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आंतरिक केंद्रीकरण
आंतरिक केंद्रीकरण
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द्र के बिना कोई भी नहीं रह सकता। उसका निर्माण नहीं 1" करना है बस उसका पुन विष्कार कर लेना है। वह परम सारतत्व जो तुम्हारा स्वभाव है, जो प्रभु-प्रदत्त है, वही केंद्र है। व्यक्तित्व परिधि है जिसे समाज ने प्रयासपूर्वक निर्मित किया है; वह प्रभु-प्रदत्त नहीं है। वह पोषण से आया है, स्वभाव से नहीं।।
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