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________________ नृत्यः एक ध्यान प्रवाहमान होती जाएं। मौन रहें। स्वयं निर्णय लें, न पहले से गिरने की और डूबने दें जैसे एक छोटा बच्चा मां के पहले पन्द्रह मिनट के लिए मद्धिम व्यवस्था करें; यदि आपका शरीर ढीला वक्ष से चिपका रहता है। आंखें बंद कर गति से गोल घूमते रहें। फिर अगले तीस होगा तो जमीन पर गिरना भी हलके से लें और निष्क्रिय तथा शांत होकर इस मिनट में गति को धीरे-धीरे तब तक तेज हो जाएगा और पृथ्वी आपकी ऊर्जा को स्थिति में कम से कम पंद्रह मिनट पड़े करते रहें जब तक कि गति आपको पी लेगी। वशीभूत न कर ले, और आप ऊर्जा के एक बार आप गिर जाएं तो ध्यान का ध्यान के बाद जितना हो सके शांत व एक भंवर न बन जाएं–परिधि पर गति दूसरा चरण शुरू होता है। गिरते ही पेट निष्क्रिय रहें। का एक तूफान और केंद्र पर शांत व के बल लेट जाएं ताकि आपकी खुली हुई कुछ लोगों को दरवेश ध्यान के समय स्थिर साक्षी। नाभि का स्पर्श पृथ्वी से हो सके। यदि मितली का जी हो सकता है, परंतु ऐसा जब आप इतनी तेज गोल घूमने लगें किसी को इस प्रकार लेटने में बहुत दो-तीन दिन में ही समाप्त हो जाना कि खड़े न रह सकें, तो आपका शरीर असुविधा हो तो वह अपनी पीठ के बल चाहिए। उसके बाद भी ऐसा ही हो, तो स्वयं ही गिर जाएगा। न तो गिरने का लेटे। अपने शरीर को पृथ्वी में पिघलने यह ध्यान न करें।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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