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ध्यान में बाधाएं
छोटे बच्चों को देखोः कितने द्वेषपूर्ण, बाहर हैं, वे 'तू' हैं। दूसरा स्पष्ट हो जाता उतना ही यह पूरा अस्तित्व तुम्हारा हिस्सा कितने पकड़ के बैठे हैं! हर बच्चा बाकी है; अब चीजें विभाजित होने लगती हैं। हो जाएगा, और तुम पूरे अस्तित्व के हिस्से सब से सब कुछ खींच लेने की और दूसरों जगत एक है, जगत एकता है। कुछ भी हो जाओगे। एक बार तुम समझ जाओ कि से अपने खिलौनों को बचाने की चेष्टा कर विभक्त नहीं है। हर चीज बाकी दूसरी हम एक-दूसरे के सदस्य हैं, तो अचानक रहा है। और तुम्हें ऐसे बच्चे मिलेंगे जो चीजों से जुड़ी हुई है; यह एक गहन दृष्टि बदल जाती है। तब ये वृक्ष विजातीय बहत हिंसक हैं, दूसरों की आवश्यकताओं संबद्धता है।
नहीं रहते; वे लगातार तुम्हारे लिए भोजन के प्रति लगभग उदासीन। यदि एक बच्चा तुम पृथ्वी से जुड़े हो, वृक्षों से जुड़े हो, तैयार कर रहे हैं। जब तुम श्वास भीतर अपने खिलौने के साथ खेल रहा हो और सितारों से जुड़े हो; सितारे तुमसे जुड़े हैं, लेते हो तो ऑक्सीजन भीतर लेते हो, जब कोई दूसरा बच्चा आ जाए तो तुम अडोल्फ सितारे वृक्षों से जुड़े हैं, नदी से जुड़े हैं, तुम श्वास छोड़ते हो तो कार्बन डाई हिटलर को, चंगेज खान को, नादिरशाह पर्वतों से जुड़े हैं। सबकुछ अंतर्संबंधित है। ऑक्साइड छोड़ते हो; वृक्ष कार्बन डाई को देख सकते हो। वह अपने खिलौने को कुछ भी अलग-थलग नहीं है; कुछ भी ऑक्साइड भीतर लेते हैं और ऑक्सीजन पकड़ लेगा; अब वह चोट करने को तैयार अलग नहीं हो सकता। अलगाव संभव ही छोड़ते हैं-एक अहर्निश मिलन घट रहा है, लड़ने को तैयार है। यह साम्राज्य का नहीं है।
है। हम एक लय में हैं। सत्य एक इकाई प्रश्न है, आधिपत्य का प्रश्न है।
हर क्षण तुम श्वास ले रहे हो-श्वास है; और 'मुझ' व 'तू' के विचार के साथ ही . मालकियत का भाव पहले आता है; भीतर लेते हो, श्वास बाहर छोड़ते हम सत्य से बाहर निकल गिरते हैं। और यही बुनियादी विष है। और बच्चा कहने हो–अस्तित्व के साथ एक सतत सेतु एक बार भीतर कोई गलत धारणा बैठ जाए लगता है, "यह मेरा है।"
बना हुआ है। तुम खाते हो, तो अस्तित्व तो, तुम्हारी पूरी दृष्टि ही उलटी हो जाती एक बार 'मेरा' प्रवेश कर जाए तो तुम तुममें प्रवेश करता है; तुम मल-त्याग है।. सबके प्रतिस्पर्धी बन जाते हो। एक बार करते हो, वह खाद बन जाता है-वृक्ष पर पहले 'मुझ' फिर 'तू', और तब फिर 'मेरा' प्रवेश कर जाए, तो तुम्हारा जीवन लगा हुआ सेब कल तुम्हारे शरीर का एक प्रतिबिंब की भांति 'मैं' उठता है। "मैं' प्रतिस्पर्धा, संघर्ष, द्वंद्व, हिंसा और हिस्सा बन जाएगा, और तुम्हारे शरीर का मालकियत का सबसे सूक्ष्मतम और आक्रमण का जीवन हो जाएगा। कुछ हिस्सा बाहर निकलेगा और खाद बन सुगठित रूप है। एक बार तुमने 'मैं' कह __'मेरे' के बाद का चरण है 'मुझ' का। जाएगा, वृक्ष के लिए भोजन बन दिया तो समझो पाप कर दिया। एक बार जब तुम्हारे पास ऐसा कुछ हो जिस पर तुम जाएगा...एक सतत आदान-प्रदान है। तुमने 'मैं' कह दिया तो तुम अस्तित्व से अपना दावा कर सको, तो अचानक यह यह एक क्षण के लिए भी नहीं रुकता। जब पूरी तरह टूट गए–वास्तव में टूटोगे नहीं, विचार खड़ा होता है कि तुम अपनी सारी यह रुकता है, तो तुम मर जाते हो। वरना तो तुम मर ही जाओगे; लेकिन मालकियत के केंद्र हो। तुम्हारी मालकियत मृत्यु क्या है? -विभाजन है मृत्यु। अपने विचारों में तुम सत्य से बिलकुल टूट तुम्हारा साम्राज्य बन जाती है, और उस एकात्मता में होना जीवन है, और चुके हो। अब तुम सत्य के साथ सदा एक मालकियत के द्वारा 'मुझ' का एक नया एकात्मता में से बाहर निकल जाना मृत्यु संघर्ष में रहोगे। तुम अपनी ही जड़ों से विचार खड़ा होता है।
है। तो जितना तुम सोचते हो,“मैं अलग लड़ने लगोगे। तुम अपने ही साथ लड़ने एक बार तुम 'मुझ' में व्यवस्थित हो हूं," उतने ही तुम कम संवेदनशील और लगोगे। जाओ, तो तुम स्पष्ट देख सकते हो कि अधिक मृत, मंद व दीन हो जाओगे। इसीलिए बुद्ध कहते हैं: “बहते हुए तुम्हारी एक सीमा है, और जो उस सीमा से जितना तुम भाव करो कि तुम संबंधित हो, तिनके की भांति हो जाओ।" बहता हुआ
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