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व ने कहा : मिलन का स्मरण करने से भी, आलिंगन के बिना ही रूपांतरण होता है।
एक बार तुम पिछली दो विधियों को जान जाओ तो साथी की भी जरूरत नहीं है। तुम यौन - कृत्य का स्मरण करने भर से ही उसमें प्रवेश कर सकते हो। लेकिन पहले तुम्हें अनुभूति होनी चाहिए। तुम्हें अनुभूति हो जाए तो साथी के बिना भी तुम
प्रेम का आत्म-वर्तुल
तुम होते हो, और तुम्हारे साथी के लिए तुम नहीं होते: केवल वही होता है या होती है। वह अद्वैत तुम्हारे भीतर केंद्रित हो गया; साथी अब नहीं बचा। और स्त्रियों के लिए इसे अनुभव करना सरल है क्योंकि वे सदा आंखें बंद करके ही संभोग करती हैं।
कृत्य में प्रवेश कर सकते हो। यह थोड़ा कठिन है, लेकिन यह घटित होता है । और जब तक ऐसा न हो जाए, तुम निर्भर ही रहते हो : एक निर्भरता निर्मित हो जाती है। ऐसा कई कारणों से होता है।
यदि तुम्हें अनुभूति हो गई हो, यदि तुमने उस क्षण को जान लिया हो जब तुम नहीं थे वरन एक तरंगायित ऊर्जा ही थी — तुम एक हो गए थे, और साथी के साथ एक वर्तुल बन गया था— उस क्षण साथी था ही नहीं। उस क्षण में केवल
प्रेम में ऊपर उठना
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इस विधि को करते हुए, अच्छा हो यदि तुम अपनी आंखें बंद कर लो। तब वर्तुल का एक अंतर्भाव ही होता है, अद्वैत का एक अंतर्भाव ही होता है । फिर बस उसका
स्मरण करो। अपनी आंखें बंद कर लो; लेट जाओ जैसे कि तुम अपने प्रेमी या प्रेमिका के साथ हो। बस स्मरण करो और अनुभव करने लगो। तुम्हारा शरीर कंपने और तरंगायित होने लगेगा। इसे होने दो! बिलकुल भूल जाओ कि दूसरा व्यक्ति साथ नहीं है। ऐसे गति करो जैसे कि दूसरा मौजूद हो। बस शुरू में ही यह 'जैसे कि ' होता है। एक बार तुम जान जाओ तो यह 'जैसे कि' नहीं रहता । फिर दूसरा मौजूद होता है।