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________________ नृत्यः एक ध्यान त्य को अपने ढंग से बहने दो; उसे आरोपित मत करो। बल्कि उसका Cअनुसरण करो; उसे घटने दो। वह कोई कृत्य नहीं, एक घटना है। उत्सवपूर्ण भाव में रहो। तुम कोई बड़ा गंभीर काम नहीं कर रहे हो; बस खेल रहे हो: अपनी जीवन ऊर्जा से खेल रहे हो, अपनी जैविक-ऊर्जा से खेल रहे हो, उसे अपने ढंग से बहने दे रहे हो। बस ऐसे जैसे हवा बहती है और नदी प्रवाहित होती है-तुम भी प्रवाहित हो रहे हो, बह रहे हो। इसे नटराज ध्यान नटराज-नृत्य एक संपूर्ण ध्यान है। यह पैंसठ मिनट का है और इसके तीन चरण हैं। दूसरा चरण: बीस मिनट आंखें बंद रखे हुए ही, तत्क्षण लेट जाएं। शांत और निश्चल रहें। अनुभव करो। पहला चरण: चालीस मिनट और खेल के भाव में रहो। इस शब्द 'खेलपूर्ण भाव' का ध्यान रखो-मेरे साथ आंखें बंद कर इस प्रकार नाचें जैसे यह शब्द बहुत प्राथमिक है। इस देश में आविष्ट हो गए हों। अपने पूरे चेतन को हम सृष्टि को परमात्मा की लीला, उभरकर नृत्य में प्रवेश करने दें। न तो परमात्मा का खेल कहते हैं। परमात्मा ने नृत्य को नियंत्रित करें, और न ही जो हो संसार का सजन नहीं किया है, यह उसका रहा है उसके साक्षी बनें। बस नृत्य में पूरी खेल है।। तरह डूब जाएं। तीसरा चरणः पांच मिनट उत्सव भाव से नाचें; आनंदित हों और अहोभाव व्यक्त करें। 2
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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