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________________ कोई देवता तेज पुंज जैसे प्रकट होते हुए बोले, 'हे नृपपति ! आप वाकई मेरू पर्वत जैसे हैं, स्वस्थान से चलित हुए ही नहीं । इशानेंद्र ने अपनी सभा नें आपकी प्रशंसा की वह मुझसे सहन न हो सकने के कारण आपकी परीक्षा करने आये थे। हमारा यह अपराध क्षमा करे।' इस प्रकार कहकर राजा को पूर्वरूप देकर देवता स्वर्ग में पधारे। तत्पश्चात मेघरथ राजाने संयम ग्रहण किया और बीसस्थानक का तप विधिपूर्वक करके तीर्थंकर गौत्र प्राप्त कर एक लाख पूर्व आयुष्य भोगकर बारहवें भाव में अचिराजी की कोक्ष से अवतार धारण कर श्री शांतिनाथ नामक सोलहवें तीर्थंकर बने । अति अधिक न तानिये, ताने से टूट जाय, टूटे बाद जो जोडिये, बीच में गांठ पड जाय । इतना तो देना भगवंत इतना तो देना भगवन्! मुझे अंतिम घडी, न रहे माया के बंधन, मुझे अंतिम घड़ी (टेक) यह जिंदगी महँगी मिली, लेकिन जीवन में जागा नहि, अंत समय मुझे रहे, सच्ची समझ अंतिम घडी । इतना... जब मरणशय्या पर मींचूं आखिर अँखियाँ तूं देना तब प्रभुमय मन, मुझे अंतिम घडी। इतना.... हाथ पैर निर्बल बने, श्वास आखिरी संचरे, इतना... ओ दयालु ! देना दर्शन, मुझे अंतिम घडी । इतना... मैं जीवनभर जलता रहा संसार के संताप में; तूं देना शांतिपूर्ण, निंद्रा मुझे अंतिम घडी । अनगिनत अधर्म मैंने किये, तन-मन-वचन योग से, हे क्षमासागर ! क्षमा मुझे देना अंतिम घडी । इतना... अंत समय आकर मुझे, दमे न घट्ट दुश्मन, जाग्रतपन से मन में रहे, तेरा स्मरण अंतिम घडी ॥ इतना... जिन शासन के चमकते हीरे ३१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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