से की समझ में बिलकुल नहीं पड़ता कि तुम बात कैसी कर रहे हो! मुट्ठी खोलने के लिए कुछ करना पड़ेगा? कोई मंत्रतंत्र? कुछ नहीं करना पड़ेगा। स्वभाव तुम्हारा जो है, उसके लिए कुछ नहीं करना पड़ेगा। तुम बस खोल दो। तुम्हें करना पड़ रहा है बांधने के लिए। अब एक और मजे की बात है। अगर आप नहीं खोलते हैं इस भांति, तो फिर एक दूसरा उपाय है, जो दूसरे हैं। दो ही मार्ग हैं जगत में: करके न करने में पहुंचो, या न करने में सीधे उतर जाओ। छलांग ले लो, या सीढ़ियां चढ़ जाओ। अगर आप राजी नहीं होते अभी मुट्ठी खोल देने को, तो फिर आपके लिए रास्ते खोजने पड़ते हैं। तो फिर आपसे कहा जाता है, जोर से मुट्ठी को बांधो। इतना बांधो, बांधते चले जाओ, जितनी ताकत हो उतना बांधो! क्या आपको पता है कि एक सीमा आ जाएगी आपके बांधने की, उसके आगे आप मट्ठी न बांध सकेंगे! और अचानक आप पाएंगे कि मुट्ठी खुल रही है और कोहनूर गिर रहा है। लेकिन तब आप बांध भी न पाएंगे, क्योंकि सारी तो शक्ति लगा चुके, अब शक्ति बची नहीं है बांधने को। तो जो मेथड के मार्ग हैं, विधि के मार्ग हैं, वे कहते हैं, बांधो। वे आपको जान कर कहते हैं। आपकी नासमझी इतनी प्रकट है कि आपको जान कर कहते हैं। आपको भलीभांति पहचानते हैं कि आपसे खुलेगी नहीं। आपसे तो खुलेगी तब, जब बंध न सकेगी। इस बात को ठीक से समझ लें। जब आपसे बंधेगी ही नहीं, जब आप अचानक पाएंगे कि सारी कोशिश कर रहे हैं भीतर, लेकिन ताकत साथ नहीं देती है, अब बंधती ही नहीं है, अब खुली जा रही है। जब आपसे बंधेगी ही नहीं, तब खुलेगी। तो फिर आपको बंधवाने का उपाय करना पड़ता है। सारी विधियां आपकी मुट्ठी को उस सीमा तक ले जाने की हैं, टेंशन टू दि क्लाइमेक्स, आखिरी शिखर तक तनाव, कि उसके बाद बिखराव आ जाता है। सब झटक कर गिर जाता है। अचानक आप पाते हैं कि हाथ खुला है और कोहनूर वगैरह है नहीं। कोहनूर था नहीं कभी। पर खोल कर तक नहीं देखा कि कहीं गिर न जाए। कोहनूर मुट्ठी में है या नहीं, इसको कभी खोल कर भी नहीं देखा। क्योंकि कहीं खोल कर देखें, गिर जाए या पड़ोसी देख ले! तो बांधे चले जाते हैं, बांधे चले जाते हैं। जिस दिन खुलती है मुट्ठी, उस दिन पता चलता है, कोहनूर तो नहीं है। इतनी मेहनत व्यर्थ चली जाती है। विधि कहती है, बांधो। अविधि का मार्ग, लाओत्से का, कहता है, खोले बिना पाओगे नहीं। तो तुम चाहे अभी खोल लो। लाओत्से कहता है, अभी ही खोल लो। लाओत्से को पता है कि हाथ में कोई कोहनूर नहीं है। पर आपको पता नहीं है। इसलिए हमें अड़चन होती है। दूसरे मार्ग भी यही करवाते हैं, जो लाओत्से करवा रहा है। लेकिन आपको समझ कर चलते हैं। लाओत्से वही कह रहा है, जो वह खुद को समझ कर कह रहा है। अक्सर वह आपके सिर पर से निकल जाएगा। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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