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________________ और कुमारपाल बैठे। हेमचन्द्राचार्य ने गुरुदेव को कहा, 'इस परमार्हत राजा कुमारपाल ने अपने देश में से हिंसा को देशनिकाला दिया है। हजारों मंदिर बनवाकर अपूर्व पुण्योपार्जन किया है। अब यदि उसे सुवर्णसिद्धि मिल जावे तो दुनिया में वह किसी मनुष्य को दुःखी नहीं रहने देगा। गुरुदेव आपके पास वह सुवर्णसिद्धि है । मैं जब छोटा था, सोमचन्द्रमुनि था तब आपने मेरे आग्रह से लोहे के टुकडे को सोने का टुकडा कर दिखाया था। कृपा करके इस कुमारपाल को वह सुवर्ण सिद्धि दीजिये - ऐसी मेरी बिनती है।' ____ शांति से बात सुनने के बाद गुरुदेव ने कुमारपाल को कहा, 'राजन! तूने हिंसा का निवारण और जिन मंदिरों का सर्जन यह दो श्रेष्ठ सुवर्णसिद्धियाँ प्राप्त की है।' कुमारपाल गद्गद् हो गया और गुरु के चरण में सिर झुकाकर वंदना की। ___हेमचन्द्राचार्य के सामने देखकर गुरुजी ने कहा, 'कुमारपाल के भाग्य में नहीं है इसलिये राजा को या तुझे यह सिद्धि नहीं दूंगा। भाग्य के बिना उत्तम चीजें मनुष्य के पास टिकती नहीं है।' ऐसा कहकर देवचंद्रसूरी खड़े हो गये और हेमचन्द्राचार्य को कहा, 'ऐसे कार्य के लिए मुझे यहाँ मत बुलाना।मेरी आत्मसाधना उलझ जाती है। और गुरुदेव खंभात की तरफ विहार कर गये। श्री हेमचन्द्राचार्य को अपना अंत समय नजदीक दीख रहा था। उन्होंने भाविकों को बुलवाया। संघ के साथ क्षमापना करके सबको अंतिम धर्मोपदेश दिया। कुमारपाल भी आ पहुंचे थे। उन्होंने गुरुदेव को बन्दना करके कहा, 'गुरुदेव! आपके बगैर मुझे धर्म कौन प्राप्त करवायेगा?' हेमचन्द्राचार्य ने कहा, 'वत्स! कुछ समय के बाद तेरी भी मृत्यु हो जायेगी। परंतु तुने धर्म पाया ही है। तीसरे भव तूं तो मोक्ष पायेगा।' ___गुरुदेव हेमचन्द्रसूरी आँखे बंद करके पद्मासन पर बैठ गये। परमात्म ध्यान में निमग्न हुए और कुछ ही देर में उन्होंने प्राण त्याग दिये। इस शोक के समय में भी आनंदलहरी कुमारपाल के मन में उठी। तीसरे भव में मोक्ष जानकर वे आनंद से नाच उठे। जिन शासन के चमकते हीरे • २६९
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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