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________________ अनुभव में समग्र होने का परिणाम है। समग्रता ही कुंजी हैः समग्रता से ही साक्षी की धन्यता का जन्म होता है। अवलोकन के विषय में सब भूल जाओ; उससे तुम्हें अवलोकित विषय के संबंध में तो अधिक परिमार्जित सूचना मिल जाएगी, लेकिन तुम अपनी ही चेतना से बिलकुल अनभिज्ञ रह जाओगे। 22 ध्यान एक गुर है, एक 'नैक' है ध्यान न एक ऐसा रहस्य है जिसे बिना किसी विरोधाभास के एक विज्ञान, एक कला, एक गुर कहा जा सकता है। ब 'चपन में मुझे एक पारंगत तैराक के पास भेजा गया। वह नगर का सर्वश्रेष्ठ तैराक था, और मुझे कभी कोई दूसरा व्यक्ति नहीं मिला जो पानी से ऐसे अपूर्व प्रेम में हो। पानी उसके लिए परमात्मा था, वह उसकी पूजा करता था, और नदी उसका घर थी। बिलकुल सुबह - सुबह तीन बजे तुम उसे नदी पर पाते। शाम तुम उसे नदी पर पाते और रात नदी के किनारे उसे ध्यान करता पाते । उसका सारा जीवन ही नदी के आस-पास सीमित था । जब मुझे उसके पास ले जाया गया- मैं तैरना सीखना चाहता था - उसने मेरी ओर देखा, कुछ महसूस किया। वह बोला, “लेकिन तैरना सीखने का कोई उपाय नहीं है; मैं तो बस तुम्हें पानी में फेंक सकता हूं और फिर तैरना अपने आप से आ जाता है । उसे सीखने का कोई उपाय नहीं, न ही उसे सिखाया जा सकता है। वह तो एक गुर है, कोई जानकारी नहीं।” और यही उसने किया— मुझे पानी में फेंक दिया और स्वयं किनारे पर खड़ा रहा। दो-तीन बार मैंने गोता खाया और लेकिन ध्यान इतना बड़ा रहस्य है कि मुझे लगा कि मैं बस डूब रहा हूं। वह वहीं एक ओर से यह एक विज्ञान है क्योंकि एक सुस्पष्ट विधि को करना होता है। उसमें कोई अपवाद नहीं होते, यह लगभग एक वैज्ञानिक नियम की भांति है। ध्यान का विज्ञान परंतु एक भिन्न दृष्टिकोण से इसे एक कला भी कहा जा सकता है। विज्ञान मन का एक विस्तार है— वह गणित है, तर्कयुक्त है, तर्कसंगत है। ध्यान का संबंध हृदय से है, मन से नहीं - वह तर्क नहीं है, वह तो प्रेम के अधिक करीब है । वह अन्य वैज्ञानिक प्रक्रियाओं जैसा नहीं, बल्कि संगीत, काव्य, चित्रकारी, नृत्य जैसा है; अतः, उसे एक कला कहा जा सकता है। उसे 'विज्ञान' और 'कला' कहने से उसका समापन नहीं होता। वह तो एक गुर है— या तुम उसे पा लेते हो, या नहीं पाते। गुर कोई विज्ञान नहीं है, वह सिखाया नहीं सकता। कोई कला भी नहीं है। गुर मानवीय समझ की एक सर्वाधिक रहस्यपूर्ण घटना है 123 खड़ा रहा, मुझे बचाने का कोई प्रयास ही नहीं किया ! स्वभावतः जब तुम्हारा जीवन दांव पर लगा होता है, तब तुम जो कर सकते हो करते हो। तो मैंने अपने हाथ-पांव मारने शुरू कर दिए – ऊलजलूल, उलटे-सीधे — पर गुर हाथ लग गया। जब जीवन ही दांव पर लग जाए तो तुम जो कर सकते हो करते हो... और जब भी तुम जो कर सकते हो उसे समग्रता से करते हो, तो चीजें घटित होती हैं। मैं तैर सका ! मैं रोमांचित था । " दूसरी बार”, मैंने कहा, “आपको मुझे धक्का देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मैं खुद ही कूद पडूंगा। अब मैं जानता हूं कि शरीर की अपनी एक उत्प्लावकता है। यह तैरने का प्रश्न नहीं है, यह प्रश्न है जल तत्व के साथ सामंजस्य बैठ जाने का। एक बार तुम्हारा जल तत्व के साथ सामंजस्य बैठ तो वह तुम्हारी रक्षा करेगा।” और तब से मैं कितने ही लोगों को इस जीवन की नदी में धकेलता रहा हूं! और मैं बस मौजूद रहता हूं... यदि व्यक्ति छलांग ले ले तो अधिकांशतः कभी कोई असफल नहीं होता। वह सीख ही जाएगा। 24 हो सकता है गुर पाने में तुम्हें कुछ दिन लग जाएं। ध्यान एक गुर है, कोई कला नहीं! यदि ध्यान कोई कला होती, तो उसे सिखाना सरल होता । चूंकि वह एक गुर है, इसलिए तुम्हें प्रयास करना पड़ता है; धीरे-धीरे तुम उसे पा लेते हो। मनोविज्ञान का एक जापानी प्रोफेसर 30
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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