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________________ का मंदिर बनाकर खर्च करने को कहा, और सेठ ने उस प्रकार मंदिर बनवाया। एक तरफ मंदिर बनता गया दूसरी तरफ सेठ का धंधा सुधरता गया और व्यापार में खूब मुनाफा हुआ। ____ मंदिर तैयार होते ही अच्छे मुहूर्त पर प्रतिष्ठा महोत्सव किया और भगवान महावीर स्वामी की भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित की गयी। नागपुर से विहार करके आचार्य देव पाटण पधारे।पाटण में देवेन्द्रसूरी नामक आचार्यदेव बिराजमान थे। वे भी देवचन्द्रसूरीश्वरजी के ही शिष्यरत्न थे। देवेन्द्रसूरी और सोमचन्द्रसूरी दोनों खास मित्र थे। उनके साथ ज्ञानचर्चा करते और एक-दूसरे के मन की बातें भी करते थे। ____ एक दिन उपाश्रय में दोनो मुनिराज ज्ञान चर्चा करते थे। वहाँ एक पुरुष ने आकर वंदना की और वहाँ आकर बैठा। अपना परिचय देते हुए कहा, 'मैं पाटण का ही निवासी हूँ। भारत के कई प्रदेश में घूमा हूँ। महात्मा! मैंने आपके गुणों और ज्ञान की प्रशंसा सुनी है सो आपके दर्शन करने आया हूँ और कुछ कहने का मन है।' ___ आचार्य श्री देवचन्द्रसूरीजी ने कहा, 'क्या कहना है आपको? संकोच छोड़कर जो कुछ कहना हो वह कहो।' । _ 'महाराज! आप दोनों गौड़ देश में जाये, वहाँ कई मांत्रिक और तांत्रिक है, अनेक दिव्य शक्ति धारक महापुरुष हैं, वहाँ आप पधारे और शक्तियाँ प्राप्त करें।' __ मुनिराजों ने उस पर विचार करके योग्य करने को कहा। वह पुरुष चला गया। दोनों मुनिओं ने एक-दूसरे के सामने देखा । उन्हें इस मनुष्य की बात तो पसन्द आयी। यदि गुरुदेव छुट्टी देवे तो गौड देश दोनों जायेंगे ऐसा तय किया। ___दोनों ने गुरुदेव के पास जाकर गौड देश जाने की आज्ञा मांगी। गुरुदेव ने आशीर्वाद के साथ अनुमति दी। दोनों ने विहार शुरू किया। एक संध्या को खेरालु नामक गाँव में दोनों आ पहुँचे। रात्रि बीताने के लिए उपाश्रय में रूके। वहाँ एक वृद्ध साधू आ पहुँचे। पडछंद काया, सुन्दर रूप और आँख में अपूर्व तेज। आते ही उन्होंने पूछा, 'महात्माओं! क्या मैं यहाँ रात्रिवास कर सकता हूँ?' ____ दोनों ने कहा, 'पधारें महात्मा, बड़ी खुशी से आप हमारे साथ रात्रिवास करें, हमें आनंद होगा।' जिन शासन के चमकते हीरे . २४९
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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