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आंतरिक केंद्रीकरण
एमरस
क सूफी फकीर जो अपने जीवन | भर आनंदित रहा-किसी ने भी
"उसे कभी दुखी नहीं देखा वह सदा हंसता रहता था। वह हंसी ही था, उसका पूरा होना ही उत्सव की सुवास थी। अपनी वृद्धावस्था में, मरते समय, मृत्यु-शैय्या पर वह मृत्यु का भी आनंद ले रहा था, मजे से हंस रहा था-एक शिष्य ने पूछा, “आप हमें हैरान करते हैं। अब आप मर रहे हैं, तो हंस क्यों
दुखी या सुखी होने का निर्णय
रहे हैं? इसमें हंसी की क्या बात है? हम था। जब युवा था तो मैं अपने गुरु के पास साथ क्या मामला है? आप पागल हैं या तो इतने दुखी हैं! आपके जीवन में हम गया था; मैं सत्रह वर्ष का ही था, और क्या हैं?" आपसे कई बार पूछना चाहते थे कि आप दुखी हो चुका था। और मेरे गुरु वृद्ध थे, “वे बोले, 'एक दिन मैं भी तुम्हारे कभी दुखी क्यों नहीं होते। लेकिन अब, सत्तर वर्ष के थे, और वे एक वृक्ष के नीचे जितना ही दुखी था। फिर यह बात मुझे मृत्यु का सामना करते हुए तो व्यक्ति को बैठे अकारण ही हंस रहे थे। कोई और समझ आई कि यह मेरा ही चुनाव है, यह दुखी होना चाहिए। आप अभी भी हंस रहे वहां नहीं था, कुछ भी हुआ नहीं था, मेरा जीवन है।' हैं! आप हंस कैसे पा रहे हैं?"
किसी ने कोई चुटकुला वगैरह नहीं “उस दिन से, हर सुबह जब मैं उठता __तो उस वृद्ध ने कहा, “यह एक सुनाया। और वे बस अपना पेट पकड़े हंसे हूं, पहला निर्णय मैं यह लेता हूं कि अपनी छोटा-सा राज है। मैंने अपने गुरु से पूछा जा रहे थे। तो मैंने उनसे पूछा, आपके आंखें खोलने से पहले मैं स्वयं से ही
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