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________________ खंधक मुनि याने स्कंधकाचार्य १. खंधककुमार जितशत्रु राजा के पुत्र थे। बचपन से धर्मपारायण थे। एक दिन बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रत स्वामी भगवान की अमृतमय देशना सुनकर वैराग्य पैदा हुआ और..... २. पाँचसौं राजकुमारों के साथ दीक्षा ली। भगवंत को पूछकर एक दिन वहम के देश की और विहार किया। ३. प्रभु ने कहा, 'आपके पूरे परिवार को मरणोत्तर कष्ट होगा।' तब खंधकसूरीने भगवँत को कहा, 'हम आराधक होंगे या विराधक?' भगवंत ने कहा, 'आपके सिवा सब आराधक बनेंगे।' तब विचार करके बहन के देश की ओर चल पड़े, वहाँ के मंत्री को उन पर. द्वेष था। गाँव में पहुंचे, मंत्री को पता चला। उन्हें मार डालने के प्रयत्न प्रारंभ किये। राजा के कान भरे कि ये मुनि-५०० मुनि के वेश में सैनिक बनकर आपको मारकर राज्य छीन लेंगे। राजा ने क्रोधित होकर पापी मंत्री को हुक्म दिया, 'आपको ठीक लगे उस प्रकार से ५०० को खत्म कर दो।' तब दुष्ट... अधम मंत्री कोल्हू बनाकर सर्व मुनियों को उसमें पेरने लगे। खून की नदियाँ बहने लगी। यों ४९८ मुनि समता रस में घुलमिलकर कर्मक्षय करके मोक्ष पा गये। तब बाल मुनि को मारते हुए मंत्रीने खंधक मुनि की 'प्रथम मुझे मारो' - ऐसी पुकार भी न सुनी। तो मरने से पूर्व प्रतिज्ञा करते हुए, खंधक मुनि ने कहा, 'मैं अलगे जन्म में मंत्री के साथ पूरी नगरी के लोगों को मार डालूंगा' - पश्चात् प्रतिज्ञा के प्रभाव से अग्निकुमार देव बने । नगरी जला डाली। इस प्रकार क्रोध करने मोक्ष न जा सके। क्रोध - से कल्याण नहीं है, क्षमा से सिद्धि मिलती है। धन्य स्कंधकाचार्य
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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