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________________ ध्यान में बाधाएं झूठी विधियां ___ "मैं एक मेंढक लाया हूं,” उत्साह से भरे जीवशास्त्र के एक प्रोफेसर ने अपनी कक्षा में घोषित किया। "इसे तालाब से ताजा-ताजा निकाल लाया हूं ताकि हम इसकी बाहरी बनावट का अध्ययन करके फिर इसकी शल्यक्रिया कर सकें।" ध्यान एकाग्रता नहीं है उसने साथ लाए पैकेट को सावधानी से ध्यान गलत हो सकता है। उदाहरण के लिए कोई भी ध्यान की विधि जो तम्हें खोला और भीतर से निकला सफाई से बनाया गया एक हैम सेंडविच! प्रोफेसर गहरी एकाग्रता में ले जाती हो, वह गलत है। इससे तो तुम खुले हुए होने के बदले महाशय ने आश्चर्य से भर कर उसे देखा। अधिकाधिक बंद हो जाओगे। यदि तुम अपनी चेतना को संकरा करके किसी चीज “गजब हो गया!" वह बोला, "मुझे पर एकाग्र करते हो, यदि तुम शेष सारे अस्तित्व से संबंध तोड़ कर एक बिंदु पर अच्छी तरह याद है कि मैंने अपना लंच ले एकाग्र हो जाते हो तो यह तुम्हारे भीतर ज्यादा से ज्यादा तनाव निर्मित करेगा। लिया, इसलिए अंग्रेजी का शब्द है 'अटेंशन'। इसका दूसरा अर्थ 'एट-टेंशन' होता है। एकाग्रता-कंसेंट्रेशन-इस शब्द की ध्वनि भी तुम्हें तनाव का भाव देती है। वैज्ञानिकों के साथ ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं। वे एक बिंदु पर एकाग्र हो TT काग्रता के अपने उपयोग हैं लेकिन मूर्छित ही हो जाते हो। जिस विषय पर जाते हैं और उनका पूरा मन बहुत सीमित वह ध्यान नहीं है। वैज्ञानिक शोध तुम एकाग्र हो रहे हो वही तुम्हारा एक मात्र क्षेत्र में फोकस हो जाता है। निश्चित ही के लिए प्रयोगशाला में तुम्हें संसार रह जाता है। यही कारण है कि एकाग्रता में बंध गए मन की अपनी एकाग्रता की जरूरत होगी। तुम्हें एक खास वैज्ञानिक अधिकतर भुलक्कड़ हो जाते हैं। उपयोगिताएं हैं : वह ज्यादा बेधक हो जाता समस्या पर एकाग्र होने के लिए शेष सब अधिक एकाग्रता साधने वाले लोग है, वह एक सुई जैसा नोकीला हो जाता है, संसार से संबंध तोड़ लेना होगा-यह भुलक्कड़ हो जाते हैं क्योंकि वे नहीं जानते वह ठीक लक्ष्य-बिंदु पर चोट करता है, संबंध विच्छेद इतना गहरा हो सकता है कि कि समग्र अस्तित्व के प्रति कैसे लेकिन अपने चारों ओर फैले हुए विराट शेष सारे वातावरण के प्रति तुम लगभग संवेदनशील और खुले रहा जाए। जीवन से वह वंचित ही रह जाता है।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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