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________________ ने कहा, 'मैंने कोई दुष्कृत्य किया ही नहीं है। यदि मैंने दुष्कृत्य किया होता तो देवलोक में आता कैसे?' - इस प्रकार युक्तिपूर्वक उत्तर दिया। अभयकुमार की योजना नाकाम रही। रोहिणेय को छोड़ देना पड़ा। छुटकारा होते ही वह सोचने लगा, पल दो पल की प्रभु वाणी बड़े काम आई। उनकी वाणी अधिक सुनी होती तो कितना सुख मिलता? मेरे पिता ने गलत उपदेश देकर मुझे संसार में भटकाया है। यों पश्चात्ताप करते हुए प्रभु के पास आकर चरणों में गिरकर वंदना की और कहा, मेरे पिता ने आपके वचनों को सुनने का निषेध करके मुझे ठगा है, कृपा करके मुझे संसारसागर से बचाओ। कुछ समय के आपके अल्प वचनों को सुनकर राजा के मृत्युदण्ड से बचा हूँ अब उपकार करके, योग्य लगे तो मुझे चारित्र ग्रहण करवाईये। प्रभु ने व्रत देने की हाँ कह दी। करे हुए पापों की क्षमायाचना हेतु चोरने श्रेणिक महाराजा के पास जाकर चोरी वगैरह का इकरार किया और अभयकुमार को संग्रहित चोरी के माल का पता दिया। और प्रभु से दीक्षा ग्रहण की । क्रमानुसार एक उपवास से लेकर छ:मासी उपवास की उग्र तपश्चर्या करने के बाद वैभार पर्वत पर जाकर अनशन किया। शुभ ध्यानपूर्वक पंच परमेष्ठी का स्मरण करते हुए देह छोड़कर स्वर्ग पधारे। S80808888888888836938888886 5064 । अवसर बेहेर बेहेर नहीं आवे 8890896 | बेहेर बेहेर नहीं आवे अवसर बेहेर बेहेर नहीं आवे, । ज्यों जाने त्यों कर ले भाई, जनम जनम सुख पावे। अव.. तन, धन जोबन सब ही झूठा, प्राण पलक में जावे। अव.... । । तन छूटे, धन कौन कामको, कायकु कृपण कहावे। अव.३ । ! जाके दिल में साच बसत है, ताक झूठ न भावे। अव...४ । । आनंदधन प्रभु चलत पथ में, समरी समरी गुन गावे। अव...५ । 388528808 जिन शासन के चमकते हीरे . २७
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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