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________________ ओशो से प्रश्नोत्तर साक्षित्व के बीज और अ-मन के फल साक्षित्व किस प्रकार अ-मन तक यान एक बहुत लंबी तीर्थयात्रा भूमि तैयार कर सकते हो, लेकिन फूल ले जाता है? मैं अपने शरीर, ना तय करता है। जब मैं कहता अपने-आप से आएंगे। तुम उन्हें आने के अपने विचारों और भावों को हूं “साक्षी होना ही ध्यान है," तो यह ध्यान लिए बाध्य नहीं कर सकते। वसंत तम्हारी देख पाने में सक्षम होता जा रहा है. की शुरुआत है। और जब मैं कहता हूं पहुंच के बाहर है। लेकिन यदि तुम्हारी और यह अच्छा लगता है। लेकिन "ध्यान अ-मन है," तो यह यात्रा की तैयारी ठीक है, तो वसंत आता है। यह पूरी निर्विचार के क्षण बीच-बीच में पूर्णाहति है। साक्षित्व प्रारंभ है, और तरह सुनिश्चित है। अ-मन है पूर्णाहुति। साक्षित्व अ-मन तक जिस तरह से तुम बढ़ रहे हो वह बहुत-बहुत दूरी पर आते हैं। पहुंचने की विधि है। बिलकुल ठीक है। साक्षित्व तुम्हारा मार्ग है जब मैं आपको यह क स्वभावतः साक्षित्व तुम्हें अधिक सरल और कभी-कभार तुम विचारशून्य क्षण को कि "साक्षी होना हा ध्यान है," ता जोगा। वह तम्हारे करीब पडता है। भी अनभव करने लगे हो। य अ-मन का मुझे लगता है बात मेरी समझ में लेकिन साक्षित्व केवल बीज की भांति है झलकें हैं, लेकिन केवल एक क्षण के पड़ती है। लेकिन जब आप और फिर प्रतीक्षा का एक लंबा समय होता लिए। 'अ-मन' की बात करते हैं तो वह है केवल प्रतीक्षा ही नहीं, बल्कि श्रद्धा एक बुनियादी नियम याद रखोः जो मुझे बिलकुल समझ नहीं आती। कि यह बीज अंकुरित होगा ही, कि यह एक क्षण के लिए ठहर सकता है, वह आप कृपया कुछ कहेंगे? पौधा भी बनेगा, कि एक दिन वसंत सनातन भी बन सकता है, क्योंकि तुम्हें आएगा और पौधे में फूल भी आएंगे। हमेशा एक ही क्षण मिलता है-दो क्षण अ-मन खिलावट की अंतिम स्थिति है। एक साथ नहीं मिलते। और यदि तुम एक बीज बोना निश्चित ही बहुत सरल है। क्षण को निर्विचार दशा में रूपांतरित कर यह तुम्हारे हाथों में है। लेकिन फूल ले सको, तो तुम राज सीखने लगे। तो फिर आना तुम्हारे बस के बाहर है। तुम पूरी कोई बाधा नहीं है कि तुम क्यों नहीं बदल 275
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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