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________________ ___ इस प्रकार कुमार के उत्तर सूनकर वे आठों स्त्रियाँ ने बैराग्य पाया तो वे हाथ जोड़कर बोली, 'हे प्राणनाथ! आप जिस मार्ग का आश्रय करें वही मार्ग हमारा भी सेव्य है।' यह सब देखकर प्रभव चोर भी सोचने लगा, 'धन्य है इस महात्मा को जिसे लक्ष्मी स्वाधीन है उसका त्याग करता है और निर्लज्ज जैसा मैं हूँ जो लक्ष्मी प्राप्त करने के लिये ऐसे चोरी जैसे महापाप करता हूँ। इसलिये मैं अत्यंत निंद्य हैं। मुझे-अधर्मी को धिक्कार है।' इस प्रकार के विचार से परिवार सहित वैराग्य पाया हुआ प्रभत बोला, 'हे महात्मा! मुझे आज्ञा दीजिये, मुझे क्या करना चाहिये?' ___ जंबूकुमार ने उत्तर दिया, 'जो मैं करूं वह तूं भी कर।' तत्पश्चात् प्रात:काल में संघ तथा प्रभुपूजन करके, बुझुर्गों को नमस्कार करके कुमार ने स्नान-चंदन का विलोपन किया। श्वेत वस्त्र तथा सर्व अंगों पर अलंकार धारण करके पुरुषों से वहन होती शिबिका में आरूढ हुए। मार्ग में दीन लोगों को दान करते और लोगों का रंजन करते - वाजिंत्रो के नाद के साथ जहाँ सुधर्मा स्वामी बिराजमान थे वहाँ आये, साथ में अपनी आठ पत्नियाँ अपने अपने माँ बाप के साथ, प्रभव सहित पांच सौं चोरों को भी लाये थे। सब सुधर्मा स्वामी के पास आये। नमन करके, वंदना करके जंबूकुमार ने अपने परिवार और चोरों सहित पांचसौ सत्ताइस (५२७) व्यक्तिओं को दीक्षा देने के लिये अनुरोध किया तो सुधर्मा स्वामी ने अपने हस्तों द्वारा जंबूकुमार को उसके परिवार के साथ तथा सब चोरों को भी दीक्षा दी। जंबूस्वामी को उनके शिष्य के रूप में प्रभव मुनि को सौंपा। ___श्री महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद के दसवें वर्ष में सुधर्मा स्वामीने जंबू स्वामी को गणधर की पदवी दी और उसके चौवनवें वर्ष पर जंबू स्वामी ने प्रभव स्वामी को गणधर की पदवी दी। प्रभव स्वामी के गणधर होने के बाद श्री जंबूस्वामी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ और मोक्ष पधारे। इस काल में मोक्ष जानेवाले जंबूस्वामी है। जिन शासन के चमकते हीरे . २८१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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