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________________ ज्ञात हुई। क्रोधावस्था में भयंकर पाप हो गया है एवं निर्दोष मनुष्य की हत्या करा दी है - ऐसा जानकर वह बड़ा पश्चात्ताप करने लगा और साधु की समता की बात सेवकों से सुनी। मन ही मन उनकी समता की अनुमोदना करते करते - यह संसार अस्थिर है, असार है - यूं सोचकर राजा-रानी दोनों ने संयम स्वीकार कर, करे हुए पापों की आलोचना की। दुष्कर तप करके काया को गला डाला और शिवसुख पाया। -------------------- जब तक आतमा जब तक आतमा तत्त्व चेता नहीं तब तक साधना सर्व झूठी मानुष देह तेरा यों व्यर्थ गया, महावट जैसी वृष्टि बरसी...जब० क्या हुआ स्नान, पूजा व सेवा से, क्या हुआ घर रहकर दान देने से? क्या हुआ धर कर जटा भस्म लेपन से, क्या हुआ केश लोचन करके? जब क्या हुआ तप व तीरथ करके? ___ क्या हुआ माला लेकर नाम लेने से क्या हुआ तिलक व तुलसी धारण करके, क्या हुआ गंगाजल पान करके? जब क्या हुआ वेद व्याकरण वाणी बोलकर, क्या हुआ राग व रंग जानकर? क्या हुआ नित्य दर्शन सेवन से, क्या हुआ वरण भेद करके? जब ये हैं प्रपंच सब पेट भरने के, आत्माराम परिब्रह्म न देखा, ___ कहे नरसिंह, तत्त्वदर्शन बिना चिंतामणि जन्म खोया। जब -- - - - - - - - - - - - - - - - - - जिन शासन के चमकते हीरे • ५५
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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