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___ मंत्री की ये चार इच्छाएँ सुनकर सामंतो ने कहा, 'चार में से तीन तो आपका बड़ा पुत्र बाहडदेव जरूर पूर्ण करेगा। परंतु यहाँ जंगल में धर्म सुनानेवाले मुनिराज हो तो तलाश करके जल्दी से लाने का प्रबन्ध करते हैं।' ।
थोडी दूर गाँव में एक भाँड रहता था जो बहुरूपिये का पेशा करके धन कमाता था। सैनिको ने वहाँ जाकर बताया कि एक जैन मुनि महाराज की जरूरत है । भाँड बोला, 'मुझे चौबीस घण्टे का समय दो, मैं जैन मुनि के बारे में सब जानकर, जैन मुनि का वेष जरूर अच्छा निभा लंगा।'
जैसे तैसे अतिशय पीडासे पीडित मंत्री ने अर्धबेहोशी में रात गुजार दी। भाण्ड सुबह में ठीक साधू महाराज जैसा भेष बनाकर ओथा, मुहपत्ती के साथ आ पहुंचा
और 'धर्मलाभ' कहकर खडा रहा।कुछ होश में आते ही मंत्रीश्वर ने बैठकर गौतम स्वामी की तरह झुककर समग्र प्राणियों से मन से क्षमापना की। करे हुए पापों की निन्दा तथा पुण्यकरणी की अनुमोदना करते हुए मुनिराज से धर्म सुनने लगे।
तीन बार नवकार मंत्र सुनाया। भक्तामर स्तोत्र की पहली तथा दूसरी गाथा बड़े मधुर स्वर से गायी। भक्तागर की दूसरी गाथा पूरी होते ही 'स्तोष्ये किलाहमपितं प्रथमं जिनेन्द्रम' बोला। उस समय मंत्री गुरु को वंदन हेतु झुकते हो उस प्रकार झुके और उनका प्राणपखेरु उड गया।समाधिमरण होते ही उदयन मंत्री स्वर्ग गये।
सामंतो ने साधू के वेशवाले भाण्ड को सुंदर अभिनय से वेष करने का अच्छा पुरस्कार धरा और अब साधू भेष उतार देने के लिए कहा। परंतु वह तो सोच रहा था कि अहा! साधूवेष की कैसी महिमा है? मैं भिक्षुक हूँ और ये सैनिक वगैरह जिनकी पूजा करते हैं, वंदना करते हैं, उन्होने मेरी वंदना की; सो यह वेष अब नहीं छोड़ा जा सकता । उसको सद्गुरु के पास जाकर भाव से विधिपूर्वक दीक्षा लेकर वाकई मे साधू बनकर साधूवेष शोभायमान करने की भावना जाग्रत हुई। उसने पुरस्कार अस्वीकार करते हुए कहा : मंत्रीश्वर की आँखें बंद हो गई लेकिन मेरी आँखें खुल गयी।" ___ 'मेरी तो सचमुच दीक्षा लेकर.भव पार करने की एक मात्र इच्छा है 'यूंकहकर एक आचार्य से दीक्षा लेकर गिरनार पर्वत पर जाकर दो माह का अनसन करके कालानुसार देव लोक गया।
मृत्यु समय पर मंत्रीश्वर ने जो अन्य तीन इच्छाएँ की थी वह पाटण लौटने पर बाहड मंत्री ने पूर्ण कर दी।
जिन शासन के चमकते हीरे • ३०४