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ध्यान का विज्ञान
मूर्खता कर रहा हूं!" लेकिन मुझे बिलकुल से इस कार से घृणा करता हूं।" क्योंकि रात वह मुझे मिलने आया और बोला, गंभीर रहना पड़ता। मैं कभी उसकी ओर उसके पास कार नहीं थी, और यह एक “यह तो बड़ा खतरनाक ध्यान था! मैंने तो देखकर नहीं मुस्कराया। तो वह दोबारा विदेशी कार थी जो जयंतीभाई ने मेरे लिए स्वयं को या किसी और को मार ही डाला फोन करना शुरू कर देता : “कोई नहीं देख रखी हुई थी। मैं वर्ष में तीन या चार बार होता। मैंने कार को तोड़-फोड़ डाला होता, रहा है, सभी अपने-अपने काम में लगे माउंट आबू आता था, तो वह कार उन्होंने और जयंतीभाई का मैं अच्छा मित्र हूं, और मेरे लिए ही रखी हुई थी।
मैंने कभी सोचा भी नहीं था.. लेकिन एक हजार लोग इतना कुछ करने उनके मित्र के भीतर जरूर ईर्ष्या रही निश्चित ही यह भाव मेरे भीतर रहा होगा। लगें...और यह सब लगातार उनके मन में होगी कि उसके पास कोई विदेशी कार नहीं "मुझे यह बात बुरी लगती थी कि आप चल रहा था। वह सबकुछ बाहर निकालने है। और फिर परिस्थिति को देखकर कुछ हमेशा उन्हीं की कार में आते थे, और मुझे का उनके लिए यह सुअवसर था। ऐसा लोग मदद के लिए दौड़े आए। जब उसने यह बात भी बुरी लगती थी कि उनके पास खेल चलता था।
देखा कि इतने लोग उसे रोक रहे हैं, तो विदेशी कार है, लेकिन यह बात मेरे चेतन जयंतीभाई माउंट आबू के शिविर के विरोध-प्रदर्शन में वह मेरे सामने एक वृक्ष में बिलकुल भी नहीं थी। और मैं वृक्ष पर संचालक थे, और उनके एक घनिष्ठ मित्र पर चढ़ गया। नग्न वह वृक्ष की चोटी पर क्या कर रहा था? जरूर मुझमें इतनी हिंसा ने अपने सभी कपड़े उतार दिए। यह बैठ गया, और वृक्ष को हिलाने लगा। रही होगी, जो मैं लोगों को मार डालना आश्चर्य की बात थी! जयंतीभाई मेरे पास खतरा था कि वृक्ष के समेत वह हजार चाहता था।" ही खड़े थे; वे तो इस पर विश्वास ही न लोगों के ऊपर गिर जाएगा। जयंतीभाई ने वह ध्यान बड़ा सहयोगी था। एक घंटे कर पाए। वह व्यक्ति बहुत गंभीर, और मुझसे पूछा, “अब क्या किया जाए?” में ही लोग इससे इतने विश्रांत हो जाते कि बहुत समृद्ध था; एक हजार लोगों के मैंने कहा, "वह तुम्हारा मित्र है। वह जो वे मुझसे कहते, "ऐसा लगता है कि सिर' सामने वह यह क्या करने लगा? और फिर करता है उसे करने दो, उसकी चिंता मत से कोई भारी बोझ उतर गया। हमें तो पता वह कार को धक्का देने लगा, जिसमें करो। बस लोगों को इधर-उधर हटा दो, भी नहीं था कि हम अचेतन मन में बैठकर मैं आया था-वह जयंतीभाई की और वह जो करता है उसे करने दो। अब क्या-क्या दबाये हुए हैं।" लेकिन उसके कार थी। हम पहाड़ों पर थे, और ठीक वह कार को तो नुकसान नहीं पहुंचा रहा बोध के लिए उसे बेशर्त और अबाधित सामने एक हजार फीट गहरा खड्ड था, और है। ज्यादा से ज्यादा उसकी कुछ हड्डियां ही अभिव्यक्ति देने की अपेक्षा और कोई नंगा वह कार को धकेले जा रहा था। टूटेंगी।"
उपाय नहीं था। जयंतीभाई मुझसे बोले, "क्या करूं? जैसे ही लोग हटे, वह भी रुक गया। यह एक छोटा-सा प्रयोग था; मैंने वह तो कार को नष्ट कर देगा, और मैंने वृक्ष पर शांत होकर बैठ गया। ध्यान लोगों से कहा कि वे इसे जारी रखें: जल्दी कभी सोचा भी नहीं था कि यह आदमी मेरी समाप्त हो जाने पर भी वह वृक्ष पर ही बैठा ही तुम्हारे सामने बहुत-सी चीजें आएंगी, कार के खिलाफ है। हम घनिष्ठ मित्र हैं।" रहा। तब जयंतीभाई बोले, “अब नीचे और एक दिन तुम उस स्थिति पर पहुंच
तो मैंने उन्हें कहा, “तुम दूसरी ओर से उतर आओ। ध्यान समाप्त हुआ।" जाओगे जहां सब समाप्त हो जाता है। बस धक्का देने लगो; वरना वह तो...।" जैसे नींद से जागा हो, उसने चारों ओर इतना स्मरण रखो कि किसी दूसरे व्यक्ति
जयंतीभाई कार को रोकने लगे और देखा और देखा कि वह नग्न था! वह वृक्ष को हस्तक्षेप नहीं करना है और उनका मित्र उछल-उछल कर चिल्लाने से कूदा, और अपने वस्त्रों की ओर भागा। विध्वंसात्मक नहीं होना है। जो भी तुम लगा, "मेरे रास्ते से हट जाओ! मैं हमेशा वह बोला, "मुझे हो क्या गया था?" कहना चाहते हो कहो; गालियां दो; जो भी