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ओशो से प्रश्नोत्तर
सब मार्ग पर्वत शिखर पर मिल जाते हैं
क्या होश प्रेम से उच्चतर मूल्य है?
मच्चतर शिखर सत्य, प्रेम, होश, काम-वासना में, प्रेम केवल एक
0 प्रामाणिकता, समग्रता इन सब प्रतिशत होता है : निन्यानबे प्रतिशत दूसरी मूल्यों की पराकाष्ठा है। उच्चतम शिखर चीजें होती हैं: ईर्ष्याएं, अहंकार के पर वे सब अविभाज्य हैं। हमारे अचेतन खेल, मालकियत, क्रोध, कामुकता। की अंधेरी खाइयों में ही वे भिन्न होते हैं। वे काम-वासना अधिक शारीरिक, अधिक तभी भिन्न होते हैं जब प्रदूषित होते हैं, रासायनिक होती है; इससे गहरा उसमें दूसरी चीजों के साथ मिश्रित होते हैं। जिस और कुछ भी नहीं होता। वह बहुत ही क्षण वे विशुद्ध होते हैं, वे एक हो जाते हैं; उथली होती है, चमड़ी जितनी गहरी जितने विशुद्ध होते जाएंगे, उतने ही भी नहीं। एक-दूसरे के करीब आएंगे।
जैसे-जैसे तुम ऊपर जाते हो, चीजें जैसे, हर मूल्य कई-कई आयामों में गहरी होने लगती हैं; उनमें नए आयाम मौजूद होता है; हर मूल्य बहुत से सोपानों जुड़ने लगते हैं। जो चीज केवल शारीरिक वाली एक सीढ़ी है। प्रेम काम-वासना भी थी, उसमें मानसिक आयाम जुड़ने लगता होता है-वह उसका निम्नतम सोपान है, है। जो शरीर के अतिरिक्त और कुछ नहीं जो नरक को छूता है; और प्रेम प्रार्थना भी था वह मानसिकता बनने लगता है। शरीर है-उच्चतम सोपान, जो स्वर्ग को छूता तो हमारी तरह सब जानवरों के पास है; है। और इन दो के बीच बहुत से आयाम हैं लेकिन मानसिकता हमारी तरह सब जिनमें सरलता से भेद किया जा सकता है। जानवरों के पास नहीं है।
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