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________________ मन से स्थिरता रखी। तेरा व्रत पालन मेरु पर्वत के जैसा अचलित है। अंत में वह देवता तुझसे क्षमापना करके गया। यह सब हकीकत सही है?' कामदेव ने कहा, 'प्रभु! ऐसा ही है।' इस प्रकार प्रभु ने उसकी दृढता की प्रशंसा करके सर्व साधू - साध्वियों को कहा, 'हे गौतमादिक साधू! जब श्रावक भी ऐसे - उपसर्ग सहन करते हैं तो तुम्हें तो उससे भी अधिक सहन करने चाहिये क्योंकि उपसर्ग रूपी सैन्य को जीतने के लिये ही रजोहरण रूपी वीर वलय को धारण करके विचरते हो।' यह सुनकर सबने ‘तहत्ति" कहकर प्रभु के उस उपदेश का स्वीकार किया और वे भी कामदेव की प्रशंसा करने लगे। __ तत्पश्चात् कामदेव श्रावक अपने घर गया और आनंद श्रावक की भाँति श्रावक के व्रतों का पूर्ण पालन करके वर्षों तक जैन धर्म पालन किया। आयुष्य के अंत में एक माह की संलेखना करके प्रथम देवलोक में चार पल्योपम के आयुष्यवाला वैमानिक देवता बना। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्धिपद पायेगा। 'भयंकर उपसर्ग आये फिर भी दृढता व्रत में तल्लीन रहे कामदेव श्रावक को धन्य है कि जिनकी श्लाघा तीर्थंकरोंने भी की है।' = वर्तमान दूषित वातावरण में = सत्य सरस था किन्तु, परिभाषाओं ने जटिल कर दिया। हृदय विमल था किन्तु, अभिलाषाओंने कुटिल कर दिया। मन अविचल था किन्तु, भ्रमणाओं ने उसे चंचल कर दिया। तर्क सरल था, किन्तु कुंठाओं ने उसे कठिन कर दिया। जिन शासन के चमकते हीरे • ३०२
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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