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________________ के लिए समझाने लगीं लेकिन सुकोशल ने उसको कहा, 'तेरे गर्भ में जो पुत्र है उसका मैंने राज्याभिषेक कर दिया है' - यूं समझाकर सुकोशल अपने पिता से दीक्षा लेकर कड़ी तपस्या करने लगे। ममतारहित और कषायवर्जित पितापुत्र महामुनि होकर पृथ्वी के तल को पवित्र कर साथ ही विहार करते थे। पुत्र और पति वियोग से सहदेवी को बड़ा खेद हुआ। आर्तध्यान में मृत्यु पाकर गिरनार की गुफा में शेरनी रूप में अवतरित हुई। कीर्तिधर और सुकोशल मुनि चातुर्मास निर्गमन के लिए पर्वत की गुफा में स्थिर ध्यानस्थ अवस्था में रहे । कार्तिक मास आया तब दोनों मुनि पारणा करने शहर की ओर चले। वहाँ मार्ग में यमदूती जैसी उस शेरनी ने उन्हें देखा। शेरनी नजदीक आई और झपटने के लिये तैयार हुई। उस समय दोनों साधु धर्मध्यान में लीन होकर कायोत्सर्ग के लिए तैयार थे। सुकोशल मुनि शेरनी के सन्मुख होने से प्रथम प्रहार उन पर किया, उन्हें पृथ्वी पर गिरा दिया नाखूनरूपी अंकुश से उनके शरीर को फाड़कर बहते रुधिर का पान करने लगी एवं मांस तोड़ तोड़कर खाने लगी। उस समय सुकोशल मुनि, 'यह शेरनी मेरे कर्मक्षय में सहकारी है' - ऐसा सोचते हुए उन्हें थोड़ीसी भी ग्लानि न हुई। इससे वे शुक्ल ध्यान में पहुँचते ही केवलज्ञान पाकर मोक्ष पधारे। इसी प्रकार कीर्तिधर मुनि ने भी क्रमशः केवलज्ञान पाकर अद्वैत सुख स्थानरूपी परमपद प्राप्त किया। 3 58883%8888888888 3003888888888 23338 अरिहा शरणं । अरिहा शरणं, सिद्धा शरणं, साहु शरणं चुनिए, धम्मो शरणं पाकर विनय जिनआणां सिर धरिए। । अरिहा शरणं मुझे, आतम शुद्धि करने, । सिद्धा शरणं मुझे, रागद्वेष को हरने । । । साहु शरणं मुझझे, संयम शूरवीर बनने । धम्मो शरणं मुझे, भवसागर पार करने । मंगलमय चारों की शरणं, सर्व विपत्ति टलें, चिट्धनकी डूबती नैया शाश्वत नगरी पहचाये। । womesmssssss जिन शासन के चमकते हीरे • ४०
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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