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________________ सच्ची ही होगी। भोग भुगत ही लूँ । शासनदेव ने सुनाये भोग कर्मों का उदय हुआ जिससे बारह वर्ष तक इस आवास पर रहे। रोजाना दस व्यक्तियों को प्रतिबोधने का नियम बनाया। जहाँ तक तक दस व्यक्तियों को प्रतिबोधित न करे तब तक भोजन न करने का पक्का नियम | एक दिन नौं व्यक्तियों को प्रतिबोधित किया लेकिन दसवां कोई न मिला । भोजन की देर हो रही थी । एक मूर्ख को प्रतिबोधित करने का प्रयत्न किया लेकिन व्यर्थ! वेश्या - वनिता ने हँसते हँसते कहा, 'नौ तो हुए, दसवें आप स्वयं!' 'नंदीषेण की आत्मा प्रज्वलित हो उठी, ' हाँ दसवाँ हूँ मैं।' सब कुछ छोड़कर भगवान के पास पहुँचे, पुनः दीक्षा ग्रहण की। शुद्ध चारित्र पालकर, तप-जप-संयम क्रिया साधकर कई जीवों को प्रतिबोध करके देवलोक पधारें। सामान्य जिन स्तवन जिन तेरे चरण की शरण ग्रहुं, प्रभुजी तेरे चरण की शरण ग्रहुं... हृदय कमलमें ध्यान धरत हुं, शिर तुज आण वहुं । जिन... ॥ १ ॥ तुम सम खोळ्यो देव खलकमें, पेख्यो ना कबहुं । जिन... ॥ २ ॥ तेरे गुणों की जपुं जपमाला, अहर्निश पाप दहुं । जिन... मेरे मन की तुम सब जानो, क्या मुख बहोत कहुं । जिन... ॥४॥ कहे जस विजय करो त्युं साहिब, ज्युं भव दुख न लहुं । 11 3 11 जिन तेरे चरण की शरण ग्रहुं... ॥ ५ ॥ * * जिन शासन के चमकते हीरे १८
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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