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असल में, जो असली दावेदार हैं, वे कभी दावा नहीं करते। इसे ऐसा समझें। जो असली दावेदार हैं, वे कभी दावा नहीं करते। उनका दावा इतना प्रामाणिक है कि उसके करने की कोई जरूरत नहीं है। उनका दावा इतना आधारभूत है कि स्वयं परमात्मा भी उसे इनकार नहीं कर पाएगा। इसलिए किसी आदमी को मनवाने की कोई भी जरूरत नहीं है।
जीसस को सूली लगी। तो जीसस के शिष्यों को खयाल था कि सूली पर जीसस को मारा नहीं जा सकेगा। क्योंकि वे चमत्कार दिखला देंगे, वे मिरेकल कर देंगे, सूली बेकार जाएगी और जीसस को मारा नहीं जा सकेगा। जीसस के शिष्यों को यह खयाल था। क्योंकि ईश्वर का बेटा अगर ऐसे मौके को भी चूक जाएगा और दावा नहीं करेगा-यह तो मौका था, दुश्मन खुद मौका दे रहा था।
और दुश्मन का भी कहना यह था कि अगर तुम सचमुच ईश्वर के बेटे हो, तो सूली पर तय हो जाएगा। अगर ईश्वर अपने बेटे की भी रक्षा नहीं कर सकता, तो फिर और किसकी रक्षा करेगा? और अगर ईश्वर के बेटे को भी साधारण आदमी फांसी पर लटका देते हैं और ईश्वर कुछ नहीं कर पाता, बेटा कुछ नहीं कर पाता, तो सब दावे बेकार हैं। जीसस के दुश्मन भी जीसस को सूली पर ले गए थे इस खयाल से कि अगर वह सच में ईश्वर का बेटा है, तो दावा हो जाएगा। वह जाहिर हो जाएगी बात, हम सूली न दे पाएंगे।
जीसस के शिष्यों को भी यही खयाल था कि सूली पर सब निर्णय हो जाएगा-डिसीसिव, आखिरी बात का फैसला हो जाएगा। चमत्कार देखना चाहते हो? दिख जाएगा!
लेकिन जीसस चुपचाप मर गए; एक साधारण आदमी की तरह मर गए। जब जीसस के हाथ में खीलियां ठोंकी जा रही हैं, तब शिष्य भी उत्सुकता से देख रहे हैं, कि अब चमत्कार होता है! अब चमत्कार होता है! दुश्मन भी आतुरता से देख रहे हैं कि शायद चमत्कार होगा! शायद! पता नहीं, यह आदमी हो ही ईश्वर का बेटा! लेकिन दुश्मन भी निराश हुए, मित्र भी निराश हुए। जीसस ऐसे मर गए, जैसे कोई भी अ, ब, स मर जाता। भारी सदमा लगा।
शत्रुओं को तो सदमा का कोई कारण नहीं था। उन्होंने कहा कि ठीक है, हम तो पहले ही कहते थे कि यह आदमी झूठ बोल रहा है। यह सरासर झूठी बात है कि ईश्वर का बेटा है। यह बढ़ई का लड़का है। यह कोई ईश्वर वगैरह का बेटा नहीं है। आखिर मर गया! सिद्ध हो गई बात! शिष्यों को भारी सदमा लगा। लगना ही था। अपेक्षा थी, वह टूट गई। डिसइल्यूजनमेंट हो गया। एक भ्रम खंडित हो गया।
दो हजार साल तक जीसस को प्रेम करने वाले लोग इस पर विचार करते रहे हैं कि बात क्या हुई! जीसस को सिद्ध करना चाहिए था। अगर लाओत्से को वे समझ सकें, तो बात समझ में आ जाएगी, अन्यथा जीसस को कभी नहीं समझा जा सकेगा।
जीसस सच में ही इतना बेटा हैं ईश्वर के, दावा इतना प्रामाणिक है, कि उसे करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर जीसस ने कोई चमत्कार दिखाया होता, तो मेरी दृष्टि में तो वे ना-कुछ हो जाते। उसका मतलब ही यह होता कि वे आदमियों के सामने सिद्ध करने को बहुत आतुर हैं। उनका ऐसा चुपचाप निरीह आदमी की तरह मर जाना इस बात की घोषणा है कि वह आदमी साधारण न था। साधारण आदमी भी थोड़े हाथ-पैर मारता। साधारण आदमी भी थोड़े हाथ-पैर मारता।
नहीं, उन्होंने कुछ किया ही नहीं, हाथ-पैर मारने की बात अलग। वह सूली काफी वजनी थी। तो जो उसे ढो रहे थे, उनसे ढोते नहीं बनती थी। तो जीसस ने कहा, मेरे कंधे पर रख दो, मैं अभी जवान हूं। जो मजदूर ढो रहे थे, वे बूढ़े थे। तो जीसस अपनी सूली को लेकर पहाड़ पर चढ़े। सूली पर चढ़ गए सरलता से, और मर गए चुपचाप!
दावा इतना गहन रहा होगा, ईश्वर की सन्निधि इतनी निकट रही होगी कि उसे सिद्ध करना व्यर्थ था। अगर जीसस ने कोशिश करके उसे सिद्ध किया होता, तो वे साफ सबूत दे देते कि वे दावेदार पक्के नहीं थे। असल में जो दावेदार है, वह दावा करता ही नहीं। मगर ईसाइयत न समझा पाई अब तक इस बात को। क्योंकि लाओत्से का तो ईसाइयत को कोई खयाल नहीं। और सच यह है कि जो भी जीसस को समझना चाहते हैं, वे बिना लाओत्से को समझे नहीं समझ सकते हैं। क्योंकि यहूदी धर्म के पास जीसस को समझाने का कोई सूत्र नहीं है। और जीसस के पहले उनके मुल्क में जो लोग भी पैदा हुए, उनमें से किसी से भी जीसस का कोई तालमेल नहीं है। जीसस बिलकुल फारेन एलीमेंट थे, एकदम विजातीय तत्व हैं।
असल में, जीसस को जो भी खबरें मिलीं, वे भारत, चीन और इजिप्त से मिलीं। उनका जो शिक्षण हुआ, वह इन तीन मुल्कों में हुआ। और वह जो भी सारभूत पूरब में था, जो भी निचोड़ था पूरब के सारे प्राणों का, वह जीसस के पास था। इसलिए जो जानते हैं, वे तो, जीसस ने चमत्कार नहीं दिखलाया, इसी को चमत्कार मानते हैं। यह बड़ा चमत्कार है, यह बड़ा मिरेकल है। छोटा-मोटा आदमी भी कुछ न कुछ दिखलाने की कोशिश करता। कुछ भी कोशिश नहीं की। बात इतनी सिद्ध थी कि उसका दावा क्या करना था? किसके सामने दावा करना था? अगर ईश्वर के सामने ही दावा साफ है, तो आदमियों के सामने दावा करने की जरूरत कहां है! आदमियों के सामने तो सिदध करने वही जाता है, जो ईश्वर के सामने सिदध नहीं है।
"चूंकि वे श्रेय का दावा नहीं करते, इसलिए उन्हें श्रेय से वंचित नहीं किया जा सकता।'
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