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________________ -श्री कुमारपाल राजा सिद्धराज जब राजगद्दी पर आया तब अपने चाचा के लडके त्रिभुवनपाल को अपना भाई जैसा मानकर उसे मान देता था; परंतु हेमचन्द्राचार्य से देवी अंबिका के वचन सुने, त्रिभुवनपाल का पुत्र कुमारपाल उसके बाद राज्य संभालेगा' - तब उसका मन परिवर्तित हो गया। त्रिभुवनपाल की पत्नी काश्मीरादेवी के पेट में एक उत्तम जीव आया तो उसके मन में अच्छी अच्छी इच्छाएं जागने लगी, जैसे कि मैं जगत के सब जीवों को अभयदान दूँ! मैं मनुष्य को सब व्यसनों से छुडाऊँ! मैं खूब दान करूं! मैं परमात्मा के मंदिर बनवाऊँ वगैरह वगैरह। नौ महिने पूर्ण होते ही काश्मीरादेवी ने एक सुन्दर और तन्दुरस्त पुत्र को जन्म दिया। उस समय आकाश में देववाणी हुई, यह बालक विशाल राज्य प्राप्त करेगा और धर्म का साम्राज्य स्थापित करेगा।' नया जन्मा यह पुत्र सुन्दर था, सबको प्यारा लगे ऐसा और भाग्यशाली था। उसका नाम 'कुमारपाल' रखा। माता ने पुत्र को गुणवान बनाने के लिए ठीक ठीक मेहनत ली। उसे व्यावहारिक शिक्षण के साथ साथ युद्धकला भी सीखायी गयी। युवा अवस्था में आते ही मातापिता ने भोपलदेवी के साथ पुत्र की शादी की। कुमारपाल मातापिता के साथ दधिस्थलि में रहते थे। जरूरी प्रसंग पर त्रिभुवनपाल पाटण आते-जाते रहते। एक बार त्रिभुवनपाल के साथ कुमारपाल भी पाटण गये। उन्होंने हेमचन्द्रसूरीजी की बड़ी प्रशंसा सुनी थी। उन्होंने उपाश्रय पहुँचकर दो हाथ जोड़कर सिर झुकाया और गुरुदेव की वंदना की। अपना अल्प परिचय दिया। गुरुदेव ने 'धर्मलाभ' का आशीर्वाद दिया। कुमारपाल ने नम्रता से आचार्यश्री को पूछा, 'गुरुदेव! आज्ञा हो तो एक प्रश्न पूछना है।' गुरुदेव ने सुख से पूछने के लिये कहा। 'गुरुदेव! सृष्टि में अनेक प्रकार के मनुष्य बसते हैं, उनके अलग अलग प्रकार के गुण होते हैं । प्रभु! उनमें श्रेष्ठ गुण कौनसा है?' जिन शासन के चमकते हीरे • २५७
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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