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ओशो के विषय में
बिना पृथ्वी का कोई भविष्य शेष नहीं है। शिक्षा, परिवार, समाज, गरीबी, जनसंख्या- शहर बन गया। किंतु कट्टरपंथी ईसाई
सन 1970 में ओशो बंबई में रहने के विस्फोट, पर्यावरण तथा संभावित परमाणु धर्माधीशों के दबाव में व राजनीतिज्ञों के लिए आ गये। अब पश्चिम से सत्य के खोजी युद्ध के व उससे भी बढ़कर एड्स महामारी के निहित स्वार्थवश प्रारंभ से ही कम्यून के इस भी जो अकेली भौतिक समृद्धि से ऊब चुके थे विश्व-संकट जैसे अनेक विषयों पर भी प्रयोग को नष्ट करने के लिए अमरीका की और जीवन के किन्हीं और गहरे रहस्यों को उनकी क्रांतिकारी जीवन-दृष्टि उपलब्ध है। संघीय, राज्य और स्थानीय सरकारें हर संभव जानने और समझने के लिए उत्सुक थे, उन शिष्यों और साधकों के बीच दिए गए प्रयास कर रही थीं। तक पहुंचने लगे। ओशो ने उन्हें बताया कि उनके ये प्रवचन छह सौ पचास से भी अधिक जैसे अचानक एक दिन ओशो मौन हो अगला कदम ध्यान है। ध्यान ही जीवन में __ पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं और गये थे वैसे ही अचानक अक्तूबर 1984 में सार्थकता के फूलों के खिलने में सहयोगी तीस से अधिक भाषाओं में अनुवादित हो चुके उन्होंने पुनः प्रवचन देना प्रारंभ कर दिया। सिद्ध होगा। .
हैं। वे कहते हैं, “मेरा संदेश कोई सिद्धांत, जीवन-सत्यों के इतने स्पष्टवादी व मुखर
__ कोई चिंतन नहीं है। मेरा संदेश तो रूपांतरण । विवेचनों से निहित स्वार्थों की जड़ें और भी (हिमालय) में आयोजित अपने एक शिविर की एक कीमिया, एक विज्ञान है।"
चरमराने लगीं। में ओशो ने नव-संन्यास में दीक्षा देना प्रारंभ ओशो अपने आवास से दिन में केवल दो अक्तूबर 1985 में अमरीकी सरकार ने किया। इसी समय के आसपास वे आचार्य बार बाहर आते-प्रातः प्रवचन देने के लिए ओशो पर आप्रवास-नियमों के उल्लंघन के रजनीश से भगवान श्री रजनीश के रूप में और संध्या समय सत्य की यात्रा पर निकले 35 मनगढंत आरोप लगाए। बिना किसी जाने जाने लगे।
हुए साधकों को मार्गदर्शन एवं नये प्रेमियों को गिरफ्तारी-वारंट के ओशो को बंदूकों की नोक सन 1974 में वे अपने बहुत से संन्यास-दीक्षा देने के लिए।
पर हिरासत में ले लिया गया। 12 दिनों तक संन्यासियों के साथ पूना आ गये जहां 'श्री सन 1980 में कट्टरपंथी हिंदू समुदाय के उनकी जमानत स्वीकार नहीं की गयी और रजनीश आश्रम' की स्थापना हुई। पूना आने एक सदस्य द्वारा उनकी हत्या का प्रयास भी उनके हाथ-पैर में हथकड़ी व बेड़ियां डालकर के बाद उनके प्रभाव का दायरा विश्वव्यापी उनके एक प्रवचन के दौरान किया गया। उन्हें एक जेल से दूसरी जेल में घुमाते हुए होने लगा।
___ अचानक शारीरिक रूप से बीमार हो जाने पोर्टलैंड (ओरेगॅन) ले जाया गया। इस श्री रजनीश आश्रम पूना में प्रतिदिन अपने से 1981 की वसंत ऋतु में वे मौन में चले प्रकार, जो यात्रा कुल पांच घंटे की है वह प्रवचनों में ओशो ने मानव-चेतना के विकास गये। चिकित्सकों के परामर्श पर उसी वर्ष जून आठ दिन में पूरी की गयी। जेल में उनके के हर पहलू को उजागर किया। बुद्ध, में उन्हें अमरीका ले जाया गया। उनके शरीर के साथ बहुत दुर्व्यवहार किया गया और महावीर, कृष्ण, शिव, शांडिल्य, नारद, अमरीकी शिष्यों ने ओरेगॅन राज्य के मध्य यहीं संघीय सरकार के अधिकारियों ने उन्हें जीसस के साथ ही साथ भारतीय अध्यात्म- भाग में 64,000 एकड़ जमीन खरीदी थी जहां 'थेलियम' नामक धीमे असरवाला जहर दिया। आकाश के अनेक नक्षत्रों-आदिशंकराचार्य, उन्होंने ओशो को रहने के लिए आमंत्रित 14 नवंबर 1985 को अमरीका छोड़ कर गोरख, कबीर, नानक, मलूकदास, रैदास, किया। धीरे-धीरे यह अर्ध- रेगिस्तानी जगह ओशो भारत लौट आये। यहां की तत्कालीन दरियादास, मीरा आदि पर उनके हजारों एक फूलते-फलते कम्यून में परिवर्तित होती सरकार ने भी उन्हें समूचे विश्व से अलगप्रवचन उपलब्ध हैं। जीवन का ऐसा कोई भी गई। वहां लगभग 5,000 प्रेमी मित्र थलग कर देने का पूरा प्रयास किया। तब आयाम नहीं है जो उनके प्रवचनों से अस्पर्शित मिल-जुलकर अपने सद्गुरु के सान्निध्य में ओशो नेपाल चले गये। नेपाल में भी उन्हें रहा हो। योग, तंत्र, ताओ, झेन, हसीद, सूफी आनंद और उत्सव के वातावरण में एक अनूठे अधिक समय तक रुकने की अनुमति नहीं दी जैसी विभिन्न साधना-परंपराओं के गूढ़ रहस्यों नगर के सृजन को यथार्थ रूप दे रहे थे। शीघ्र गयी। पर उन्होंने सविस्तार प्रकाश डाला है। साथ ही ही यह नगर रजनीशपुरम नाम से संयुक्त राज्य फरवरी 1986 में ओशो विश्व-भ्रमण के राजनीति, कला, विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन, अमरीका का एक निगमीकृत (इन्कार्पोरेटेड) लिए निकले जिसकी शुरुआत उन्होंने ग्रीस से
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