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________________ शत्रुजय और गिरनार की यात्रा करके कुमारपाल और संघ के हजारों लोग धन्य बन गये। जिस प्रकार कुमारपाल के हृदय में हेमचन्द्रसूरी बसे हुए थे वैसे ही हेमचन्द्रसूरी के मन में भी कुमारपाल बसे थे। धर्म के महान कार्य कुमारपाल करता था। उसके मातहत अठ्ठारह देश में अहिंसा फैला कर उसने हजारों जिन मंदिर बनवाये। अनेक ज्ञान भण्डार बनवायें और लाखों दुःखी साधर्मिक जैनों को सुखी बनाया। ___ऐसे सत्कार्यों के कारण राज्य की तिजोरी का तल दिखने लगा था।कुमारपाल ने इस बारे में सूरीजी को प्रार्थना भी की, 'यदि सुवर्णसिद्धि प्राप्त हो जाय तो अनेक साधर्मिक दीन-दुःखी वगैरह का उद्धार कर सके। इसका खयाल रखकर आचार्यश्री सोच रहे थे कि कुमारपाल के पास यदि सुवर्णसिद्धि होगी तो परोपकार के कार्य सही तरीके से करा करेगा। हेमचन्द्राचार्य के पास कई योगशक्तियाँ थी। वे आकाश में उड सकते थे और देव-देवीयों के उपद्रव शान्त कर सकते थे परंतु उनके पास सुवर्ण सिद्धि विद्या न थी। एक बार अपने पूज्यपाद गुरुदेव श्री देवचन्द्रसूरीजी को लोहे के टुकडे को किसी बेल के रस में डूबोकर सुवर्ण बनाया था वह बात उनके मन में घूम रही थी।यदिगुरुदेव कृपा करके आज यह सुवर्णसिद्धि विद्या कुमारपाल को दे तो कुमारपाल और बड़े सत्कार्य कर सकता है। ____ आचार्यश्री ने वाग्भट्ट को गुरुदेव श्री देवचन्द्रसूरी के पास भेजा और कहलवाया कि किसी उपकारी कार्य के लिये आप पाटण पधारें । हेमचन्द्राचार्यभी आपके दर्शन-वंदना करना चाह रहे हैं। गुरुदेव ने परमार्थ के कार्य के लिये पाटण आने के लिए हामी भरी और प्रखर विहार करके पाटण पधारे । सकल पाटण की जनता उनका स्वागत करने के लिये गाँव के दरवाजे पर इकट्ठी हुई थी। परंतु गुरुदेव तो अन्य दरवाजे से जल्दी उपाश्रय में पहुँच गये थे। उनको जाहिर में दिखना और मानसम्मान पसन्द न थे। ____ हेमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल के पास आदमी दौडाया और कहलवाया कि गुरुदेव उपाश्रय में आ पहुंचे हैं। सब उपाश्रय में व्याख्यान के लिए आ जाय। व्याख्यान के पश्चात् गुरुदेव ने हेमचन्द्राचार्य को पूछा, 'संघ का क्या कार्य है? कहो।' व्याख्यान से उठने बाद एक परदे की ओट में गुरु देवचन्द्रसूरी, हेमचन्द्राचार्य जिन शासन के चमकते हीरे . २६८
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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