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________________ मृत्यु में प्रवेश ब्रह्मांडीय मजाक को समझ गए हों। एक आदमी जीत गया। हम हमेशा ही सोचते थे कि कोई भी अशुद्धता मेरे पास जमा नहीं शब्द भी बिना बोले उन्होंने पूरे चीन भर में कि कौन पहले मरेगा, और इस आदमी ने हो सकती, मेरे पास भी नहीं फटक बहत आनंद फैलाया। लोग उनके नाम हमें हरा दिया। हम अपनी पराजय पर और सकती। मैंने कोई धूल इकट्ठी नहीं की; पूछते, लेकिन वे बस हंस देते, तो यही उसकी जीत पर हंस रहे हैं। और फिर, वह हंसी सदा ही युवा और ताजी होती है। तो उनका नाम हो गया-'तीन हंसते इतने वर्ष हमारे साथ रहा, और हम मुझे नहलाना मत, और न ही मेरे कपड़े फकीर'। एकसाथ हंसे और हमने एक-दूसरे के बदलना।" फिर वे वृद्ध हुए, और किसी गांव में, साथ का, मौजूदगी का आनंद लिया। उसे तो, बस उसे सम्मान प्रकट करने के उनमें से एक फकीर मर गया। पूरा गांव अंतिम विदा देने का कोई और उपाय नहीं लिए, उन्होंने उसके कपड़े नहीं बदले। अपेक्षा करता था, बहुत अपेक्षा से भर हो सकता। हम हंस भर सकते हैं।" और जब शरीर को चिता पर रखा गया तो गया था, क्योंकि अब तो कम से कम उन्हें पूरा गांव दुखी था, लेकिन जब मृत अचानक उन्हें पता चला कि उसने अपने रोना ही चाहिए जब कि उनमें से एक फकीर की देह को चिता पर रखा गया तो कपड़ों के नीचे बहुत-सी चीजें छिपा ली फकीर मर गया है। यह देखने जैसा होगा, पूरे गांव को पता चला कि यही दोनों नहीं थीं और वे सभी चीजें शुरू हो गईं...चीनी क्योंकि इन लोगों के रोने की कोई कल्पना हंस रहे थे-तीसरा, जो मर गया था वह पटाखे! तो पूरा गांव हंसा, और वे दो भी नहीं कर सकता था। भी हंस रहा था। क्योंकि वह तीसरा व्यक्ति फकीर बोले, "बदमाश! तू मर गया, • पूरा गांव जमा हो गया। दो फकीर जो मर गया था उसने अपने साथियों को लेकिन तूने दोबारा हमें हरा दिया। तेरी तीसरे फकीर की लाश के पास खड़े थे, कहा था, "मेरे कपड़े मत बदलना!" ऐसा हंसी ही अंतिम रही।" । और दिल खोल कर हंस रहे थे। तो गांव रिवाज था कि जब कोई व्यक्ति मर जाता, जब इस ब्रह्मांड का पूरा मजाक समझ वालों ने पूछा, "कम से कम यह तो तो वे उसके कपड़े बदलते और उसके लिया जाता है तो एक ब्रह्मांडीय हंसी उठती समझाएं!" शरीर को नहलाते, तो उसने कह रखा था, है। वह उच्चतम है, केवल कोई बुद्ध ही तो पहली बार वे बोले, और उन्होंने "मुझे नहलाना मत, क्योंकि मैं कभी भी उस भांति हंस सकता है। वे तीन फकीर कहा, "हम इसलिए हंस रहे हैं कि यह गंदा नहीं रहा। मेरे जीवन में इतनी हंसी थी निश्चित ही तीन बुद्ध रहे होंगे। 185
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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