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________________ ध्यान की विधियां इस प्रयोग को करते हुए अपनी आंखें है। दूसरी आकृति आकाशीय तत्व की सहयोग दो। तुम क्या कर सकते हो? खोल लो और तुम ठीक अपने शरीर के है-तुम्हारे चारों ओर, तुम्हारे शरीर के बस मौन बैठकर इसे देखो; कुछ मत चारों ओर एक नीली आकृति चारों ओर। वह तुम्हारे शरीर में प्रवेश करो, बस अपने आसपास एक नीली देखोगे-मात्र प्रकाश। तुम्हारे शरीर के करती है और वह तुम्हारे शरीर के चारों आभा को देखते रहो; कुछ भी न करते चारों ओर एक नीला प्रकाश होगा। यदि ओर एक मंद प्रकाश, एक नीले हुए, बस इसे देखते हुए-तुम्हें लगेगा कि तुम सचमुच इसे देखना चाहते हो, बंद प्रकाश-सी एक ढीले चोगे की तरह चारों वह बढ़ रही है, फैल रही है, बड़ी से बड़ी आखों से नहीं वरन खुली आंखों से, तो ओर से घेरे हुए है।। होती जा रही है। क्योंकि जब तुम कुछ भी इस प्रयोग को किसी अंधेरे कमरे में करो जब भी कोई तुम्हें प्रेम करता है, जब भी नहीं कर रहे होते तो पूरी ऊर्जा सूक्ष्म शरीर जहां कोई प्रकाश न हो। कोई गहन प्रेम से तुम्हें छूता है, तो वह में चली जाती है। इसे स्मरण रखो। जब यह नीली आकृति, यह नीला प्रकाश, तुम्हारे सूक्ष्म शरीर को छूता है। इसीलिए तुम कुछ भी करते हो तो ऊर्जा सूक्ष्म शरीर सूक्ष्म शरीर की उपस्थिति है। तुम्हारे कई यह तुम्हें इतना सुखदायी लगता है। इसके से बाहर निकाल ली जाती है। शरीर हैं। यह विधि सूक्ष्म शरीर से संबंधित चित्र भी लिए गए हैं। दो प्रेमी गहन प्रेम में जब तुम कुछ नहीं कर रहे हो, तब है, और सूक्ष्म शरीर के द्वारा तुम परम संभोग कर रहे हैं : यदि उनका संभोग एक तुम्हारी ऊर्जा बाहर गति नहीं कर रही है। आनंद में प्रवेश कर सकते हो। सात शरीर निश्चित सीमा तक, चालीस मिनट से वह सूक्ष्म शरीर की ओर चली जाती है। हैं, और हर शरीर का उपयोग दिव्य में अधिक चल सके, और स्खलन न हो, तो वहां एकत्रित हो जाती है। तुम्हारा सूक्ष्म प्रवेश करने के लिए किया जा सकता है; गहन प्रेम में, दोनों शरीरों के आसपास शरीर एक विद्युत-कुंड बन जाता है। और हर शरीर बस एक द्वार है। एक नीला प्रकाश प्रगट होता है। उसके वह जितना विकसित होता है, तुम उतने ही यह विधि सूक्ष्म शरीर का उपयोग करती चित्र भी लिए गए हैं। मौन हो जाते हो। जितने तुम मौन होते हो, है, और सूक्ष्म शरीर को अनुभव करना पहले तुम्हें उस ऊर्जा मंडल के प्रति उतना ही यह विकसित होता है। एक बार सबसे सरल है। शरीर जितना गहरा हो, सजग होना होगा जो तुम्हारी भौतिक तुम जान जाओ कि कैसे सूक्ष्म शरीर को उतना ही उसे अनुभव करना कठिन है; आकृति को घेरे हुए है, और जब तुम ऊर्जा देनी है और कैसे उसे व्यय नहीं लेकिन सूक्ष्म शरीर तो तुम्हारे करीब ही है, सजग हो जाओ तो उसे विकसित होने में करना है, तो तुम जान गए; तुम्हें एक गुप्त भौतिक शरीर के करीब है। बस पास ही सहयोग दो, उसे बढ़ने और फैलने में कुंजी का पता चल गया। 4 130
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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