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-पद्म शेरवरराय
पृथ्वीपुर में पद्मशेखर नामक राजा राज्य करता था। वह धर्म का रागी था। वह जब राजसभा में आकर बैठता तब सभा समक्ष जैनगुरु के गुणों का वर्णन करते हुए इतनी अच्छी तरह समझाता था कि वह सुनकर प्राणियों के हृदय में उन पर बहुमान और आदर हुए बिना रहता ही नहीं था। जैसे कि 'प्रमाद में पड़े हुए अन्य को अटकाये एवं स्वयं भी पापरहित मार्ग पर चले। मोक्षार्थी प्राणीयों को भी तत्त्वग्रहण कराये और सर्व का भला करे - ऐसा जो होवे उसे सदगरु कहते हैं।'
और 'कोई वंदना करे तो प्रसन्न न होवे, कोई हेलना करे उससे वे नाराज न होवें। चित्त को दमन करके धीर वीर होकर चले। राग और द्वेष का जिसने नाश कर दिया है। ऐसे धीर मुनि होते हैं।' और गुरु दो प्रकार के बताये हैं : 'तपोवउत्ते और नाणोवठत्ते। तपोवउत्ते वे तप से तपयुक्त होते हैं। वे अपनी आत्मा को तारते हैं।' जबकि नाणोवठ्ठते अर्थात् ज्ञान का उपयोगवाले गुरु जहाज के समान होते हैं - सो वे अपनी ओर पर की आत्मा को तारते है।' इस प्रकार गुरु के गुणों का हररोज वर्णन करके उन्होंने कई जैन धर्मी बनाये, परंतु उसी नगर में एक जय नामक बनिया नास्तिक मतवाला था। वह लोगों को ऐसा उपदेश करता था कि इन्द्रिय अपने अपने विषय में प्रवर्तती हैं, उन्हें रोके रखनी ऐसा तो संभव हैं ही नहीं। इसलिये तपश्चर्या द्वारा शरीर का शोषण करना केवल मूर्ख का ही काम है। तप करने से परलोक में सुख मिलेगा ऐसा लोग कहते हैं परंतु स्वर्ग है या नहीं यह कौन जानता है?' . जिस प्रकार राजा पद्मशेखर लोगों को धर्म की और मोड़ रहा था उस प्रकार यह जय वणिक लोगों को भरमाकर पाप मार्ग की ओर मोड़ रहा था। वह कहता था कि तप करके इस समय तो दुःखी ही होना है। मरने के बाद सुख मिलेगा वह मूर्ख लोगों की मान्यता है। इसलिये इसी जन्म में खानपान करके मनमाना सुख भोग लेना चाहिये, वगैरह।
__ पद्मशेखर राजा ने इस वणिक की कार्यशैली पहचानी। उसको धर्ममार्ग पर मोड़ने के लिये एक योजना बनायी। एक लाख सुवर्ण मुद्राओं का एक
जिन शासन के चमकते हीरे • २७४.