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________________ ९९ -विश्वभूति और विशारवानंदी मरीचि का जीव कई भवों के पश्चात् पूर्वजन्म में उपार्जन किये हुए शुभ कर्म से विशाखाभूति युवराज की धारिणी नामक स्त्री से विश्वभूति नामक पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। विश्वभूति को विशाखानंदी नामक चचेरा भाई था। एक बार विश्वभूति अपने अंत:पुर सहित पुष्पकरंडक नामक उद्यान में क्रीडा कर रहा था। वहाँ विशाखानंद आकस्मिक आ पहुँचा परंतु उद्यान में विश्वभूति होने से अन्दर न पहुँच सका। इस कारण उसको बाहर निकालने के लिये गलत प्रचार करवाया कि एक सामंत उद्धत हो गया है, सो राजा उसे पकडने के लिये स्वयं जा रहा है। यह खबर सुनकर सरल स्वभाव का विश्वभूति उद्यान से बाहर आया। इस मौके का लाभ लेकर विशाखानंदी उद्यान में अपने अंत:पुर के साथ घूस गया। विश्वभूति राजा को जाने की जरूरत नहीं - ऐसा समझाकर सेना के साथ स्वयं गया। कुछ आगे कूच करते हुए पुरुषसिंह नामक सामंत मिला और वह राजा का आज्ञाकारी है - ऐसा जानकर वापिस लौट चला। मार्ग में पुष्पकरंडक वन नज़दीक आते ही द्वारपाल ने बताया कि अन्दर विशाखानंदीकुमार है। यह सुनकर वह सोचने लगा कि मुझे कपट से पुष्पकरंडक वन में से निकाला जिससे क्रोधित होकर एक मुष्टि से कपित्थ वृक्ष पर प्रहार किया। इस कारण पेड पर के सब कैथ फल जमीन पर गिर पडे और विशाखानंदी को सुनाते हुए बोला : 'यदि बुजुर्ग पिताश्री पर मेरी भक्ति नहीं होती तो मैं सि कैथ फल की तरह तुम्हारे सर्व के मस्तिक भूमि पर गिरा डालता।' इस प्रकार उत्तेजित विश्वभूति संसार के प्रपंचो से ऊब गया। वह संभूति मुनि के पास पहुंचा और चारित्र ग्रहण किया। गुरू की आज्ञा से एकाकी विहार करते हुए और प्रखर तप करते करते विश्वभूति मुनि मथुरा आये। उस दिन विशाखानंदी राजपुत्री को ब्याहने मथुरा आया था। विश्वभूति मासक्षमण के पारणे हेतु गोचरी के लिये जा रहे थे। वे विशाखानंदी की छावनी के नज़दीक आये तो उसके मनुष्यों ने यह विश्वभूति कुमार मुनि जा रहे हैं' ऐसा कहकर विशाखानंदी को दिखाया। उनको देखकर जिन शासन के चमकते हीरे • २९८
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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