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________________ न लूंगा। बालक ने सूत से जितने बट लिये हैं उतने वर्ष मैं गृहस्थाश्रम में रहूँगा।' उन्होंने पैर के तंतुबंधन के बट गिने जो बारह थे। सीस के लीये बारह वर्ष उन्हने गृहस्थाश्रम में निर्गमन किये और एक प्रातः श्रीमती को समझाकर यतिलिंग धारण करके निर्मम मुनि बनकर घर से चल पड़े। मार्ग में आर्द्रकपुर से उन्हें ढूंढने आये पाँचसौं सामंत मिले। वे आर्द्रकुमार को ढूंढ न सके थे, इसी कारण से राजा को मुँह भी नहीं दिखा सकते थे और आजीविका के लिये चोरी का धंधा करते थे। उन्हें धर्मदेशना सुनाकर उन पाँचसौं सामंतों को दीक्षा दी। विहार करते हुए वे एक तापसों की टोली के पास पहुँचे, जिन्होंने मांसभक्षण हेतु एक हाथी को बांध रखा था। आर्द्रमुनि को कई लोग मस्तक झुका रहे थे। यह देखकर लघुकर्मी हाथी ने सोचा, 'मैं यदि छूट जाता तो शीश झुकाकर इन मुनि की वंदना करता।' ऐसा सोचते हुए महर्षि के दर्शन होते ही लोहे के बंधन टूट गये और गजेन्द्र छूट कर महामुनि की वंदना के लिए आगे बढ़ा। हाथी मुनि को मार डालेगा - उससे बचने के लिएलोग दूर भाग गये, लेकिन मुनि तो वहीं खड़े रहे। हाथी ने मुनि के पास आकर कुंभस्थल झुकाकर प्रणाम किया और सुंढ से चरणस्पर्श भी किया। गजेन्द्र को खूब शान्ति प्राप्त हुई और वह दूर चला गया। हाथी के छूट जाने से तापस सब आर्द्रमुनि पर क्रोधित हुए थे, उन्हें बोध देकर उन्होंने प्रभुमहावीर के समवसरण में भेज दिया।वहाँ जाकर उन सबने संवेगी दीक्षा ले ली। राजगृही में श्रेणिक राजा और अभयकुमार ने गजेन्द्रमोक्ष की बात सुनी और आर्द्रमुनि के पास पधारें। भक्तिपूर्वक वंदना करके कहा : 'मुनि! आपने किये हुए गजेन्द्रमोक्ष से हमें आश्चर्य होता है।' मुनी बोले, 'हे राजेन्द्र ! गजेन्द्रमोक्ष मुझे दुष्कर नहीं लगा लेकिन तकुओ के सूत के चक्कर में से छूटकर मोक्ष पाना दुष्कर लगता है।' राजा ने पूछा, 'किस प्रकार!' मुनिने बालक ने बांधे हुए तकुओ के सूत की कथा कही, जिसे सुनकर राजा एवं अन्य लोग भी चकित हो गये। पश्चात् आर्द्रकुमार मुनि ने अभयकुमार को कहा, 'हे बंधु! आप मेरे उपकारी धर्मबंधु हैं । आपकी भेजी हुई अहँत की प्रतिमा के दर्शन से मुझे जाति स्मरणज्ञान हुआं और मैं आहत बना। हे भद्र! आपने मेरा उद्धार किया है। आपकी बुद्धि के प्रताप से मैं इस आर्यदेश में आया और आपसे ही प्रतिबोधित होकर मैंने दीक्षा पाई है। हे बंधु! आपका कल्याण हो।' राजगृह में बिराजित वीर प्रभु की वंदना और चरणकमल की सेवा करते हुए आर्द्रमुनि ने मोक्ष प्राप्त किया। जिन शासन के चमकते हीरे • ५३
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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