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________________ जागरण की दो शक्तिशाली विधियां सका जाएगा क्योंकि तुम्हारा ध्यान अन्यत्र हो गया है। बिखर गया। तुम्हारे मौन में मैं तुम्हें एक साक्षी मात्र । कुछ भी मत करो। तुम मर न जाओगे। हो जाने के लिए कहूंगा-एक सतत यदि छींक भी आ रही है और तुम दस जागरूकता : कुछ न करते हुए बस एक यह एक ऐसा ध्यान है जिसमें तुम्हें मिनट के लिए न छींको, तो तुम मरोगे साक्षी बने रहना, बस अपने साथ बने 1सतत सचेत, जागरूक और नहीं। यदि तुम खांसने जैसा अनुभव करते रहना; कुछ भी न करते हुए-कोई गति बोधपूर्ण रहना है। चाहे जो भी तुम करो, हो, यदि तुम गले में कोई खरास अनुभव नहीं, कोई कामना नहीं, कोई यात्रा साक्षी बने रहो। मूर्छा में खो मत जाओ। करते हो और तुम कुछ भी नहीं करते, तो नहीं-केवल अभी और यहां बने रहना, सरल है मूर्छा में खो जाना। श्वास लेते तुम मर जाने वाले नहीं हो। अपने शरीर शांत और मौन, देखते हुए कि क्या हो हुए तुम साक्षी को भूल सकते हो। तुम को मृतवत बना रहने दो ताकि ऊर्जा रहा है। श्वास लेने से इतना तादात्म्य कर लो कि ऊर्ध्वगमन कर सके। यह केंद्र पर होना, स्व में होना संभव तुम साक्षी को भूल ही जाओ। लेकिन तब ऊर्जा जब ऊर्ध्वगमन करती है, तब है—पहले तीन चरणों के कारण। जब तक तुम सार बात चूक ही जाओगे। अधिक से तुम ज्यादा और ज्यादा शांत और मौन ये प्रथम तीन चरण पूरे न हों, तुम स्व में अधिक तेज और गहरी श्वास लो; अपनी होने लगते हो। मौन है ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन थिर नहीं रह सकते। तुम इसके बारे में भले पूरी ऊर्जा इसमें लगा दो, लेकिन फिर भी की उप-उत्पत्ति और तनाव है ऊर्जा ही बातें किए चले जाओ, इसके बारे में भीतर एक साक्षी बने रहो। के अधोगमन की उप-उत्पत्ति। अब तुम्हारा सोचे चले जाओ, सपने देखते चले जाओ, जो हो रहा है उसका अवलोकन करो पूरा शरीर इतना शांत और मौन हो परन्तु यह घटित न होगा क्योंकि तुम तैयार जैसे कि तुम एक दर्शक मात्र हो-मानो जाएगा, मानो कि वह विलीन ही हो नहीं हो। कि सब कुछ किसी दूसरे व्यक्ति को घटित गया हो। तुम उसे अनुभव भी न कर वर्तमान क्षण में थिर रहने के लिए ये पहले हो रहा हो, जैसे कि सारी घटनाएं शरीर को पाओगे। तुम देहरहित हो गए हो। और तीन चरण तुम्हें तैयार करेंगे। वे तुम्हें हो रही हैं और चैतन्य स्वयं में केंद्रित जब तुम शांत और मौन होते हो, तब पूरा जागरूक बनाएंगे। यह ध्यान है। इस ध्यान है-बस देखता हुआ। अस्तित्व मौन है क्योंकि अस्तित्व और में कुछ घटता है जो कि शब्दों के पार है। यह साक्षी प्रथम तीन चरणों में सतत कुछ नहीं वरन एक दर्पण है। वह तुम्हें और एक बार यह घट जाए फिर तुम कभी बना रहना चाहिए। और जब सब कुछ रुक प्रतिफलित करता है। हजारों हजार दर्पणों भी पहले जैसा न हो पाओगे; यह असंभव जाता है और चौथे चरण में जब तुम पूर्णतः में वह तुम्हें प्रतिफलित करता है। जब है। यह एक अंतर्विकास है; यह एक निष्क्रिय हो गए हो-जम गए-तब यह तुम मौन हो तब सारा अस्तित्व मौन अनुभव मात्र नहीं है। यह एक विकास है। जागरूकता अपने चरम शिखर पर होगी। 5
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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