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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free रहा है, हवा की आवाज हो रही है, उसको भी सुनें। खुद के हृदय की धड़कन मालूम पड़ रही है, उसको भी सुनें। सुनें! रिलैक्स्ड, विश्राम पड़े हुए सुनते रहें। और बड़ी हैरानी की बात हुई है कि जो कोर्स दो साल में हो सकता है, वह तीन महीने में हो जाता है। जो शिक्षण पुरानी व्यवस्था और पद्धति से दो साल लेता है, वह तीन महीने लेता है इस पद्धति से। और उस पुराने शिक्षण में दो साल में बच्चे के बहुत से मानसिक तंतु टूट जाते हैं। सच तो यह है कि विश्वविद्यालय से निकलने के बाद शायद ही कोई हो जो पढ़ता लिखता हो। वह इतना ऊब गया होता है, इस बुरी तरह थक गया होता है कि जीवन भर का काम निपट गया होता है। जब कि असलियत यह है कि विश्वविद्यालय सिर्फ पढ़ने की क्षमता देता है, अभी पढ़ना शुरू होना चाहिए। सिर्फ समझने की क्षमता देता है, समझना शुरू होना चाहिए। तो हम समझते हैं, अंत आ गया। आ ही जाएगा, क्योंकि हम इतना थका डालते हैं, इतना तनाव दे देते हैं; सीखने जैसा तो कुछ बहुत नहीं हो पाता, लेकिन सीखने की चेष्टा बहुत चलती है। इस नई पद्धति में, इसको वे कहते हैं, सब्लिमिनल जो कांशसनेस है, जो हमारी इस ऊपर की चेतना के नीचे दबी हुई जो चैतन्य की धारा है, उस धारा को सीधी शिक्षा। बीच में आपको हम नहीं लेते। आपको तनाव करने की जरूरत नहीं, आप पड़े रहो । रूस हिप्नोपेडिया पर बहुत से प्रयोग कर रहा है-रात्रि- शिक्षण पर कि विद्यार्थी सो रहा है, उसके कान के पास छोटा सा यंत्र लगा है। वह यंत्र, जब उसकी गहरी नींद शुरू हो जाएगी घंटे भर के बाद, तब वह यंत्र बोलना शुरू कर देगा। और दो घंटे रात में शिक्षा होगी। समझो कि बारह से दो के बीच। दो बजे वह यंत्र घंटी बजाएगा। विद्यार्थी उठेगा और उसे जो भी याद आता हो, इस दो घंटे में जो नींद में उसने सीखा, उसे नोट कर लेगा, फिर सो जाएगा। फिर सुबह चार से छह, उसको दो घंटे फिर पुनरुक्ति होगी । और बड़ी हैरानी की बात है कि जो महीनों श्रम करके हम नहीं समझा सकते, वह सात दिन की हिप्नोपेडिया से, सम्मोहनशिक्षा से पूरा हो जाता है। क्योंकि उस वक्त कोई चेष्टा नहीं, कोई तनाव नहीं, बच्चा नींद में तैर रहा है। कोई बात सीधी चली जाती है, हृदय तक पहुंच जाती है। फिर वह उसे कभी नहीं भूलता है। बुद्धि कोई श्रम नहीं करती है। यह सब लाओत्सियन है। अगर इसको हम ठीक से समझें, तो जो मैं परसों आप से कह रहा था कि लाओत्से दुनिया के कोने-कोने में बहुत तरह से हमला कर रहा है। अनेकों को पता भी नहीं है कि यह दृष्टि लाओत्सियन है। क्योंकि लाओत्से कहता है, सीखोगे तो क्या खाक सीख पाओगे! सीखो मत। सीखने की चेष्टा बाधा है। तुम तो सिर्फ गुजर जाओ शांति से; जो सीखने योग्य है, वह सीख जाओगे। तुम मौन गुजर जाओ; तुम सिर्फ ग्राहक भर रहो, तुम सिर्फ रिसेप्टिव गुजर जाओ। तुम चेष्टा मत करो। चेष्टा बंद कर देती है, रिसेप्टिविटी को कम कर देती है। बंद हो जाता है, क्लोज्ड हो जाता है। अनेक आयामों में जो उसने कहा है, वह यही है कि आदमी कुछ करता है, यह भ्रांति है; चीजें घटित होती हैं। आदमी न करे, तो बहुत कुछ जान पाएगा। क्योंकि करने का जो तनाव है, वह उसकी जानने की क्षमता को क्षीण कर देता है। आदमी जो-जो मांगता है, वह उसे कभी नहीं मिलता। भिखारियों को कभी कुछ नहीं मिलता; सम्राटों को सब कुछ मिल जाता है। जो नहीं मांगता, सब कुछ उसका है। अधिकार नहीं करता ज्ञानी, स्वामित्व निर्मित नहीं करता करता है, जो करने योग्य जीवन में घटित होता है। श्रेय नहीं लेता, और सारा श्रेय उसका है। प्रश्न: भगवान श्री, लाओत्से के ऐसे जीवन-दर्शन में साधना का क्या स्थान होगा? और जो केवल बहने पर निर्भर होता है, तैरने पर नहीं, वह अपने लक्ष्य तक कैसे पहुंच सकता है? क्या लक्ष्य तक पहुंचने के लिए भी यत्न की आवश्यकता नहीं है? लाओत्से का कुछ न करना, निष्क्रिय होना भी एक प्रकार का लक्ष्य जान पड़ता है। अबोध, अनजान धाराओं पर अपने आपको छोड़ देना ज्ञान है, ज्ञानी का लक्षण है? अथवा अज्ञान और अज्ञानी का? लाओत्से साधना में भरोसा नहीं करता। चूंकि लाओत्से कहता है, जो भी साध कर मिलेगा, वह स्वभाव न होगा। इसे थोड़ा समझ लें। जो भी साध कर मिलेगा, वह स्वभाव न होगा। जिसे साधना पड़ेगा, वह आदत ही होगी। स्वभाव तो वही है, जो बिना साधे मिला है। जो है ही, वही स्वभाव है। जिसे निर्मित करना पड़े, वह स्वभाव नहीं, वह आदत ही होगी । एक आदमी सिगरेट पीने की आदत बना सकता है; एक आदमी प्रार्थना करने की आदत बना सकता है। जहां तक आदत का संबंध है, दोनों आदतें हैं। सब आदतें स्वभाव के ऊपर आच्छादित हो जाती हैं, जैसे जल के ऊपर पत्ते छा जाएं। स्वभाव नीचे दब जाता है। लाओत्से कहता है, साधना नहीं है कुछ। जो मिला ही हुआ है, जो पाया ही हुआ है, जो तुम हो, उसी को जानना है। इसलिए कोई नई आदत मत बनाओ। लाओत्से योग, साधना, किसी के पक्ष में नहीं है। लाओत्से कहता है, कोई आदत ही मत बनाओ। तुम तो निपट उसे जान लो, जो तुम जन्म के पहले थे और मृत्यु के बाद भी रहोगे। तुम तो उसे खोज लो, जो गहरे में अभी भी मौजूद है। फिर तुम इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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