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इसलिए मैं कहता हूं कि चूंकि जीसस ने दावा नहीं किया, इसलिए उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता। वे ईश्वर के बेटे सिद्ध हो गएउस, उस गैर-चमत्कार में, जब उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया। नहीं तो आदमी का मन कुछ करके दिखाने का होता है। और जहां इतना तनाव रहा होगा, सूली पर लटकाए गए, एक लाख आदमी इकट्ठे थे उस पहाड़ी पर, लोग प्रतीक्षारत थे, कुछ दिखला दो! मित्र भी यही चाहते थे, शत्रु भी यही चाहते थे, कुछ हो जाए! वे सब खाली हाथ लौटे। जीसस चुपचाप मर गए!
और यह वही आदमी है, जिसने मुर्दो को छुआ और वे जिंदा हो गए। और यह वही आदमी है, जिसने बीमारों को छुआ और उनकी बीमारियां विलीन हो गईं। और यह वही आदमी है कि सूखे वृक्ष के नीचे बैठ गया, तो उस पर पते आ गए। और यह वही आदमी है, जो कि सागर तूफान कर रहा हो, तो इसके इशारे से शांत हो गया।
लेकिन यह मरते वक्त गैर-दावे में मर गया! हैरान हुए शत्रु भी कि यह आदमी कुछ तो जानता ही था। नहीं रहा हो ईश्वर का बेटा, तो भी कुछ तो जानता ही था। क्योंकि ये मरीजों को ठीक होते देखा है, मुर्दो को भी उठते देखा है। शत्रु भी इतने खयाल में नहीं थे कि कुछ भी न होगा। कुछ तो होगा ही। सूली टूट पड़ती, खीले ठोंके जाते और न ठुकते; आर-पार हो जाते और खून न बहता! कुछ तो हो ही सकता था! और ये कोई बहुत बड़ी बातें न थीं! इसके लिए ईश्वर का बेटा होने की जरूरत नहीं है। एक साधारण सा योगी भी, हाथ में ठोंकी जाए खीली तो खून को गिरने से रोक सकता है। साधारण योगी, जिसको थोड़ा सा प्राणायाम का गहन अभ्यास है, वह खून की गति को रोक सकता है। इसमें कोई बड़ी अड़चन न थी। कुछ भी न हुआ! बड़ी क्लाइमेक्स पर लोग थे एक्सपेक्टेशन के कि कुछ होगा। कुछ भी न हुआ उस पहाड़ पर।
यह आदमी अदभुत रहा होगा! इसका ऐसा चुपचाप मर जाना एक मिरेकल है, एक चमत्कार है। पर लाओत्से को समझेंगे, तो यह बात समझ में आएगी। और बहुत से वचन हैं जीसस के, जो लाओत्से को बिना समझे समझ में नहीं आएंगे।
जीसस कहते हैं, धन्य हैं वे लोग, जिनके पास कुछ भी नहीं, क्योंकि वे स्वर्ग के राज्य के मालिक होंगे।
लाओत्से को समझे बिना समझना मुश्किल है।
जीसस कहते हैं, धन्य हैं वे लोग, जो विनम हैं। जिन्होंने कोई दावा नहीं किया, जो विनम्र हैं, जिन्होंने कोई दावा नहीं किया, वे ही प्रभु के राज्य के हकदार हैं। धन्य हैं वे, जो आत्मा से दरिद्र हैं, क्योंकि परमात्मा की सारी समृद्धि उनकी है।
ये वचन सिवाय लाओत्से के कहीं से आने वाले नहीं हैं। यहूदी परंपरा में इन वचनों की कोई जगह नहीं है। क्योंकि यहूदी परंपरा कहती है कि जो तुम्हारी एक आंख फोड़े, तुम उसकी दोनों फोड़ देना। और अगर किसी ने किसी की एक आंख फोड़ी है, तो परमात्मा उसको सजा देगा और उसकी दूसरी आंख फोड़ देगा। वहां इस लड़के का अचानक पैदा होना और इस लड़के का यह कहना, जीसस का यह कहना कि जो तुम्हारा कोट छीने, उसे कमीज भी दे देना; पता नहीं, संकोचवश कमीज वह न छीन पाया हो; और जो तुमसे कहे कि दो मील तक मेरा बोझ ढोओ, तुम तीन मील तक ढो देना, क्योंकि हो सकता है संकोच में हो और आगे के लिए न कह पाया हो। यह जो हवा है, यह जो दृष्टि है, यह लाओत्सियन है।
श्रेय मत लेना, और तब तुमसे कभी श्रेय छीना न जा सकेगा। और तुमने मांगा श्रेय, और उसी वक्त छीनने वाले लोग मौजूद हो जाएंगे। इधर तुमने दावा किया, उधर खंडन करने वाले लोग इकट्ठे हो जाएंगे। क्योंकि लाओत्से कहता है, विपरीत तत्काल पैदा होता है। अगर तुमने चाही प्रशंसा, तो निंदा मिलेगी। अगर तुमने चाहा आदर, तो अनादर सुनिश्चित है। तुमने खोजा सिंहासन, तो आज नहीं कल तुम धूल में गिरोगे। लाओत्से कहता है, वहां बैठो, जहां से नीचे कोई और गिरने की जगह ही नहीं। फिर तुम्हें कोई न गिरा सकेगा। फिर तुम सिंहासन पर हो।
लाओत्से कहता है, सिंहासन पर वही है, जिसे हटाया न जा सके। और कौन सिंहासन पर है? तुम उस जगह बैठो, जहां से और नीची कोई जगह नहीं है। फिर तुम्हें कोई न उठा सकेगा। फिर तुम सिंहासन पर हो, क्योंकि तुम्हें हटाने का कोई सवाल नहीं उठता।
लाओत्से ने ज्ञान का भी कभी दावा नहीं किया। अगर लाओत्से के पास कोई जाता और पूछता कि मैंने सुना है, आप ज्ञानी हो। तो लाओत्से कहता है, जरूर तुमने कुछ गलत सुना है। मेरी मानो, दूसरों ने जो कहा, उन्हें इतना पता न होगा, जितना मेरे बाबत मुझे पता है। मैं बड़ा अज्ञानी हूं।
जो नहीं जानते थे, वे मान कर लौट आते कि नाहक परेशान हुए। जो जानते थे, वे लाओत्से का पैर पकड़ लेते कि अब हम न जाएंगे, क्योंकि हमें पता है कि जो ज्ञानी है, वही अज्ञान का ऐसा स्वीकार कर सकता है, अन्यथा नहीं। अज्ञानी तो सदा ज्ञान का दावा करते मिलते हैं। अज्ञानी ही ज्ञान का दावा करता मिलता है। सिर्फ ज्ञानी ही हो सकता है, जो कह दे कि मुझे कुछ पता नहीं है, तुम कहीं और खोजो। तुम्हें कुछ गलत लोगों ने खबर दे दी है।
संत फ्रांसिस का एक संप्रदाय है। और संत फ्रांसिस एक विनम्र लोगों में एक था, ईसाइयत में जो पैदा हुए। तो जो फ्रांसिसवादी फकीर होते हैं...| संत फ्रांसिस तो अदभुत रूप से विनम्र था। उसकी विनम्रता का तो कोई हिसाब नहीं है। पर अनुयायी और वादी तो विनम
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