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ध्यान में बाधाएं
उसको देखते हो; जब एक अंतराल निर्विघ्न मौन होगा।
रोकने का उपाय है। और जब तुम उन गुजरता है, तो तुम उसको भी देखते हो। जब बड़े अंतराल आएंगे, तो तुम्हारे आनंदपूर्ण क्षणों का आनंद लेने लगते हो, बादल सुंदर हैं, सूर्य की रोशनी भी सुंदर पास बस संसार में झांकने की ही तो तुममें लंबे समय तक उनको बनाए है। अब तुम चुनाव करने वाले न रहे। अब सुस्पष्टता नहीं होगी-बड़े अंतरालों के रखने की क्षमता आ जाती है। तुम्हारे पास एक जड़ मन नहीं है। तुम यह साथ तुममें एक नई सुस्पष्टता का प्रादुर्भाव अंत में, अंततः, एक दिन तुम मालिक नहीं कहते कि "मैं तो केवल अंतराल होगा; तुम अंतर्जगत में भी झांक पाओगे। हो जाते हो। फिर जब तुम सोचना चाहते हो पसंद करूंगा"। वह मूढ़ता पहले अंतरालों से तुम संसार में झांक तो सोचते हो; यदि विचार की जरूरत है तो होगी क्योंकि एक बार तुम अंतराल की पाओगेः वृक्ष अभी जैसे दिखाई पड़ते हैं तुम उसका उपयोग करते हो; यदि विचार चाह से ही आसक्त हो गए, तो तुमने फिर उससे ज्यादा हरे हो जाएंगे। तुम एक अनंत की जरूरत न हो तो तुम उसको विश्राम से विचार के विरुद्ध निर्णय ले लिया। और संगीत से, अलौकिक संगीत से घिर करने देते हो। ऐसा नहीं कि अब मन नहीं फिर वे अंतराल खो जाएंगे। वे तभी घटते जाओगे। अचानक तुम परमात्मा की रहता-मन तो रहता है, लेकिन तुम हैं जब तुम बहुत दूर और तटस्थ होते हो। उपस्थिति में होओगे-अकथनीय, उसका उपयोग कर भी सकते हो, और वे घटते हैं, उन्हें लाया नहीं जा सकता। वे रहस्यमय, तुम्हें छूती हुई, फिर भी तुम उसे उपयोग नहीं भी कर सकते। अब यह घटते हैं, तुम उन्हें घटाने को मजबूर नहीं पकड़ न पाओगे; तुम्हारी पहुंच में होते हुए तुम्हारा निर्णय है। बिलकुल पांवों की तरह; कर सकते। वे स्वस्फूर्त घटनाएं हैं। भी जो तुम्हारी पहुंच से पार होगी। बड़े तुम दौड़ना चाहो तो उनका उपयोग कर . देखते रहो। विचारों को आने-जाने अंतरालों के साथ भीतर भी ऐसा ही होगा। सकते हो; यदि तुम दौड़ना नहीं चाहते तो दो-जहां भी वे जाना चाहें-कोई गलती परमात्मा केवल बाहर ही नहीं होगा, तुम बस विश्राम करते हो-पांव तो अब भी नहीं है! नियंत्रित करने की और दिशा देने अचानक चकित रह जाओगे कि वह हैं। ठीक उसी तरह मन भी हमेशा रहता है। की चेष्टा मत करो; विचारों को पूरी तुम्हारे भीतर भी है। वह केवल दृश्य में ही अ-मन मन के विपरीत नहीं है; अ-मन स्वतंत्रता से चलने दो। फिर और बड़े-बड़े नहीं है; वह द्रष्टा में भी है-भीतर भी मन के पार है। अ-मन मन को मारकर अंतराल आएंगे। तुम छोटी-छोटी और बाहर भी। लेकिन उसके साथ भी और नष्ट करके पैदा नहीं होता; अ-मन सतोरियों के, लघु सतोरियों के आशीष से आसक्त मत हो जाओ।
तो तब जन्मता है जब तुम मन को इतनी धन्य हो जाओगे। कई बार तो मिनटों बीत आसक्ति मन के लिए भोजन है कि वह समग्रता से समझ लेते हो कि सोच-विचार जाएंगे और कोई विचार नहीं आएगा; कोई चलता रह सके। अनासक्त साक्षीभाव की कोई जरूरत नहीं रहती। तुम्हारी समझ ट्रैफिक नहीं होगी-एक परिपूर्ण और बिना उसे रोकने का प्रयास किए उसको उसका स्थान ले लेती है। 5
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