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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free पहचाना है, नाम भी पता है। पर इतनी जल्दी है अब लाने की उस नाम को कि लगता है जबान पर रखा है, और फिर भी नहीं आता वह आदमी चला गया है। आप अपने अखबार पढ़ने में लग गए हैं, कि चाय पीने में लग गए हैं, और अचानक वह नाम आपकी जबान पर आ गया है। जब कोशिश कर रहे थे, तब वह खो गया था; और जब बिलकुल कोशिश नहीं कर रहे हैं, वह आ गया है। इस सदी के जो बड़े से बड़े वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं, उन सभी आविष्कारकों का यह अनुभव है कि जिसे वे खोज रहे थे, उसे वे तब तक न खोज पाए, जब तक खोजने का मन रहा। बड़े से बड़े आविष्कार इस सदी के जो हैं, जिन बड़े-बड़े आविष्कारों पर नोबल पुरस्कार मिले हैं, उन अधिकतम पुरस्कृत लोगों का यह अनुभव है कि जो हमने जाना, वह कोशिश से नहीं जान पाए। किसी क्षण में जब कोई कोशिश न थी, कोई चीज भीतर से उठी और जवाब आ गया। मैडम क्यूरी ने तो रात सोते वक्त अपने गणितों के उत्तर लिखे। दिन भर थक गई है, परेशान हो गई है, नहीं उत्तर आते हैं। सो गई है। रात नींद में उत्तर आ गया है। उठ कर उत्तर लिख लिया है। सुबह पाया कि उत्तर सही है। और उत्तर बिना प्रोसेस के आया है, क्योंकि रात सिर्फ उत्तर लिखा है। फिर प्रोसेस में कभी तो दिनों लग गए पूरी करने में। उत्तर तो मिल गया है। यह उत्तर कहां से आया? जो मनुष्य के अंतरतम को जानते हैं, वे कहते हैं, जो भी जाना जा सकता है, वह मनुष्य जाने ही हुआ है। जो भी इस जगत में कभी भी जाना जाएगा, उसे आप इस क्षण भी जान रहे हैं। सिर्फ आपको पता नहीं है। मनुष्य की अंतस चेतना में वह सब छिपा है, जो कभी भी प्रकट होगा। वृक्ष में जो पत्ते हजार साल बाद प्रकट होंगे, वे भी बीज में छिपे थे। अन्यथा वे प्रकट नहीं हो सकते हैं। हजार साल बाद आदमी जो जानेगा, आदमी आज भी जानता है। पर जानता नहीं कि जानता है। बाहर खोज-बीन में उलझा हआ है। जितने भी आविष्कार के क्षण हैं, वे रिलैक्स्ड, विश्राम के क्षण हैं। न्यूटन बैठा है वृक्ष के तले और सेव गिर गया। विश्राम का क्षण था; कोई प्रयोगशाला नहीं थी वह। एक मजाक मैंने सुना है। एक वैज्ञानिक अपने विद्यार्थियों को प्रयोगशाला में समझा रहा है कि बुद्धि पर जोर डालो, थोड़ी शर्म खाओ। पता नहीं तुम्हें कि न्यूटन वृक्ष के नीचे बैठा था, और फल गिरा और उसने कितना बड़ा आविष्कार कर लिया! और तुम इतनी मेहनत करके भी कुछ नहीं कर पा रहे हो। एक युवक खड़े होकर कहता है कि हमें भी वृक्ष के नीचे बैठने दो, तो शायद फल गिरे और कोई आविष्कार हो जाए! लेकिन इस प्रयोगशाला के तनाव में न्यूटन भी कुछ न कर पाता। यह खोजने की इतनी जो चेष्टा है, इतना जो तनाव और टेंशन है, शायद न्यूटन भी कुछ न कर पाता। न्यूटन भी सोच नहीं रहा था उस वक्त; बिना सोचे बैठा था। इस जगत में जो बड़े से बड़ी खोजें घटित होती हैं, वे उन क्षणों में होती हैं, जब मन होता है विश्राम में और निर्विचार। लाओत्से का आधारभूत दर्शन: मनुष्य चेष्टा न करे, प्रयास न करे, कर्ता न बने, दावेदार न हो, तो उसे वह सब संपदा मिल जाएगी, जिसकी तलाश है। तलाश से नहीं मिलेगी। यह किसी दिन जब आपको खयाल में आ जाएगा। और जरूरी नहीं है कि जब मैं समझा रहा हूं, तब खयाल में आ जाए। हो सकता है, किसी वृक्ष के नीचे जब आप बैठे हों, कोई फल गिरे और लाओत्से समझ में आ जाए। क्योंकि जब मैं समझा रहा हूं, तब आप समझने को आतुर होते हैं, उत्सुक होते हैं। तब आप समझने के लिए तने होते हैं, तब समझने की चेष्टा चल रही होती है। वही चेष्टा बहत बार बाधा बन जाती है। निश्चेष्ट जब आप पड़े हों। अभी स्कैंडिनेविया, स्वीडन, स्विटजरलैंड एक नई शिक्षा की पद्धति पर काम चल रहा है। वह पद्धति को मैं लाओत्सियन कहूंगा। वह पद्धति बहुत नई है। वह पद्धति यह है कि बच्चों को सिखाओ मत, बच्चों को सीखने पर जोर मत डालो। अभी कक्षा है, तो बच्चे तने हए बैठे रहते हैं। अगर कोई बच्चा दोनों पैर टेबल पर फैला कर और सिर टिका कर बैठ जाए, तो शिक्षक कहता है, अशिष्टता है। यह तुम क्या कर रहे हो? सम्हल कर बैठो, सीधे बैठो, रीढ़ तनी हुई रखो। लेकिन अभी मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इससे हम बहुत ज्यादा नहीं सिखा पा रहे हैं। तो नया प्रयोग चल रहा है। कक्षा में इस तरह की व्यवस्था है कि बच्चे बिलकुल विश्राम में बैठ सकें; कोई नियम का आग्रह नहीं है कि वे कैसे बैठे। जो उनका शरीर रुचिकर मानता हो, वैसे बैठ जाएं। जिसको लेटना हो, वह लेट जाए; जिसको बैठना है, बैठ जाए; जिसको खड़ा होना है, खड़ा हो जाए; जिसको फर्श पर पैर पसार लेने हैं, वह फर्श पर पैर पसार ले। शिक्षक जब बोले, तो बच्चे आंख बंद रखें। उलटा है बिलकुल। शिक्षक जब बोले, बच्चे आंख बंद रखें। बच्चे समझने की कोशिश न करें, केवल सुनें। समझने की कोशिश ही न करें कि शिक्षक क्या कह रहा है; केवल सुनें। शिक्षक को ही न सुनें अकेला; बाहर झींगर की आवाज आ रही है और मेंढक वर्षा में बोल रहे हों, उनको भी सुनें। हवा का सर्राटा आ इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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