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________________ क्षण पर भी रही । वहाँ से मरकर चन्द्रकान्त नामक नगरी में विजयसेन नामक राजा के राज्य में श्रीकांत नामक सेठ के यहाँ उसकी सखी नामक भार्या की कोख पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम नामकेतु पड़ा। यहाँ उसके मातापिता बड़े धर्मशील थे और पर्युषण आ रहे होने से एकांत में अठ्ठम तप करने की बातें हुई। यह बात सुनकर नागकेतु को जातिस्मरण ज्ञान हुआ और उस ज्ञान के बल से अपना पूर्वभव जाना । अठ्ठम तप करना है, अवश्य करना हैं उसका स्मरण हुआ । इस भावना को सफल करने के लिये उसने भी पर्युषण में अठ्ठम तप प्रारंभ किया। ताजे जन्मे हुए नागकेतु का शरीर निरा कोमल था। उसकी आत्मा ज्ञान प्रकट होने से बलवान बनी, परंतु शरीर में इतना बल कहाँ था । दूध न पीने से उसका शरीर क्षीण होने लगा। उसके मातापिता को खबर नहीं है कि बालक ने अठ्ठम का तप किया है सो स्तनपान करता नहीं है, पानी भी ता नहीं है। वे अनेक उपचार करने लगे लेकिन यह न तो स्तनपान करता न दवा पीता। फलस्वरूप कमजोरी इतनी बढ गई कि बालक मूर्च्छा पा गया। मूर्च्छाप्राप्त बालक को लोगों ने मरा हुआ मान लिया और उसे जंगल में लेजाकर गाड़ दिया। अपना पुत्र मर गया ऐसा समझे हुए सेठ को बड़ा आघात लगा । सेठ मूल तो नि:संतान थे। कई मनौतियों के बाद यह पुत्र हुआ था । वह मर गया ऐसा जाना और उनको लगा आघात सहन न होने के कारण बालक का बाप वाकई मे मृत्यु पा गया । उस काल में राज्य में ऐसा कानून था कि पुत्रहीन का धन राजा ग्रहण कर लेता था । कोई भी व्यक्ति मर जाता और यदि उसे पुत्र न होता तो उसके धनादिक का मालिक राजा बनता। राज्य के कानून अनुसार सेठ का धन लेने के लिये राजा ने अपने सेवकों को सेठ के घर भेजा। यहाँ बना ऐसा कि बालक के अठ्ठम तप के प्रभाव से धरणेन्द्र का आसन का काम्प उठा। अपना आसन काम्पने से धरणेन्द्र ने ज्ञान का उपयोग छोड़ा और सब बात समझ जाने से धरणेन्द्र वहाँ आ पहुँचा। पहले भूमि में रहे बालक पर अमृत छिड़ककर आश्वासन दिया और तत्पश्चात् ब्राह्मण का रूप लेकर जो राजसेवक धन लेने जिन शासन के चमकते हीरे • २८८
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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