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वंदना की और विनयपूर्वक बैठा। __गुरुदेव ने कहा, 'तुम्हारे भाग्य में पुत्र योग नहीं है । और आपके बाद गुजरात का राजा कुमारपाल बनेगा।'
'कौन कुमारपाल?' राजा ने आश्चर्य से पूछा।
'त्रिभुवनपाल का पुत्र कुमारपाल!' गुरुदेव ने कहा। सिद्धराज अत्यंत खिन्न हो गया। आचार्य देव ने सिद्धराज के अशांत मगज को शांति देने के लिये योग्य उपदेश दिया। परंतु पुत्रप्राप्ति की तीव्र इच्छा के कारण उनका उत्पन्न हुआ दुःख दूर न हुआ। ___ संघ प्रयाण करके पाटण आया। राजा ने श्रेष्ठ ज्योतिषीयों को बुलाकर पुत्रप्राप्ति के लिये पूछा। उनकी ओर से भी देवी अम्बिका जैसा ही उत्तर मिला। ___अब पुत्रप्राप्ति की इच्छा पूर्ण नहीं होगी - ऐसा समझने से सिद्धराज ने अपना ध्यान कुमारपाल का काँटा निकालने में लगाया और अपने तरीके से कार्य प्रारंभ किया। आचार्य श्री हेमचन्द्राचार्य ने अथाग मेहनत से अपनी बीस वर्ष की आयु से साहित्यसर्जन का कार्य प्रारंभ किया था जिसे उन्होंने अपनी चौरासी वर्ष पर हुई || . मृत्यु तक याने चौसठ वर्ष तक चालू रखा। . उनके साहित्य सर्जन में 'सिद्धहेम शब्दानुशासन व्याकरण' के अलावा 'अभिधान चिंतामणि द्वारा उन्होंने एक अर्थ के अनेक शब्द दिये - अनेकार्थ संग्रह द्वारा एक शब्द के अनेक अर्थ दिये। अलंकार चूडामणि' और 'छंदानुशासन' द्वारा काव्य छंद की चर्चा की और द्वायाश्रय द्वारा गुजरात, गुजरात की सरस्वती और गुजरात की अस्मिता का वर्णन किया। द्वायाश्रय में चौदह सर्ग तक सिद्धराज के समय की बातें की और बाद के सर्गों में कुमारपाल के राज्यकाल की बातें आती है। कुल मिलाकर साढ़े तीन करोड श्लोक प्रमाण जितना उनका साहित्य माना जाता है।
जब उनको लगा कि मेरा अंत समय नज़दीक है तब उन्होंने संघ को, शिष्यों को, राजा को, सबको आमंत्रित.करके अंतिम हित शिक्षाएँ दी और सबसे क्षमापना करके योगिन्द्र की भाँति अनशन व्रत धारण करके, श्री वीतराग की स्तुति करते हुए देह छोड़ा।
श्री हेमचन्द्राचार्य का जन्म संवत् ११४५, दीक्षा ११५६, सूरीपद ११६६ और स्वर्गवास संवत् १२२९ में नोट किया गया है।
जिन शासन के चमकते हीरे . २५६